कर्नाटकः विवाद के बाद वापस जाएंगे मजदूर
७ मई २०२०पिछले डेढ़ महीने के करीब टिन की छत के नीचे दिन गिनते प्रवासी मजदूरों के सामने जब कर्नाटक से निकलकर जाने का मौका मिला तो वे एक पल भी वहां नहीं रुकना चाहते थे. कर्नाटक सरकार ने जब बिहार, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने का फैसला लिया तो मजदूरों के मुरझाए चेहरे खिल उठे. लंबे समय से घर जाने का सपना देख रहे मजदूरों ने उसे सच होते देखा.
कुछ मजदूर खुशनसीब थे कि 3 मई और 5 मई के बीच चलाई गईं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सवार होकर अपने घरों को लौट गए. लेकिन शहर की बड़ी-बड़ी इमारतों में अपनी मेहनत, खून और पसीना लगाने वाले मजदूर उस वक्त ठगा सा महसूस करने लगे जब कर्नाटक सरकार ने अचानक अंतरराज्यीय ट्रेन सेवा रद्द कर दी. एक रिपोर्ट के मुताबिक 3 मई और 5 मई के बीच चलाई गई विशेष ट्रेनों से करीब 9,600 मजदूर ही अपने राज्य, अपने घर और अपने परिवार तक पहुंच पाए.
साउथ वेस्टर्न रेलवे (एसडब्ल्यूआर) ने सेवा के दौरान दानापुर, भुवनेश्वर, हटिया, लखनऊ, बड़काखाना और जयपुर के लिए ट्रेनें चलाई लेकिन 5 मई को राज्य सरकार ने अंतरराज्यीय ट्रेन सेवा रद्द कर दी. दरअसल 5 मई को मुख्यमंत्री ने बिल्डरों के साथ एक बैठक की थी और उसके बाद फैसला लिया कि ट्रेनें नहीं जाएंगी. मुख्यमंत्री ने व्यवसायों, निर्माण और अन्य औद्योगिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने और श्रमिकों की अनावश्यक यात्रा को नियंत्रित करने को लेकर यह फैसला लिया.
बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट भी किया और बताया कि बिल्डरों के साथ एक बैठक हुई जिसमें बिल्डरों ने प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर बातचीत की. उन्होंने कहा कि बिल्डरों ने बताया कि मजदूरों को सभी जरूरी सुविधा दी जा रही है और निर्माण कार्य शुरू हो चुका है. 5 मई के अपने ट्वीट में येदियुरप्पा ने कहा कि मंत्रियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रवासी मजदूरों को समझाए और उन्हें गृह राज्य जाने से मना करें. साथ ही मुख्यमंत्री ने मजदूरों से अपील की कि वे अफवाहों पर ध्यान ना दें और गैर जरूरी यात्रा से बचें.
बेंगलुरु स्थित पत्रकार यासिर बताते हैं, "मजदूर यहां नहीं रहना चाहते हैं, उन्हें डर है कि कहीं उन्हें कोरोना ना हो जाए. वे अपने घर और परिवार के बीच रहना चाहते हैं. मजदूरों को भय है कि अगर उन्हें कोरोना हो गया तो उनकी देखरेख कौन करेगा." यासिर का कहना है कि राज्य में 15.80 लाख पंजीकृत कर्मचारी है लेकिन असली संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है. वे कहते हैं, "प्रवासी मजदूरों के सामने अनिश्चितता है इसिलिए वे घर लौट रहे हैं"
बंधुआ मजदूर?
कर्नाटक सरकार के ट्रेन रोकने और मजदूरों को वहीं रहने के फैसले की तुलना लोग बंधुआ मजदूरी प्रथा से कर रहे हैं. कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी ने सवाल किया, "क्या भारतीय संविधान का कोई अस्तित्व है? यह मजदूरों के साथ बंधुआ की तरह बर्ताव करने से कहीं बुरा है."
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने भी मजदूरों को रोके जाने का मसला उठाते हुए कहा, "हम उन्हें (प्रवासी मजदूरों को) बंधक नहीं बना सकते. हमें उन्हें विश्वास में लेना होगा. सरकार और बिल्डरों को उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए." राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कर्नाटक को सख्त संदेश देने का आग्रह किया है. सोशल मीडिया पर पत्रकारों और आम लोगों ने सवाल किया कि अचानक ट्रेनें क्यों रोक दी गईं और क्या वे बंधुआ मजदूर हैं?
इसके जवाब में कर्नाटक के श्रम विभाग के सचिव कैप्टन मणिवन्नन ने ट्विटर के जरिए बताया, "कुछ समय के लिए ट्रेनों को रद्द करने का फैसला, यह देखते हुए लिया गया कि प्रवासी मजदूर भारी संख्या में रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे. जबकि उन्हें ले जाने की क्षमता 6,000 प्रति दिन थी, ट्रेनों के लिए 25 हजार लोग स्टेशन पहुंच रहे थे जिससे कोविड-19 का खतरा था. इसका बिल्डर लॉबी से कुछ लेना देना नहीं है."
कर्नाटक से लौटने के लिए मजदूर कितने बेताब हैं यह ट्रेन टिकट के आवेदन से ही पता चलता है. राज्य सरकार ने ऑनलाइन फॉर्म भरवाने के लिए वेबसाइट बनवाई है. और इसके जरिए करीब 2.13 लाख कर्मचारियों ने राज्य से घर लौटने के लिए खुद को पंजीकृत कराया है लेकिन अब वे अधर में हैं. दूसरी तरफ 6 मई को येदियुरप्पा सरकार ने राज्य में पंजीकृत मजदूरो के लिए राहत पैकेज का ऐलान किया. इसके तहत पंजीकृत 15.8 लाख मजदूरों को 3,000 रुपये दिए जाएंगे, इससे पहले इन मजदूरों को 2,000 रुपये दिए जा चुके हैं.
राजनीतिक बयानबाजी और मजदूरों के दबाव के बाद गुरुवार शाम कर्नाटक सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य तक पहुंचाने के लिए विशेष ट्रेन सेवा बहाल करने का फैसला किया है. ट्रेन रद्द करने के फैसले की जमकर आलोचना हुई थई. राज्य सरकार ने 8 मई से ट्रेन सेवा शुरू करने का फैसला किया है और इस बाबत उसने 9 राज्यों को चिट्ठी लिखी है यह जानने के लिए कि क्या वे इस बात से राजी है कि फंसे हुए मजदूरों को वापस भेज देना चाहिए.
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