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जर्मनी के ऊर्जा संकट ने कोयले को हवा दे दी

क्रिस्टी प्लैडसन
२९ दिसम्बर २०२२

जर्मनी में भूरे कोयले का उत्पादन बंद हो रहा था. तभी ऊर्जा संकट आ गया. अब हजारों लोगों ने कसम खाई है कि जनवरी में एक गांव को उजाड़ कर उसके नीचे से कोयला नहीं निकालने देंगे.

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कोयले के लिए उजाड़े जा रहे हैं गांव
लुएत्सराथ को जनवरी में उजाड़ने की योजना हैतस्वीर: Kristie Pladson/DW

"अगर यह गांव गया तो पेरिस समझौते में जर्मनी की 1.5 डिग्री को लेकर प्रतिबद्धता भी चली जायेगी."

यह अक्टूबर महीने की बात है. जर्मन राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के ग्रामीण इलाके में बसे लुएत्सराथ गांव में सुबह के बादलों की चादर के पीछे से चमकते सूरज की रोशनी गीली घास और पत्तियों की नमी दूर कर रही थी. हम जब वहां से पैदल चल रहे थे तो बड़े बड़े पेड़ों पर लकड़ी के प्लेटफॉर्म बने छोटे छोटे अस्थायी घर हर तरफ नजर आये. जमीन पर चलते हुए कुछ लोग भी दिखे. यहां से महज 200 मीटर की दूरी पर गार्त्सवाइलर 2 है जो यूरोप का सबसे बड़ी कोयली की खान है.

आले डॉर्फर ब्लाइबेन यानी सभी गांव बचे रहें एक सामाजिक पहल है जो गांवों को बचाने की कोशिश में हैं खासतौर से खुदाई से. इस गांव की यात्रा के दौरान संगठन के प्रेस ऑफिसर अल्मा ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह बहुत महत्वपूर्ण जगह है, सिर्फ एक प्रतीक नहीं जैसा कि कई राजनेता कहते हैं. जलवायु न्याय के लिहाज से यह एक बहुत व्यावहारिक जगह है, क्योंकि इसके नीचे बहुत सारा कोयला है."

कोयले के चलते सैकड़ों गांव खत्म

लुएत्सराथ को प्रदर्शनकारियों ने 2020 से ही घेर रखा है. उसी समय इस गांव को उजाड़ कर यहां दबे भूरे कोयले या लिग्नाइट को निकालने की योजना बनी थी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक लिग्नाइट की खुदाई के लिए 300 से ज्यादा गांव जर्मनी में उजाड़े जा चुके हैं. इसकी वजह से करीब 120,000 लोग विस्थापित हुए हैं. 

हाल के वर्षों में कार्यकर्ताओं के अलावा केवल एक किसान और कुछ किरायेदार ही लुएत्सराथ गांव में बाकी बचे हैं. यहां आइए तो बस एक मुख्य सड़क, दर्जनों पुरानी ईंट से बनी फार्म हाउसों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं दिखता. इन फार्महाउसों पर भी प्रदर्शनकारियों ने ग्राफिटी बना रखी है.

कोयले के लिए उजाड़े जा रहे हैं गांव
लुएत्सराथ में बैनर लगा है कि 1.5 डिग्री सी के लिए गांव बचा रहेगातस्वीर: Kristie Pladson/DW

हालांकि लोग सिर्फ इस गांव को बचाने के लिए ही विरोध नहीं कर रहे हैं. यह संघर्ष कोयले को जमीन में दबाये रखने के लिए भी है. दुनिया भर में कोयला आज भी बिजली पैदा करने का सबसे बड़ा स्रोत है साथ ही कार्बन डाइक्साइड के उत्सर्जन का भी. 2021 में जर्मनी में पैदा हुई करीब 30 फीसदी बिजली कोयला जला कर हासिल हुई थी. 

