क्या आपका बच्चा भी ऑनलाइन गेम खेलता है?
८ जनवरी २०२१राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) से अभिभावकों ने शिकायत की थी कि ऑनलाइन गेमिंग साइट्स बच्चों में जुआ, सट्टेबाजी और शोषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं. कोरोना वायरस महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई डिजिटल रूप से होने लगी हैं और कई बार बच्चे मोबाइल लेकर पढ़ाई के नाम पर ऑनलाइन गेम भी खेलने लगते हैं. अभिभावकों की शिकायतों पर एनसीपीसीआर ने ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को नोटिस जारी किया है. आयोग ने माईटीम11, ड्रीम 11, प्ले गेम 24 इनटू 7 आदि कंपनियों से इस मामले में जवाब मांगा है. एक अभिभावक ने अपनी शिकायत में कहा था कि उसके बेटे को गेमिंग साइट की ऐसी लत लगी कि उसने एक साल के भीतर ऐसी साइट पर 50 हजार रुपये तक जुए के तौर पर लगा दिए.
आयोग ने गेमिंग साइट्स से बच्चों के भ्रमित होने से रोकने के लिए दिशा निर्देशों के बारे में पूछा है. साथ ही आयोग ने सवाल किया है कि उनकी साइट्स पर बाल अधिकारों के हनन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.
आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के मुताबिक, "गेमिंग कंपनियां बच्चों को लुभाकर साइट्स पर अपने माता-पिता के पैसे खर्च करवाती हैं. बच्चों में जुआ और सट्टेबाजी की लत लग रही है."
कानूनगो का कहना है कि यह पूरी तरह से आपराधिक मामला है और कंपनियों से आयोग ने 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा है. गेमिंग कंपनियों ने आयोग के इन आरोपों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
भारत का गेमिंग बाजार
देश में इन दिनों क्रिकेट से जुड़े कई फैंटसी ऐप सक्रिय हैं. ऐप पर प्वाइंट हासिल कर लोग पैसे भी कमा रहे हैं. महामारी के दौरान इस तरह के ऐप और भी अधिक लोकप्रिय हुए हैं, क्योंकि लोगों के पास बाहर जाने का विकल्प नहीं था और वे पूरा समय घर पर ही रहते थे. गेमिंग साइट्स पर यूजर को दाखिल होने के लिए बेहद छोटी रकम देनी होती है. फैंटसी गेम सिर्फ क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है, इसमें फुटबॉल और एनबीए भी शामिल है. दरअसल देश में सट्टा गैरकानूनी है लेकिन इन गेमिंग साइट्स पर खिलाड़ियों को अपना "कौशल" दिखाना होता है और उसके बदले वे पैसे बना सकते हैं.
अनुमान है कि देश के करीब 10 करोड़ गेमरों में से सिर्फ 20 प्रतिशत फैंटसी प्लैटफॉर्मों पर पैसे दे कर खेलते हैं, जबकि बाकी मुफ्त खेलों तक ही सीमित रहते हैं. डाटा प्लेटफॉर्म स्टैटिस्टा के मुताबिक सस्ते स्मार्ट फोन और सस्ता डाटा की वजह से 2025 तक भारत में इंटरनेट यूजरों की संख्या 70 करोड़ से बढ़ कर 97.5 करोड़ तक हो जाएगी.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी (आईएएनएस इनपुट के साथ)
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