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चॉकलेट में है जलवायु परिवर्तन से निपटने की ताकत

५ जून २०२३

जर्मनी के हैम्बर्ग शहर की एक फैक्ट्री में एक तरफ से कोको के बीज डाले जाते हैं और दूसरी तरफ से एक काला पाउडर बनकर निकलता है. बायोचार नाम के इस खास काले पाउडर में जलवायु परिवर्तन का सामना करने की संभावना है.

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अगर कोको के छिलके सामान्य तरीके से फेंक दिए जाएं, तो इसमें मौजूद कार्बन, छिलके के गलने की प्रक्रिया के दौरान बाहर निकलकर वातावरण में मिल जाएगा.
अगर कोको के छिलके सामान्य तरीके से फेंक दिए जाएं, तो इसमें मौजूद कार्बन, छिलके के गलने की प्रक्रिया के दौरान बाहर निकलकर वातावरण में मिल जाएगा.तस्वीर: PantherMedia/IMAGO

बायोचार बनाने की विधि खास है. एक ऑक्सीजन मुक्त कमरे में कोको के छिलके को करीब 600 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करके बायोचार बनाया जाता है. यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस गैसों को कैद कर लेती है और आखिर में जो चीज बनकर निकलती है, उसे खाद की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. यह ग्रीन कंक्रीट बनाने में सामग्री के तौर पर भी इस्तेमाल हो सकता है.

बायोचार में क्या संभावनाएं हैं?

बायोचार इंडस्ट्री अभी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन इसमें अपार संभावनाएं हैं. विशेषज्ञों की मानें, तो यह तकनीक पृथ्वी के वातावरण से कार्बन हटाने का एक अनूठा जरिया देती है. हम इंसान सालाना करीब 4,000 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड बनाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के मुताबिक, इसमें से करीब 260 करोड़ टन सीओटू को जमा करने में बायोचार मदद कर सकता है. लेकिन इसका इस्तेमाल बढ़ाना एक चुनौती है.

सर्कुलर कार्बन, बायोचार बनाने वाली एक कंपनी है. उसका कहना है कि बायोचार मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर कर सकता है और मिट्टी का कुदरती माइक्रोबायोलॉजिकल संतुलन भी वापस ला सकता है. कंपनी के सीईओ पाइक स्टेनलुंड ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "हम कार्बन चक्र को उलट रहे हैं."

सर्कुलर कार्बन की हैम्बर्ग में एक बायोचार फैक्ट्री है, जो यूरोप में इस तरह के सबसे बड़े संयंत्रों में एक है. यह प्लांट पड़ोस की एक चॉकलेट फैक्ट्री से इस्तेमाल हो चुके कोको के खोल लेती है. इसके लिए पाइपों का एक नेटवर्क बनाया गया है. बायोचार, छिलके में मौजूद सीओटू को कैद कर लेता है. यह प्रक्रिया किसी भी अन्य पौधे के साथ इस्तेमाल की जा सकती है.

बायोचार मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर कर सकता है और मिट्टी का कुदरती माइक्रोबायोलॉजिकल संतुलन भी वापस ला सकता है.
बायोचार मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर कर सकता है और मिट्टी का कुदरती माइक्रोबायोलॉजिकल संतुलन भी वापस ला सकता है. तस्वीर: DW

सदियों तक कैद रह सकता है कार्बन

अगर कोको के छिलके सामान्य तरीके से फेंक दिए जाएं, तो इसमें मौजूद कार्बन, छिलके के गलने की प्रक्रिया के दौरान बाहर निकलकर वातावरण में मिल जाएगा. फ्रांस के यूनिलासाल्ला इंस्टिट्यूट में पर्यावरण वैज्ञानिक डेविड हूबन बताते हैं कि यह कार्बन बायोचार में सदियों तक कैद रह सकता है. हूबन बताते हैं, "एक टन बायोचार ढाई से तीन टन जितना कार्बन जमा कर सकता है."

बायोचार नई खोज नहीं है. अमेरिका में मूल निवासी समुदाय खाद के तौर पर इसका इस्तेमाल करते थे. फिर 20वीं सदी में ऐमजॉन बेसिन की बेहद उपजाऊ मिट्टी पर शोध करते हुए वैज्ञानिकों ने इसे फिर से खोजा. पाया गया कि इसकी स्पंज जैसी संरचना मिट्टी की पानी और पोषण सोखने की क्षमता बढ़ाती है, जिससे पैदावार भी बढ़ती है.