कोयले का उपभोग और उत्पादन नये रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा

कुछ समय के लिए कोयले का उत्पादन बढ़ा

जर्मनी का कहना है कि वह 2045 तक कार्बन न्यूट्रल होना चाहात है. 2020 में उसने जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाली कोयला आधारित बिजलीघरों को धीरे धीरे करके 2038 तक बंद करने का एलान किया है. हालांकि लुएत्सराथ को बचाने की योजना यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद खटाई में पड़ गई. रूसी प्राकृतिक गैस से दूर होने के बाद जर्मनी वैकल्पिक ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बेचैन है. इसकी वजह से वह एक भार फिर घरेलू कोयला उद्योग की तरफ बढ़ चला है. इस साल सरकार ने करीब दर्जन भर बिजली घरों में दोबारा उत्पादन शुरू किया है और बंद होने वाले कई बिजली घरों की मियाद बढ़ा दी है.

कोयले के उत्पादन में अचानक आई बढ़ोत्तरी को संतुलित करने के लिए सरकार ने ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई के साथ नॉर्थ राइन वेस्टफालिया में कोयला उत्पादन की समय सीमा को 2030 तक आगे बढ़ने के लिए करार भी किया है.

आरडब्ल्यूई के सीईओ मार्कुस क्रेबर ने नवंबर में जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल से कहा, "हमें बिजलीघरों को बहुत जल्दी वापस ग्रिड में लाना है और हमें ज्यादा कोयले की जरूरत है." पत्रिका ने जब लुएत्सराथ के बारे में उनकी योजना के बारे में पूछा तो उनका कहना था,"हम उसे पहले कि जो योजना थी उससे दोगुना तेजी से फेज आउट करेंगे."

विरोध करने वालों की दलील है कि समय से पहले फेजआउट का मसला नहीं है, लुएत्सराथ के नीचे दबे कोयले को जलाने से जर्मनी में कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ जायेगा. उनके इस दावे की जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने भी पुष्टि की है.

ऊर्जा संकट के कारण कोयल से छुटकारा पाने की कोशिशें धीमी पड़ गई हैं
बेर्गहाहाइम में नीडरआउसेम का कोल प्लांटतस्वीर: Kristie Pladson/DW

उनके दावे और प्रदर्शनों से अदालतें और राजनेता सहमत नहीं हैं. दिसंबर में घोषआ की गई कि लुएत्सराथ से जनवरी में कार्यकर्ताओं को हटाया जायेगा और गांव को गिराने का काम शुरू होगा.

अनिश्चित तस्वीर

खान की तरफ देखने पर एक बहुत उदास नर्क जैसी तस्वीर दिखती है. ना तो आग है ना गंधक, बस एक विशाल भूरे रंग का जाहिर है कि इंसान का बनया विशाल गड्ढा जहां बड़े एक्सकेवेटर उसकी दीवारों को खोद रहे हैं. ये मशीनें 24 घंटें चलती हैं. पास के गाव में रहने वाले एक शख्स ने बताया कि रात को जब हवा बहती है तो उन्हें खुदाई की आवाज भी सुनाई देती है. एक तरफ से दूसरी तरफ इनका विस्तार इतना ज्यादा है कि आपको पता ही नहीं चलता कि ये कहां तक फैले हुए हैं.

हाथ से बना एक निशान लोगों को किनारों से कम से कम 10 मीटर दूर रहने की चेतावनी देता है. हालांकि वहां पुलिस का एक पीला टेप जमीन पर पड़ा हुआ है और लोगों को किनारों की ओर जाने से रोकने के लिए कोई इंतजाम नहीं है. 

सैकड़ों अरब यूरो खरक्च करके भी ऊर्जा संकट से नहीं उबरा जर्मनी

बास के गांव बेडबुर्ग की मेयर साशा सोलबाख ने अपने दफ्तर में बातचीत के दौरान डीडब्ल्यू से कहा, "मेरे लिये तो यह पूरी तरह अनिश्चितता की स्थिती है. मैं इस गड्ढे को देखती हूं और इसके अतीत को. मैं भविष्य को देखती हूं और नौकरियों को भी. मैंने नौकरियों को जाते देखा है. मैं पूरी अर्थव्यवस्था को देखती हूं. मुझे लगता है कि यह अर्थव्यवस्था के लिए एक नया मौका है जहां वे गये हैं. यहां सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि उद्योग कहां जा रहा है."

