भारत: कई संघर्ष हैं शहर में पढ़ने जाने वाली लड़कियों के
१३ अगस्त २०२४हाल ही में किए गए पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के अनुसार, साल 2022-23 में भारत की कुल श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी करीब 37 फीसदी रही. जबकि 2017-18 में यह प्रतिशत 23.3 फीसदी था. इस बढ़ती भागीदारी के साथ, सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है.
सरकार ने महिलाओं के लिए फीस में कटौती और परीक्षा केंद्रों को घर से ज्यादा दूर न देने जैसे कदम उठाए हैं. इन प्रयासों का असर यूपीएससी के परिणामों में भी साफ दिखता है. यूपीएससी द्वारा अनुशंसित महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत 2018 में 24 फीसदी से बढ़कर 2022 में 34 फीसदी हो गया है. इस प्रकार का चलन अन्य परीक्षाओं में भी देखने को मिला है. लेकिन शहरों में पढ़ने के लिए लड़कियों की चुनौतियां अभी भी है.
कोचिंग सेंटरों के लिए नियम बनाने में पीछे क्यों है सरकार
महंगा किराया और सुरक्षा की चिंता
शहरों में बेहतर शिक्षा की तलाश में दूर-दराज के इलाकों से लड़कियां अपने सपनों को साकार करने के लिए आ रही हैं. लेकिन, इस सफर में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. एक ओर जहां बड़े शहरों में शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध हैं, वहीं दूसरी ओर इन सुविधाओं तक पहुंच बनाना लड़कियों के लिए आसान नहीं है.
दिल्ली के करोल बाग में यूपीएससी की तैयारी कर रही निशा ने बताया, "पीजी में एक बेड का किराया 10 हजार है और कमरा चार लड़कियों के साथ शेयर करना पड़ता है." शहरों में रहने की महंगी व्यवस्था के अलावा भी सुरक्षा की चिंता लड़कियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है. निशा बताती हैं, "पढ़ने के लिए सुबह 8 बजे लाइब्रेरी के लिए निकल जाती हूं, और रात को 10 बजे सोने के समय कमरे में लौटती हूं."
दिल्ली के ही संगम विहार में एक पेइंग गेस्ट हाउस के मालिक ने बताया कि एक बेड का किराया 10 हजार रुपये है. वहीं, करोल बाग के एक पीजी मालिक का कहना है कि "अगर एक अकेले का कमरा चाहिए, तो किराया 26 से 30 हजार तक है."
लड़कियों के लिए शहर में अलग से फ्लैट लेकर रहना भी आसान नहीं होता, क्योंकि सुरक्षा की चिंता हमेशा बनी रहती है.
इंटरनेट का चलन बढ़ा लेकिन अब भी नेटवर्क की समस्या
दूरदराज के इलाकों से आने वाली लड़कियों के लिए नेटवर्क की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है. प्रतापगढ़ की अंकिता त्रिपाठी, जो नेट की तैयारी कर रही हैं, बताती हैं कि उन्हें नेटवर्क की समस्या के कारण अपने रिश्तेदारों के घर रहना पड़ता है. गांव में नेटवर्क नहीं आता, इसलिए प्रतापगढ़ जाकर रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ाई करती है. अंकिता कहती हैं कि "नेटवर्क इशू रहता है इसकी वजह से ही तो जाना पड़ता है वरना पढ़ना तो ऑनलाइन में ही था.”
महिलाओं के लिए शहर में रहना और शिक्षा हासिल करना सिर्फ एक चुनौती ही नहीं, बल्कि उनके सपनों को साकार करने की दिशा में एक संघर्ष भी है. इन कठिनाइयों के बावजूद, लड़कियां अपने घरों से दूर रहकर, महंगे किराए पर छोटे कमरों में रहकर, और सुरक्षा की चिंताओं के बावजूद भी पढ़ाई कर रही हैं. उनके इस संघर्ष की कहानी यह भी बताती है कि अब भी समाज से समर्थन और सुविधाओं की जरूरत है, ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर सकें.