तालिबान के साथ भारत ने की पहली औपचारिक बैठक
१ सितम्बर २०२१अमेरिका के अफगानिस्तान में युद्ध समाप्ति के ऐलान के साथ ही भारत ने अफगानिस्तान के नए शासक तालिबान से बातचीत शुरू कर दी है. पहले भी ऐसी खबरें आई थीं कि भारतीय अधिकारी तालिबान के संपर्क में हैं लेकिन भारत सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की थी. 15 अगस्त को काबुल पर नियंत्रण के बाद यह भारत का तालिबान के साथ पहला आधिकारिक संपर्क है.
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. तालिबान के आग्रह पर यह बैठक भारत के दूतावास में हुई.”
कई मुद्दों पर हुई बात
विदेश मंत्रालय के मुताबिक इस बैठक में भारतीयों की वापसी समेत कई मुद्दों पर बातचीत हुई. बयान में कहा गया, "बातचीत रक्षा, सुरक्षा और अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की जल्दी वापसी पर केंद्रित रही. भारत आना चाह रहे अफगान नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों की यात्रा का मुद्दा भी उठा.”
तस्वीरों मेंः मिशन काबुल
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया. मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "राजदूत मित्तल ने भारत की यह चिंता भी जाहिर की कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी सूरत में भारत के खिलाफ या आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए. तालिबान के प्रतिनिधि ने भारतीय राजदूत को भरोसा दिलाया कि इन चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा.”
दीपक मित्तल भारत के वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ हैं. वह विदेश मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान) रह चुके हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार मुताबिक भारतीय विदेश मंत्रालय में मौजूदा जॉइंट सेक्रटरी (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान) जे पी सिंह के साथ मित्तल पहले भी दोहा में तालिबान नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मिले थे.
तालिबान का बयान
मित्तल से बैठक से पहले शनिवार को स्तानिकजई ने अपने बयान में भारत का जिक्र किया था. भारत को ‘इस उप महाद्वीप के लिए बेहद महत्वपूर्ण' बताते हुए स्तानिकजई ने कहा था कि तालिबान पहले की तरह ही भारत और अफगानिस्तान के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंध जारी रखना चाहता है.
स्तानिकजई का यह बयान सोशल मीडिया पर 46 मिनट के एक वीडियो के रूप में जारी किया गया था, जिसे अफगानिस्तान के मिल्ली टीवी पर भी प्रसारित किया गया था. बीते रविवार ही खबर आई थी कि भारत की अध्यक्षता वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने एक प्रस्ताव में तालिबान को आतंकवादी संगठन के रूप में नहीं लिखा था.
देखेंः अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
तालिबान 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर राज कर चुका है. उस प्रशासन में स्तानिकजई कार्यवाहक सरकार के उप विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त हुआ था. तब भी स्तानिकजई ने भारत के साथ इसी तरह के संबंध चाहे थे लेकिन भारत ने न तो उससे मुलाकात की थी और न तालिबान की सरकार को मान्यता दी थी. तालिबान की उस सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली थी.
भारत की उलझन
तालिबान के पिछले शासन के साथ भारत के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं. 1999 में भारत की इंडियन एयरलाइंस के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और वे उसे अफगानिस्तान ले गए थे. अपने लोगों को छुड़ाने के लिए भारत को तीन पाकिस्तानी आतंकी छोड़ने पड़े थे.
पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है. देश के सभी 34 राज्यों में उसकी छोटी बड़ी कोई परियोजना चल रही है. इसमें काबुल में बना नया संसद भवन भी शामिल है, जिस पर पिछले महीने तालिबान ने कब्जा कर लिया.
दक्षिण एशिया पर तीन किताबें लिख चुकीं पूर्व रॉयटर्स पत्रकार मायरा मैकडॉनल्ड कहती हैं कि तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो जाना भले ही भारत के लिए धक्का था, लेकिन नई दिल्ली को अभी खेल से बाहर नहीं समझा जा सकता.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यह इतिहास का दोहराव नहीं है. इस बार हर कोई बहुत सावधान रहेगा ताकि पिछली बार की तरह अफगानिस्तान में आतंकवाद का गढ़ स्थापित न हो जाए. और फिर, भारत पाकिस्तान से कहीं ज्यादा बड़ी आर्थिक ताकत है."
तालिबान भी इस बात को समझता है. उसके एक वरिष्ठ सदस्य ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि गरीब अफगानिस्तान को ईरान, अमेरिका और रूस के अलावा दक्षिण एशियाई देशों की मदद की भी जरूरत होगी.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)