हाइड्रोजन का लक्ष्य

नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में हाइड्रोजन के उत्पादन का विस्तार करने की योजना बनी है. इसके जरिये कोयला उद्योग के खत्म होने के बाद होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपायी हो सकती है. हालांकि नये फेजआउट टाइमलाइन ने सब उलझा दिया है.

आरडब्ल्यूई में काम करने वाली और स्थानीय राजनेता आंद्रे वांटके का कहना है, "हम सात साल से संयंत्रों को बंद करने और हाइड्रोजन को इस्तेमाल के लिएतैयार करने की बात कर रहे हैं." वांटके बेर्गहाइम में रहती हैं यह जगह गार्ज्सवाइलर 2 से करीब 30 किलोमीटर दूर है और यहीं पर नीडरआउसेम कोल प्लांट है. नीडरआउसेम कोल प्लांट दुनिया का सातवां सबसे अधिक प्रदूषित कोल प्लांट है.

कोयले के लिए उजाड़े जा रहे हैं गांव
गांव में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अड्डा जमा रखा हैतस्वीर: Kristie Pladson/DW

प्लांट से कुछ दूर खड़े रह कर हमने देखा कि शाम होते ही कूलिंग टावरों से निकला भाप का धुआं रात के आकाश को ढंक लेता है. बेर्गहाइम में एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि जब वह बच्चा था और परिवार के साथ कहीं बाहर जाता था तो लौटते वक्त हाइवे से ही उसे ये बादल दिख जाते और वह समझ जाता कि उसका घर आ गया है.

ऊर्जा बचाने के लिए क्या कर रहे हैं जर्मनी के लोग

2038 तक फेजआउट पहले ही बहुत मुश्किल था. वांटके का कहना है, "युवा कर्मचारियों का क्या होगा? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं. सोचिये आखिर में नौकरियां कहां होंगी, उन्हें कहां पैदा किया जायेगा. अक्षय ऊर्जा से कुछ नौकरियां आयेंगी लेकिन क्या वो उसी पैमाने पर होंगी जितनी आज हैं, बहुत मुश्किल होगी."

प्रदर्शकारी मजबूती से डटे हैं

सवाल लैंडस्केप का भी है. बेडबुर्ग के मेयर सोलबाख का कहना है, "अगर अब से आठ साल बाद उद्योग बंद हो गया तो वह एक चलते तंत्र के लिए आपातकाल की बंदी जैसा होगा. सिर्फ यह नहीं है कि कोयला नहीं चलेगा. पूरे लैंडस्केप के बदलाव की प्रक्रिया एक अप्रत्याशित अंत पर पहुंच जायेगी."

दीर्घकालीन योजना में आठ स्थानीय खदानों को पानी से भरा जायेगा, इस तरह से जग झीलों की नगरी बन जायेगी. हालांकि इस बदलाव को पूरा होने में कई दशकों समय लगेगा. जिन लोगों की जिंदगी इससे प्रभावित हुई है उन्हें यह बात सुनकर ज्यादा राहत नहीं मिलेगी. 

विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी भी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. 11 हजार लोगों ने शपथपत्र पर दस्तखत किये हैं कि वो इस लुएत्सराथ को उजाड़े जाने का विरोध करेंगे. इलाके में कोयले की परियोजनाओं का विरोध कई बार शारीरिक विरोध और संपत्ति के नुकसान के रूप में सामने आता रहा है.

मैंने चलते वक्त अल्मा से पूछा कि क्या वो सचमुच यह समझती हैं कि गांव को बचाने का कोई मौका है. जवाब में अल्मा ने कहा, "अगर हम इसे असंभव मान लेगें को तो यह कभी नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि 1.5 डिग्री (ग्लोबल वार्मिंग) को भी छोड़ा जा सकता है. यह सच्चाई कि यह संभव हो सकता है मुझे अहसास दिलाता है कि अच्छी चीजें भी हो सकती हैं."