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भारत: गठबंधन सरकार कैसे चलाएंगे मोदी

आमिर अंसारी
५ जून २०२४

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों में 240 सीटें तो जीत ली लेकिन उसके पास अकेले अपने दम पर सरकार बनाने का बहुमत नहीं है. बीजेपी को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहारे सरकार चलानी होगी.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Imtiyaz Khan/AA/picture alliance

लोकसभा की 543 सीटों में से एनडीए ने 292 सीटों पर जीत हासिल की है. बीजेपी के पास इतनी संख्या नहीं है कि वह अकेले सरकार बना ले. ऐसे में उसे अपने पार्टनर पर निर्भर होना पड़ रहा है. इस चुनाव में दो किंगमेकर उभरकर सामने आए हैं. वे हैं बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार और टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू.

बिहार में जेडीयू ने 12 सीटों पर दर्ज की है. इतनी ही सीटें बीजेपी ने जीती हैं. वहीं लोक जन शक्ति पार्टी (राम विलास) ने पांच सीट जीती हैं. आंध्र प्रदेश की कुल 25 लोकसभा सीटों में चंद्रबाबू की पार्टी टीडीपी ने 16 पर जीत हासिल की है.

क्या चाहते हैं नीतीश और चंद्रबाबू

बुधवार को दिल्ली में एनडीए की बैठक हो रही है और इसमें शामिल होने के लिए बिहार से नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू पहुंच गए हैं. चंद्रबाबू ने पत्रकारों से कहा कि वे एनडीए में हैं और बैठक के लिए जा रहे हैं.

कभी इंडिया अलायंस के साथ रहे नीतीश कुमार ने एन मौके पर पाला बदलते हुए बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसी तरह से चंद्रबाबू ने लोकसभा चुनाव के पहले एनडीए में वापसी की है. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले टीडीपी यूपीए का हिस्सा रह चुकी है.

आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू की पार्टी टीडीपी ने 16 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू की पार्टी टीडीपी ने 16 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कीतस्वीर: Ians

मीडिया में ऐसी रिपोर्टें हैं कि चंद्रबाबू नई सरकार में कई अहम मंत्रालयों की मांग कर सकते हैं. साथ ही वे लोकसभा स्पीकर का पद भी मांग सकते हैं. चंद्रबाबू आंध्र के लिए विशेष राज्य का दर्जा भी मांगते रहे हैं.

वहीं अगर बात बिहार की जाए तो पिछली बार की तरह मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी का मुद्दा इस बार भी जेडीयू और बीजेपी के बीच बार्गेनिंग के केंद्र में रहेगा. सांसदों की संख्या के अनुपात में मंत्री पद को लेकर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी भी प्रबल दावेदार हो सकते हैं. 2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर नीतीश बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे या फिर रोजगार और नौकरी को लेकर बड़े आर्थिक पैकेज की डील कर सकते हैं.

दबाव की राजनीति

ऐसा भी कहा जा रहा है कि देशभर में जातिवार गणना को लेकर भी नीतीश दबाव बना सकते हैं. यही विधानसभा चुनाव को जीतने की रणनीति की अहम बुनियाद होगी. आंकड़े बता रहे कि दोनों ही पार्टियों के समक्ष संकट समान है, फिर अगले चुनाव में एंटी इनकंबेंसी से भी उन्हें जूझना होगा.

नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी के समय में एनडीए की सरकार में रेल मंत्री का पद संभाल चुके हैं. जब वे इंडिया अलायंस में थे तो उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. अब वे एनडीए में हैं तो हो सकता है कि वो खूब मोलभाव करें.

एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार की भूमिका बढ़ी
एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार की भूमिका बढ़ी तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा दोनों नेताओं की राजनीति के बारे में कहती हैं, "नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू राजनीति के बहुत ही पुराने खिलाड़ी हैं. कई दफा सरकार में रह चुके हैं, केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. वे जानते हैं कि अपना हिस्सा कैसे लिया जाए."

उन्होंने कहा, "जहां तक चंद्रबाबू नायडू का सवाल है वो वाजपेयी के समय में भी एनडीए का हिस्सा थे. नरेंद्र मोदी के साथ अगर वो आज गठबंधन में शामिल हैं तो यह प्राकृतिक गठबंधन के तौर पर नहीं दिखता, उनके खिलाफ भी बहुत सारे मामले चल रहे हैं. वो जेल भी जा चुके हैं. यहां जांच एजेंसियों के दबाव का भी मसला बनता है."

मंगलवार को चुनाव नतीजे आने के बाद देर शाम जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया तो उन्होंने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का खास जिक्र किया. उन्होंने कहा चंद्रबाबू के नेतृत्व में आंध्र प्रदेश और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया है.

मोदी की बढ़ जाएंगी चुनौतियां?

