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समाज

हाइवे पर चलते मजदूरों की जिम्मेदारी कौन लेगा?

आमिर अंसारी
१५ मई २०२०

श्रमिकों के पैदल चलने की तस्वीरें जो अखबार और टेलीविजन में मार्च के आखिर में आनी शुरू हुईं उनका सिलसिला अब भी जारी है. अब उनमें हादसों और श्रमिकों के घायल होने की तस्वीरों भी शामिल हो गईं हैं.

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Gastarbeiter Indien Khusrupur Patna
तस्वीर: IANS

लॉकडाउन की वजह से पहले तो दिहाड़ी मजदूर और फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी बिना किसी साधन के अपने घरों की तरफ जाने लगे लेकिन जब उनके लिए बसें और श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं तो वह भी कम पड़ गईं. फैक्ट्री, निर्माण, बाजार, मॉल और दिहाड़ी काम ठप्प हो जाने के कारण इन लोगों के लिए शहरों में गुजारा करना नामुमकिन हो गया. कोरोना वायरस और भुखमरी से बचने के लिए इन लोगों ने अपने गृह राज्य की तरफ जाना चाहा तो पिछले कुछ दिनों में हादसों की खबरें भी आईं.

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में 7 मई को रेलवे ट्रैक पर सो रहे 16 मजदूरों की मौत हो गई. यह विडंबना ही है कि भारत के पास अब दुनिया का दूसरा बड़ा सड़क नेटवर्क है, चार लेन की सड़क हो या दो लेन की सड़क, मजदूर बड़े-बड़े शहरों से अपने गांव कई सौ किलोमीटर पैदल ही चल कर जा रहे हैं. सेव लाइफ फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन की शुरुआत होने से लेकर 15 मई की सुबह 11 बजे तक देश में कुल 1,176 सड़क हादसे हुए, जिनमें 321 मौतें हुईं और 530 लोग घायल हुए.

फाउंडेशन ने आंकड़ों का विश्लेषण कर बताया कि इनमें 15 मई तक 111 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई और 384 प्रवासी घायल हुए. सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी डीडब्ल्यू से कहते हैं लॉकडाउन की वजह से सड़कों पर वाहनों की संख्या में जरूर कमी आई है लेकिन क्रैश से होने वाली मौत का अनुपात अभी भी पहले की तरह बना हुआ है. तिवारी कहते हैं कि सड़कें भले खाली हों लेकिन हादसे अभी भी हो रहे हैं.

तिवारी के मुताबिक, "इस तरह के हादसों के मुख्य तौर पर दो बड़े कारण हैं. पहला सड़कें खाली होने की वजह से रफ्तार और जिग-जैग ड्राइविंग बढ़ गई है. दूसरा कारण थकावट है क्योंकि पहले लोग हाइवे पर रुकते हुए और खाते-पीते जाते थे लेकिन अब लोग पूरी यात्रा एक बार में पूरा करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि कोई उन्हें रास्ते में ना रोके और वे अपनी मंजिल तक पहुंच जाए. और इसलिए सड़क पर हादसे हो रहे हैं." हालांकि तिवारी कहते हैं कि हर एक क्रैश का वह विस्तार से विश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि लॉकडाउन लगा है, उनके मुताबिक इन हादसों के पीछे इंजनीरियंग से जुड़े कारण भी हो सकते हैं.

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प्रवासी मजदूरों के लिए पर्याप्त मात्रा में बस और ट्रेन चलाने की जरूरत.तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir

मजदूरों के साथ हादसे

14 मई को ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में दो सड़क हादसे हुए जिनमें कुल 14 श्रमिकों की मौत हो गई. मध्य प्रदेश के गुना और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए अलग-अलग हादसों में 14 लोगों की मौत हुई. गुना में मजदूर ट्रक पर सवार हो कर महाराष्ट्र से अपने गृह राज्य यूपी लौट रहे थे. हादसे में आठ मजदूरों की मौत हो गई जबकि 54 लोग घायल हो गए. इससे पहले यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में पैदल चल रहे मजदूरों को राज्य की रोडवेज बस ने कुचल डाला. इस हादसे में छह मजदूरों की मौत हो गई.

