भारत-नेपाल के बीच अहम बैठक
१७ अगस्त २०२०भारत के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर बधाई दी थी. नेपाल के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के साथ ही सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुने जाने पर भी बधाई दी थी. जानकार दोनों नेताओं के बीच इस बातचीत को भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की नेपाल की नई पहल के तौर पर देख रहे हैं. नेपाल और भारत के रिश्तों में तल्खी उस वक्त पैदा हो गई थी जब नेपाल ने मई के महीने में विवादित इलाके को नए नक्शे के जरिए अपना इलाका बताया था. भारत ने इस कदम का विरोध किया लेकिन फिर भी नेपाल नक्शे पर अड़ा रहा और उसके बाद नेपाल ने एक संवैधानिक संशोधन कर नए नक्शे को मंजूरी दे दी. नेपाल ने नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपना इलाका बताते हुए नए नक्शे में शामिल किया था. भारत ने नेपाल के नए नक्शे को मानने से इंकार किया और कहा कि वह ऐतिहासिक तथ्यों या साक्ष्यों पर आधारित नहीं है.
बैठक क्यों अहम
नक्शा विवाद और अन्य मुद्दों पर संवादहीनता के बीच सोमवार 17 अगस्त को भारत-नेपाल के बीच अहम बैठक हो रही है. इस बैठक का नाम नेपाल-भारत निरीक्षण तंत्र है और आज होने वाली यह आठवीं बैठक है. हालांकि यह बैठक पहले से निर्धारित बैठक है और इसका सीमा विवाद से कोई खास संबंध नहीं है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बैठक में भारत की ओर से नेपाल में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा और नेपाल के विदेश सचिव शंकर दास बैरागी शामिल होंगे. नेपाल-भारत निरीक्षण तंत्र 2016 में विकसित हुआ था. बैठक में नेपाल में चल रही उन परियोजनाओं को लेकर चर्चा होगी जिनमें भारत ने पूंजी लगाई है. पड़ोसी देश में भारत कई तरह के विकास प्रोजेक्ट में मदद कर रहा है और दोनों के बीच संबंध दोस्ताना रहे हैं लेकिन हाल के कुछ बयानों और कदमों ने दोनों के बीच दूरी को बढ़ाने का ही काम किया है. भारत के साथ रिश्तों को लगातार बिगड़ता देख नेपाल अब बातचीत के लिए बेकरार दिख रहा है. इसीलिए नेपाल के प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को फोन पर स्वतंत्रता दिवस की बधाई भी दी थी.
मौजूदा हालात को देखते हुए यह बैठक अहम हो जाती है और संभावना है कि इस बैठक के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर हो पाएंगे और आने वाले समय में दोनों देशों के बीच दोस्ती और गहरी होगी. साथ ही नेपाल पर चीन की भी नजर है और कई जानकारों का यह मानना है कि मौजूदा सरकार चीन के बहकावे पर ऐसे कदम उठा रही है जिनसे भारत नाराज हो.
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