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अपराधभारत

पबजी की लत और बेटे पर मां की हत्या का आरोप

८ जून २०२२

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 16 साल के लड़के पर अपनी ही मां की हत्या का आरोप लगा है. बेटे को मां मोबाइल गेम खेलने से मना करती थी, जिसके बाद बेटे ने अपने पिता की रिवॉल्वर से मां की हत्या कर दी.

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फाइल तस्वीर
फाइल तस्वीरतस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas

नाबालिग बेटे की मां अपने बेटे की मोबाइल गेम खेलने की लत को लेकर परेशान थी और वह उसे गेम खेलने से मना करती थी. आरोप है कि इसी से गुस्से में आकर नाबालिग ने मां की गोली मारकर हत्या कर दी. घटना रविवार देर रात की है. जानकारी के मुताबिक नाबालिग ने अपने पिता की लाइसेंसी रिवॉल्वर से अपनी मां की गोली मारकर हत्या की और शव को घर के एक कमरे में छिपा कर रख दिया. उसने दुर्गंध से बचने के लिए शव पर रूम फ्रेशनर का छिड़काव भी किया.

पुलिस का कहना है कि दो दिनों तक आरोपी नाबालिग और उसकी नौ साल की बहन उसी घर में रहे. लड़के की बहन ने पुलिस को बताया कि उसने किसी को बताने पर उसे भी जान से मारने की धमकी दी थी. लड़के ने अपनी मां की लाश को घर में ही छिपा कर रखा और अपने साथ अपनी बहन को भी घर में बंद रखा.

पुलिस का कहना है कि आरोपी नाबालिग को मोबाइल गेम खेलने की लत थी और वह मां द्वारा खेलने से मना करने से नाराज था. लखनऊ के अपर पुलिस उपायुक्त कासिम आबिदी ने मीडिया को बताया, ''लड़के के पिता वर्तमान में पश्चिम बंगाल में तैनात हैं और उसकी मां बेटे और बेटी के साथ लखनऊ में रहती थी." उन्होंने कहा, "16 साल का बेटा ऑनलाइन गेम पबजी का आदी था. उसने हमें बताया कि उसकी मां उसे गेमिंग के लिए रोकती थी, इसलिए उसने उसे मार डाला. नाबालिग ने अपनी मां को गोली मारने के लिए अपने पिता की लाइसेंसी बंदूक का इस्तेमाल किया."

पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल उस बंदूक को भी बरामद कर लिया है. पुलिस का कहना है कि जब शव से निकल रही गंध तेज हो गई तो पड़ोसियों ने इसकी सूचना पुलिस को दी. मौके पर पहुंची पुलिस ने जब बंद कमरे का दरवाजा खोला तो उसमें लड़के की मां की लाश थी. लड़के ने शव से आने वाली बदबू को दबाने के लिए रूम फ्रेश्नर का छिड़काव भी किया था.

खतरनाक है वीडियो गेम की लत

बताया जाता है कि लड़के के पिता सेना में है और फिलहाल पश्चिम बंगाल में तैनात है. घर पर मां, बेटा और बेटी रहते थे. पिता ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर घर पर ही रखी जिसका इस्तेमाल बेटे ने अपनी ही मां को मारने के लिए किया.

मोबाइल गेम और हिंसा

कुछ साल पहले ऑस्ट्रेलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी में काम करने वाली मनोवैज्ञानिक ओलिविया मेटकाफ अपने शोध में इस बात के ठोस सबूत जुटाए थे कि वीडियो गेम खेलना लत बन जाती है. अपने रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने जो वॉलंटियर इकट्ठा किए थे उनमें एक तबका लत पकड़ चुके लोगों का था, दूसरा नियमित रूप से खेलने वालों का जिन्हें कोई लत नहीं थी. तीसरा नियंत्रण वाला तबका ऐसे लोगों का था जो खेलते नहीं हैं. वीडियो गेम से जुड़े शब्दों पर उनकी प्रतिक्रिया जांची गई.

ओलिविया मेटकाफ कहती हैं, "हमने पाया कि बहुत ज्यादा वीडियो या ऑनलाइन गेम खेलने वाले शख्स का ध्यान देने वाला तंत्र खेल से जुड़ी जानकारी को प्राथमिकता देता है." वो बताती हैं कि अगर वे खेल के बारे में नहीं भी सोचना चाहते हों तो वे अपने आप को रोकने में सक्षम नहीं होते. मनोविज्ञान में इस तरह की प्रवृति को ध्यान देने का पूर्वाग्रह कहा जाता है.

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मनोविज्ञान पर गेम्स का असर

कुछ जानकारों का कहना है कि जो लोग हिंसा से भरपूर वीडियो गेम्स नहीं खेलते उनके लिए हिंसक तस्वीरों को देखना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन ऐसे गेम्स खेलने वाले लोग निष्ठुर हो जाते हैं, उन्हें हिंसक चित्र देख कर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि लोग तनाव से मुक्ति पाने के लिए वीडियो गेम का सहारा लेते हैं और अपराध करने की जगह अपना गुस्सा ऑनलाइन या वीडियो गेम पर उतार देते हैं.

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भारत में पिछले साल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से अभिभावकों ने शिकायत की थी कि ऑनलाइन गेमिंग साइट्स बच्चों में जुआ, सट्टेबाजी और शोषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं. पिछले साल जब कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई डिजिटल रूप से होने लगी थी और कई बार बच्चे मोबाइल लेकर पढ़ाई के नाम पर ऑनलाइन गेम भी खेलने लगे थे. एक अभिभावक ने अपनी शिकायत में कहा था कि उसके बेटे को गेमिंग साइट की ऐसी लत लगी कि उसने एक साल के भीतर ऐसी साइट पर 50 हजार रुपये तक जुए के तौर पर लगा दिए.

आयोग ने गेमिंग साइट्स से बच्चों के भ्रमित होने से रोकने के लिए दिशा निर्देशों के बारे में पूछा था. साथ ही आयोग ने सवाल किया कि उनकी साइट्स पर बाल अधिकारों के हनन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं.

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