यह मजदूर लॉकडाउन की वजह से पंजाब से अपने गृह राज्य बिहार के लिए पैदल ही जा रहे थे. इससे पहले 12 मई को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में यात्रियों से भरी बस टायर फटने की वजह से पलट गई. इस हादसे में 24 लोग घायल हो गए, यह सभी मजदूर महाराष्ट्र से आ रहे थे. इसी नरसिंहपुर में 10 मई को आम से भरे ट्रक पलटने से पांच मजदूरों की जान चली गई थी. यह लोग ट्रक में छिपकर हैदराबाद से आ रहे थे.

लॉकडाउन के लागू होने के बाद प्रवासी मजदूरों से जुड़े कई छोटे बड़े हादसों पर आईआईएम अहमदाबाद के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जगदीप छोकर कहते हैं कि लगता है कि प्रवासी मजदूर किसी की भी जिम्मेदारी के क्षेत्र में नहीं आते हैं. छोकर के मुताबिक, "बहुत सारे संस्थानों ने अपने अपने हिस्से का काम कर दिया है लेकिन उन सब कामों को इकट्ठा करने की जिम्मेदारी किसी की भी नहीं है. इसलिए लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अभी तक बहुत बुरे हालात में हैं. और यह सोचकर दुख होता है कि ये ऐसे ही हालात में रहेंगे. लगता है कि इनकी फिक्र किसी को नहीं है."

शुक्रवार 15 मई को प्रवासी मजदूरों के पैदल चलकर गृह राज्य जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका पर सुनवाई हुई. औरंगाबाद में हुए हादसे में 16 मजदूरों की मौत के मामले में यह याचिका दाखिल की गई थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह लोगों को चलने से नहीं रोक सकता है. याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया था कि अदालत सभी जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दे कि जो लोग सड़क पर चल रहे हैं उन्हें घर तक बिना शुल्क पहुंचाने का इंतजाम करे और यह सम्मानजनक तरीके से हो.

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जोखिम भरे हालात में घर लौटने को मजबूर.तस्वीर: Reuters/A. Dave

याचिकाकर्ता ने हाल ही में रेल पटरियों पर सो रहे 16 मजदूरों की ट्रेन से कटकर मारे जाने का हवाला दिया था. रेल हादसे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कोई रेल ट्रैक पर सोएगा तो उसे कोई कैसे रोक पाएगा?" सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले ही लोगों के लौटने का इंतजाम कर चुकी है. मेहता ने कोर्ट से कहा,"राज्यों के साथ समझौते के तहत लोगों को भेजा जा रहा है, हर किसी को उसकी बारी का इंतजार करना चाहिए. हम बल प्रयोग नहीं कर सकते हैं."

यही नहीं पुलिस से बचने के लिए लोग रेलवे ट्रैक या उसके बगल से चल कर भी अपने घरों की तरफ जा रहे हैं. सड़क पर पुलिस की मौजूदगी के कारण वे रेलवे ट्रैक के किनारे चलकर रास्ता तय कर रहे हैं. हालांकि औरंगाबाद में हुए हादसे के बाद रेलव ट्रैक पर निगरानी बढ़ा दी गई और पुलिस ऐसे लोगों को रोक भी रही है जो ट्रैक पर या उसके बगल से चलकर घरों की ओर जा रहे हैं.

सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों के साथ होने वाले हादसे पर तिवारी कहते हैं, "हम उन्हें लंबा चलने का मौका ही ना दें, हाइवे पर शटल सर्विस चलाएं और हाइवे पर चलने वाले लोगों को सही तरीके से दूसरी छोर तक भोजन और मास्क देकर पहुंचा दें. इससे पैदल चलने वालों के साथ हादसे काफी कम हो जाएंगे." काम नहीं होने की वजह से मजदूरों के पास पैसे नहीं बचे हैं और वे किसी तरह से पैदल या फिर ट्रक में छिपकर जान जोखिम में डालते हुए जाने की कोशिश में लगातार लगे हुए हैं.

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