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समाज

नागालैंड में फिर बिकेगा कुत्ते का मांस

प्रभाकर मणि तिवारी
३० नवम्बर २०२०

राज्य में कुत्ते का मांस सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. राज्य में आवारा कुत्ते कहीं नजर नहीं आते. दूसरे राज्यों से तस्करी के जरिए कुत्ते नागालैंड ले आकर मुंहमांगी कीमतों पर बेचे जाते रहे हैं.

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Indien Streunende Hunde versammeln sich vor dem verlassenen internationalen Flughafen Netaji Subhash Chandra Bose
तस्वीर: AFP/D. Sarkar

नागालैंड सरकार ने करीब चार महीने पहले राज्य में कुत्तों और उनके मांस की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगा दी थी. लेकिन अब गौहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा पीठ ने उस पाबंदी को हटा लिया है. सरकार के फैसले ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री एन क्रोनू ने बताया था कि कुत्तों के वाणिज्यिक आयात व व्यापार पर और कुत्ते के मांस की बिक्री पर पाबंदी लगाने का फैसला राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया है. यह रोक कुत्ते के पके हुए और कच्चे दोनों तरह के मांस पर लगी है. क्रोनू का कहना था, "राज्य मंत्रिमंडल ने यह फैसला दूसरे राज्यों से कुत्तों को लाने के खतरों को ध्यान में रखते हुए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत लिया है.”

इससे पहले फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशंस (एफआईएपीओ) ने राज्य सरकार से नागालैंड में कुत्ते के मांस की बिक्री पर पाबंदी लगाने की अपील की थी. संगठन ने कहा था कि राज्य में कुत्ते के मांस की भारी मांग की वजह से असम और पश्चिम बंगाल से तस्करी के जरिए काफी तादाद में कुत्ते राज्य में लाए जाते हैं और ऊंची कीमतों पर बिकते हैं. उससे दो दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने भी सरकार से ऐसी ही अपील की थी. लेकिन राज्य सरकार ने पाबंदी लगाने के बाद दलील दी थी कि यह फैसला आम लोगों की खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

बाकायदा लाइसेंस जारी किए जाते हैं

सरकार की पाबंदी के फैसले का उस समय बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हुआ था. कुत्ते के मांस का कारोबार करने वालों को कोहिमा नगर निगम की ओर से बाकायदा लाइसेंस जारी किए जाते हैं. इन कारोबारियों ने सरकारी फैसले को चुनौती देते हुए गौहाटी हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. सरकारी सूत्रों ने बताया कि याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने बीते 14 सितंबर को नागालैंड सरकार को इस मामले में कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने का मौका दिया था. लेकिन सरकार ने अदालत में हलफनामा दायर नहीं किया.

अब कोर्ट के इस फैसले के बाद मांस का व्यावसायिक आयात, व्यापार, कुत्ते की बिक्री और कुत्ते के मांस की बिक्री फिलहाल फिर शुरू हो गई है. अदालत के फैसले पर टिप्पणी करते हुए एक याचिकाकर्ता एन क्वोत्सू कहते हैं, "सरकारी पाबंदी से इस कारोबार से जुड़े हजारों लोगों की आजीविक ठप हो गई थी. कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने परिस्थिति को और गंभीर बना दिया है. हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं.”

राज्य के विपक्षी दल नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक चोतिसू साजो कहते हैं, "नागा समुदाय में कुत्ते को पालतू जानवर और इंसानों का सबसे अच्छा दोस्त माना जाता है. लेकिन साथ ही हम कुत्ते के मांस को बेहद अहम मानते हैं और दवा के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं. यह सदियों से नागा संस्कृति और जनजीवन का हिस्सा रहा है. ऐसे में अदालत का फैसला स्वागत के योग्य है.”

प्रोटीन का अहम जरिया

इस पूर्वोत्तर राज्य में कुत्ते का मांस खाने का प्रचलन रहा है. नागालैंड के कुछ समुदाय इसे अपने प्रोटीन का जरिया मानते हैं. यही वजह है कि पाबंदी लगने के बाद कई नागरिक अधिकार संगठनों ने इसका विरोध किया. इन संगठनों का तर्क था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लोगों को अपनी पसंद का भोजन चुनने की आजादी होनी ही चाहिए. इनमें उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का इसाक-मुइवा गुट भी शामिल था. संगठन ने अपने बयान में कहा था, "किसी भी सरकार को नागा संस्कृति में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है. जब देश के दूसरे राज्यों में मुर्गे, बकरियों, गाय, भेड़ और भैंसों समेत कई जानवरों के मांस के सेवन पर कोई पाबंदी नहीं है तो यहां कुत्ते के मांस पर भला पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है. महज एक सरकारी आदेश से लोगों की खान-पान की आदतों को बदलना मुमकिन नहीं है.”

एक सामाजिक कार्यकर्ता जीटी साजो कहते हैं, "सरकार ने कुत्ते के मांस के कारोबार का फैसला काफी जल्दबाजी में लिया था. हमारे देश में ऐसी कोई पाबंदी लगाने से पहले विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था. इसके बिना कोई फैसला थोपना आम लोगों के खान-पान के अधिकार में हस्तक्षेप ही माना जाएगा. बहरहाल अब अदालत के फैसले से गलती दुरुस्त हो गई है.”

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