महिला कर्मचारियों, पेशाब रोको और चुपचाप कपड़े सिलो
४ फ़रवरी २०२१पांच जनवरी 2020 को चेन्नई की एक टेक्स्टाइल फैक्ट्री में काम करने वाली 20 साल की युवती का शव मिला. फैक्ट्री में ग्लोबल फैशन रिटेलटर एच एंड एम के लिए कपड़े बनाए जाते हैं. युवती का शव मिलने के बाद फैक्ट्री में काम करने वाली दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं सामने आईं. और सबने यौन दुर्व्यवहार की शिकायत की.
पुलिस के मुताबिक हत्या का आरोपी फैक्ट्री का एक कर्मचारी है, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है. एच एंड एम पर सप्लायर के साथ करार रद्द करने का दबाव पड़ रहा है. एशिया, यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों में कपड़े बेचने वाली कंपनी एच एंड एम ने तीसरे स्वतंत्र पक्ष से जांच कराने की बात कही है. कंपनी ने अपनी सफाई में एक बयान जारी करते हुए कहा, "सप्लायर के साथ भविष्य में किसी भी तरह का रिश्ता इसी जांच के नतीजे पर निर्भर करेगा." कंपनी ने यह भी कहा है कि वह फैक्ट्रियों में किसी भी तरह का दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं करेगी.
पुलिस की नजर में सामान्य मामला
पुलिस हत्याकांड को प्रेम प्रसंग का मामला बता रही है. नाम छुपाने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हमारी जांच दिखाती है कि दोनों रिश्ते में थे और दोनों के बीच उपजे मतभेद हत्या की वजह हैं."
पुलिस अधिकारी के मुताबिक गारमेंट फैक्ट्री की किसी कर्मचारी या उनकी यूनियन ने कभी यौन दुर्व्यवहार की शिकायत नहीं की. लेकिन स्थानीय मानवाधिकार ग्रुपों के मुताबिक, कई महिलाएं ऐसी शिकायतें कर चुकी हैं.
शोषण का चरखा बनीं गारमेंट फैक्ट्रियां
भारत में गारमेंट कर्मचारियों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था, एशिया फ्लोर एलायंस की इंडिया कॉर्डिनेटर नंदिता शिवकुमार के मुताबिक, "युवती की मां और उसकी सहकर्मियों के मुताबिक उसने दुर्व्यवहार के बारे में बताया था."
नंदिता कहती हैं, "कम से कम 25 अन्य कर्मचारियों ने हमें बताया कि फैक्ट्री में उनके साथ किस तरह का दुर्व्यवहार होता है. और हमें लगता है कि ब्रांड और निर्माता ऐसा माहौल बनाने में नाकाम रहे हैं जिसमें कर्मचारी शिकायत कर सकें."
भारत का गारमेंट उद्योग कई करोड़ डॉलर का है. देश में करीब 1.2 करोड़ लोग इस सेक्टर में काम करते हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं. लंबे समय तक तमिलनाडु के गारमेंट उद्योग पर बाल मजदूरी के आरोप लगते रहे. अब यौन शोषण और दुर्व्यवहार के मामले सामने आ रहे हैं.
श्रमिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठनों के मुताबिक बड़े ब्रांड, सप्लायरों पर तेजी से सस्ते कपड़े बनाने का दबाव डालते हैं. सप्लायर यह दबाव अपने कर्मचारियों पर लादते हैं और अंत में ऐसी स्थिति बनती है, जिसमें बाथरूम जाने की इजाजत भी नहीं दी जाती. मौखिक और शारीरिक सेक्स दुर्व्यवहार भी होता रहता है.
कानून बनाम बदले का डर
2013 में लागू किया गया एक कानून कहता है कि जिस जगह भी 10 लोग काम करेंगे, वहां महिलाओं की अगुवाई में एक शिकायत समिति होनी चाहिए. इस समिति के पास दुर्व्यवहार के दोषी पर जुर्माना लगाने या उसे नौकरी से निकालने का अधिकार होना चाहिए.
नंदिता शिवकुमार के मुताबिक, "ज्यादातर मामलों में बदले की कार्रवाई का डर सताता है और कुछ मामलों में इस कानून का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसे लेकर जागरूकता का अभाव है."
शिवकुमार के मुताबिक इस फैक्ट्री में भी कुछ ऐसा ही हुआ, "इस फैक्ट्री के सुपरवाइजरों से मौखिक शिकायत की गई, जिन्हें न तो गंभीरता से लिया गया और ना ही आंतरिक शिकायत समिति को भेजा गया."
ओएसजे/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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ओएसजे/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)