हैम्बर्ग में सर्कुलर कार्बन की फैक्ट्री में बना उत्पाद सफेद बोरियों में भरकर ग्रैनोला की शक्ल में स्थानीय किसानों को बेचा जाता है. इसे खरीदने वाले किसानों में सिल्वियो श्मिट भी हैं. वह आलू की खेती करते हैं. श्मिट को उम्मीद है कि उनकी बलुआ मिट्टी को ज्यादा पोषण और पानी सोखने में बायोचार से मदद मिलेगी. बायोचार बनाने की प्रक्रिया पायरोलिसिस कहलाती है. इसमें कुछ मात्रा में बायोगैस भी बनती है. इसे पड़ोस की फैक्ट्रियों को बेच दिया जाता है. हैम्बर्ग प्लांट सालाना करीब 10 हजार टन कोको के छिलके इस्तेमाल करता है. इससे लगभग 3,500 टन बायोचार और 20 मेगावॉट घंटे तक बायोगैस बनती है.

बायोचार नई खोज नहीं है. अमेरिका में मूल निवासी समुदाय खाद के तौर पर इसका इस्तेमाल करते थे.
बायोचार नई खोज नहीं है. अमेरिका में मूल निवासी समुदाय खाद के तौर पर इसका इस्तेमाल करते थे. तस्वीर: Science Photo Library/imago images

चुनौतियां भी हैं

बायोचार पर काम हो रहा है, लेकिन आईपीसी ने जिस स्तर पर उम्मीद की थी उस स्तर पर उत्पादन नहीं हो रहा है. इसकी एक वजह उत्पादन का मुश्किल तरीका है. हूबन कहते हैं, "इस व्यवस्था में जितने कार्बन का उत्पादन होता है, उससे ज्यादा कार्बन जमा हो सके यह सुनिश्चित करने के लिए हर चीज स्थानीय स्तर पर करनी होगी. ट्रांसपोर्ट या तो बिल्कुल इस्तेमाल ना हो, या बहुत ही मामूली. वरना कोई तुक नहीं बनता."

एक पहलू यह भी है कि हर किस्म की मिट्टी बायोचार के साथ बेहतर अनुकूलित नहीं होती. हूबन बताते हैं कि यह उष्णकटिबंधीय वातावरण में ज्यादा कारगर होता है. इसके अलावा एक चुनौती यह भी है कि इसके उत्पादन के लिए कच्चा माल भी हर जगह उपलब्ध नहीं है. लागत भी प्रभाव डाल सकती है. हूबन कहते हैं, "एक टन के उत्पादन में एक हजार यूरो तक का खर्च आता है, जो कि एक किसान के लिए बहुत ज्यादा है." हूबन का सुझाव है कि बायोचार के बेहतर इस्तेमाल के लिए और भी तरीके खोजे जाने की जरूरत है. मसलन, निर्माण उद्योग ग्रीन कंक्रीट बनाने में बायोचार इस्तेमाल कर सकता है.

मुनाफा कमाने के लिए बायोचार कारोबार कार्बन सर्टिफिकेट बेचने का भी तरीका लाया है. इसमें एक तय मात्रा में बायोचार बनाकर ऐसी कंपनियों को सर्टिफिकेट बेचा जाता है, जो अपने कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना चाहती हैं. पाइक स्टेनलुंड बताते हैं कि बेहद विधिवत यूरोपीय कार्बन सर्टिफिकेट सिस्टम में बायोचार को शामिल करके उन्हें इस क्षेत्र में तरक्की नजर आ रही है. उनकी कंपनी ज्यादा बायोचार बनाने के लिए आने वाले महीनों में तीन जगहों पर नए कारखाने खोलने की योजना बना रही है.

पूरे यूरोप में बायोचार परियोजनाओं में तेजी आ रही है. बायोचार इंडस्ट्री फेडरेशन के मुताबिक, 2022 के मुकाबले इस साल उत्पादन दोगुना होकर 90 हजार टन होने की उम्मीद है.

बांस से बनाएं फायदेमंद बायोचार

एसएम/एनआर (एएफपी)