बीजेपी ने जितनी सीटों की उम्मीद की थी उसको उतनी नहीं मिली. अब जब नई सरकार बनेगी तो सभी फैसलों में एनडीए गठबंधन के प्रमुख दलों को साथ लेकर चलना होगा. मोदी को अपने सहयोगी दलों को प्राथमिकता देनी होगी. विवादित विधेयक जैसे यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने से पहले नीतीश और चंद्रबाबू का ख्याल रखना होगा.

वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी डीडब्ल्यू से कहते हैं, "नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों ही ऐसे नेता है जिन्हें अपनी राजनीति के लिए अपने-अपने प्रदेशों में मुसलमानों की मदद की जरूरत है. इन्हें साथ रख नरेंद्र मोदी कम से कम ऐसे फैसले नहीं कर पाएंगे जिससे मुसलमानों को नुकसान हो क्योंकि यह दोनों नेता नरेंद्र मोदी को ऐसा करने नहीं देंगे."

अंसारी कहते हैं, "मोदी को सबसे ज्यादा अड़चन यूनिफॉर्म सिविल कोड और एनआरसी लागू करने में हो सकती है. ये दोनों नेता मोदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को निरंकुश होने से रोकने की भरसक कोशिश करेंगे."

स्मिता शर्मा यह भी कहती हैं कि चर्चा यह भी हो रही है कि चंद्रबाबू की ओर से लोकसभा स्पीकर का पद मांगा जा सकता है. इसके बारे में वो कहती हैं, "सहयोगी दल नहीं चाहते कि कल को अगर वापस उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश हो और लोकसभा में कोई बीजेपी का स्पीकर इस प्रक्रिया को आसान कर दें."

पिछले दो कार्यकाल में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था और मोदी ने इसी बदौलत कुछ बड़े फैसले भी लिए. लेकिन इस बार स्थिति उनके मुताबिक नहीं है. मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी वो बहुमत वाली सरकार चला चुके हैं. इस बार पहली बार होगा कि जब वह गठबंधन का नेतृत्व करेंगे.

अंसारी कहते हैं, "नरेंद्र मोदी बहुत ही जिद्दी नेता हैं, हमेशा अपनी मनमानी करते रहे हैं. गुजरात में उनके पास तीनों कार्यकाल में प्रचंड बहुमत था. वहां उन्होंने अपनी ही पार्टी के किसी दूसरे नेता की नहीं चलने दी. इसी तरह से उन्होंने प्रधानमंत्री पद के दो कार्यकाल पूरे किए, ना अपनी पार्टी के किसी नेता की सुनी और ना ही गठबंधन के किसी नेता की. लेकिन तीसरा कार्यकाल बिल्कुल अलग होगा. उन्हें हर बड़े फैसले को अमल में लाने के लिए अपने सहयोगी दलों की मदद की जरूरत होगी..इसके लिए मोदी को अपना रुख लचीला करना होगा."

स्मिता शर्मा डीडब्ल्यू से कहती हैं कि नरेंद्र मोदी अपने काम करने के तरीके को बदलेंगे या नहीं यह अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन उनके लिए हालात चुनौती भरे होंगे.

क्या बदल जाएगा मोदी के काम करने का तरीका

स्मिता शर्मा ने कहा, "2014 और 2019 में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था. इसलिए वे एकतरफा फैसला लेने में कामयाब रहे थे. उनकी कार्यशैली जो है वो बहुत ही स्ट्रॉन्गमैन की मानी जाती है. मोदी ने अभी तक गठबंधन युग को देखा नहीं है. जब इंडिया गठबंधन का गठन हुआ था तो एनडीए ने तुरंत बाद एक बाद बैठक बुलाई जिसमें तमाम छोटे-छोटे दल शामिल हुए."

स्मिता शर्मा कहती हैं कि मोदी सत्ता में रहने के लिए गठबंधन की राजनीति करेंगे लेकिन जहां तक उनके निजी व्यक्तित्व का सवाल है मुझे लगता है कि यह आम तौर पर धारणा है कि दूसरों दलों का मान-मनौव्वल करते हुए काम करना मोदी के लिए निश्चित रूप से आसान नहीं होगा.

स्मिता कहती हैं, "चंद्रबाबू और नीतीश कुमार सियासत के पक्की खिलाड़ी हैं, यह तो जरूर होगा कि इसमें (सरकार बनाने में) मोलभाव काफी होगा अगर वो इस गठबंधन का हिस्सा बनकर सरकार चलाने के लिए हामी भरते हैं."

अंसारी का कहना है कि अगर नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनकी सरकार "मोदी सरकार" नहीं कहलाएगी बल्कि "एनडीए सरकार" कहलाएगी. क्योंकि बहुमत मोदी या बीजेपी को नहीं मिला बल्कि एनडीए को मिला है. उन्होंने कहा,"इस सच्चाई को पचा पाना मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी."