साइबर मॉबिंग में भारत आगे
६ अप्रैल २०१३माइक्रोसॉफ्ट ने किशोरों के व्यवहार में आने वाले बदलावों पर एक सर्वेक्षण किया. इसके नतीजे बताते हैं कि इंटरनेट प्रताड़ना में चीन और सिंगापुर के बाद भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है.
स्कूल के कुछ बदमाश लड़कों की दहशत के कारण नरेश अब न तो कंप्यूटर पर बैठता है और न ही मैदान में खेलने जाता है. वह शून्य में टकटकी बांधे रहता है. उसके माता-पिता अपने बेटे के व्यवहार में आए बदलाव की वजह से मनोचिकित्सक से उसका इलाज करा रहे हैं. ऐसा ही कुछ रवि के साथ भी हुआ. उसके दोस्तों ने फोटोशाप पर फोटो एडिट करके रवि की तस्वीर कक्षा की ही एक छात्रा के साथ जोड़ दी और सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपलोड कर दी. रवि और वह लड़की शर्म की वजह से एक महीने स्कूल ही नहीं गए.
इन घटनाओं में नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन यह बिल्कुल सच्ची घटनाएं हैं. इन मामलों में अभिभावकों का आरोप है कि साइबर मॉबिंग या नेट पर प्रताड़ना ही इसकी प्रमुख वजह है. आंकड़ों की बात करें तो भारत में इस तरह आनलाइन प्रताड़ना, परेशानी या शर्मिंदगी का शिकार होने वालों में 53 फीसदी नेट का इस्तेमाल करने वाले हैं. हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, अकेले कोलकाता महानगर में यह समस्या हर साल 30 फीसदी की दर से बढ़ रही है. लगभग 55 फीसदी अभिभावकों का मानना है कि नेटवर्किंग साइटों के कारण ऐसा हो रहा है. भारत के मेट्रो शहरों में करीब 40 प्रतिशत किशोर मोबाइल फोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
जानकारी का अभाव
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से गठित से बाल सुरक्षा समिति के सलाहकार रक्षित टंडन कहते हैं, "साइबर अपराधों और कानून की जानकारी नहीं होने की वजह से देश में ऐसे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं. किशोर इसके सबसे बड़े शिकार हैं." माइक्रोसॉफ्ट के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए टंडन कहते हैं कि जानकारी का अभाव ही साइबर मॉबिंग के बढ़ने की मुख्य वजह है. बाल कल्याण की दिशा में काम कर रहे एक गैरसरकारी संगठन के संयोजक धीरेंद्र कुमार कहते हैं, "सोशल नेटवर्किंग साइटों पर बनने वाले काल्पनिक मित्र किशोरों को कल्पना की दुनिया में ले जाते हैं. वहीं से उनके प्रताड़ित होने की जमीन तैयार होती है."
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के माता-पिता भी जाने-अनजाने उनको बढ़ावा देते हैं. अब हालत यह है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर पांच साल के बच्चे का भी अकाउंट बन जाता है जबकि इसकी न्यूनतम आयु 13 साल है.
अभिभावकों में जागरुकता जरूरी
कोलकाता के एक अध्यापक सुजीत सरकार कहते हैं, "इंटरनेट की विभिन्न सोशल साइटों पर अपमानित या प्रताड़ित होने का किशोर मन पर गहरा असर होता है. यह साइटें एक नशे की तरह कम उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेती जा रही हैं." उनके मुताबिक अभिभवाकों का इस खतरे के प्रति जागरूक होना जरूरी है. एंटी-वायरस बनाने वाली कंपनी सिमेन्टेक के सेल्स मैनेजर रीतेश चोपड़ा कहते हैं, "भारत में 77 फीसदी माता-पिता साइबर बुलियिंग के खतरों से अवगत हैं. साइबर मॉबिंग कहीं भी हो सकती है. इससे किशोर उम्र के बच्चों में उग्रता बढ़ रही है. वह अपनी हर बात पूरी कराना चाहते हैं." वह कहते हैं कि पहले दादागिरी स्कूल और खेल के मैदानों तक ही सीमित थी. ऑनलाइन पर सैंकड़ों लोगों के सामने धमकाए जाने या मजाक उड़ाए जाने की स्थिति में किशोरों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है इससे या तो वह उग्र हो जाते हैं या फिर हीन भावना का शिकार.
एकल परिवार भी वजह
मनोविज्ञान के प्रोफेसर द्वैपायन घोष एकल परिवारों और माता-पिता के कामकाजी होने को इसकी एक प्रमुख वजह मानते हैं. वह कहते हैं, "माता-पिता के दफ्तर जाने के बाद बच्चे ज्यादातर समय कंप्यूटर पर गुजारते हैं. मध्यम तबके के लोग भी अब बच्चों को लैपटाप और टेबलेट खरीद कर दे रहे हैं. इसके अलावा स्मार्टफोनों ने भी आनलाइन रहना आसान बना दिया है. लेकिन इन सबसे फायदे की बजाय नुकसान ही हो रहा है." मनोचिकित्सकों और बाल अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े संगठनों का कहना है कि साइबर बुलियिंग पर अंकुश लगाने के लिए माता-पिता को बच्चों से अधिक से अधिक बात करनी चाहिए और इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वह नेट पर क्या कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि दसवीं कक्षा से पहले किसी भी किशोर को नेटवर्किंग साइट का सदस्य नहीं बनना चाहिए. इंटरनेट की बजाए उनको पढ़ाई, खेल-कूद और गीत-संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः आभा मोंढे