नेपाल: जलवायु परिवर्तन से शहद खोजने वालों की परंपरा को खतरा
जलवायु परिवर्तन के कारण मधुमक्खियों की संख्या घट रही है, इसलिए शहद कम इकट्ठा हो रहा है. नेपाल में दूरदराज के गांवों में शहद खोजने वालों की आय भी घट रही है.
खतरे में शहद खोजने की परंपरा
नेपाल के लामजंग जिले के ताप गांव में शहद इकट्ठा करने वाले ये लोग बहुत ही सावधानी के साथ मधुमक्खी के छत्ते को काटकर शहद निकाल रहे हैं. पहाड़ी पर टंगा यह छत्ता काफी ऊंचाई पर है. शहद निकालने वाले लकड़ी पर एक ब्लेड लगाकर छत्ते को काटते हैं. यहां से निकले शहद को "मैड हनी" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें नशीला गुण होता है. लेकिन शहद खोजने वालों की यह परंपरा अब खतरे में है.
जलवायु परिवर्तन का असर
शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में मधुमक्खियों और फूलों की आबादी को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है. नेपाल में इसका असर साफ नजर आता है. यहां पीढ़ियों से तिब्बती मूल के गुरुंग समुदाय के लोग शहद के लिए हिमालय की खड़ी चट्टानों को छान रहे हैं. उनका कहना है कि हर साल शहद की मात्रा कम होती जा रही है.
मधुमक्खियों से बचकर
पहाड़ियों पर रहने वाली मधुमक्खियों से खुद को बचाने के लिए समूह के पुरुष बाखू पहनते हैं. यह एक तरह का स्कार्फ या पोंचो होता है, जिसे गांव की महिलाएं भेड़ के ऊन से बनाती हैं. शहद की तलाश करने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "पिछले साल करीब 35 छत्ते थे.अब हमारे पास मुश्किल से 15 बचे हैं." उसने बताया कि दस साल पहले लोगों ने करीब 600 किलोग्राम शहद इकट्ठा किया था, आज वे केवल 100 किलोग्राम ही इकट्ठा कर पाते हैं.
खतरनाक काम
यह काम पूरी तरह से खतरे से खाली नहीं है. बांस को लंबी, पतली पट्टियों में काटा जाता है और सीढ़ी बनाई जाती है जिस पर शहद के शिकारी खतरनाक ऊंचाइयों से लटकते हैं. 40 साल के आइता प्रसाद गुरुंग ने कहा, "इसमें गिरने का खतरा रहता है."
बलि और माफी
हर शिकार यात्रा से पहले, शिकारी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करने के लिए लगभग एक घंटे तक चलने वाला अनुष्ठान करते हैं. वे ईश्वर का आशीर्वाद मांगते हैं और मधुमक्खियों से कुछ लेने के लिए माफी मांगते हैं. उदाहरण के लिए वे प्रायश्चित करने के लिए मुर्गे की बलि देते हैं और उपहार के रूप में अंडे या चावल भी चढ़ाते हैं.
मधुमक्खियों को भगाने का तरीका
ये लोग मधुमक्खियों को उनके छत्ते से भगाने के लिए पत्तियां और टहनियां जलाते हैं. हालांकि शहद के शिकारी अनुभवी होते हैं, फिर भी वे मधुमक्खियों के डंक के प्रति संवेदनशील होते हैं.
खतरे से भरा पेशा
18 साल के बसंत गुरुंग को मधुमक्खियों ने काट लिया था. मधुमक्खी के डंक के कारण वे बेहोश हो गए और उनको सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया. हालांकि शहद जमा करने वाले खुद को मधुमक्खी के हमले से बचाने के लिए जालीदार टोपियों या मोटे जालीदार प्लास्टिक बैग का सहारा लेते हैं. लेकिन उनके पास बचाव के पूरे इंतजाम नहीं है.
नाजुक जीवन
जलवायु परिवर्तन मधुमक्खियों के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है. पिछले 10 सालों में अनियमित मौसम की स्थिति ने पूरे नेपाल में फूलों के मौसम को बाधित किया है. नेपाल के कृषि विश्वविद्यालय में कीट विज्ञान के प्रोफेसर सुंदर तिवारी कहते हैं, "उच्च और निम्न तापमान दोनों ही मधुमक्खियों के लिए समस्या हैं. वे बहुत आसानी से मर जाती हैं."