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शौचालय के जरिए सम्मान की लड़ाई लड़ रहीं भारतीय महिलाएं

मुरली कृष्णन
५ मई २०२३

पूर्वी ओडिशा में महिलाएं अपने घरों और अपने समुदाय को शौचालय दिलाने में प्रेरक शक्ति के तौर पर काम कर रही हैं. इन महिलाओं का मकसद खुले में शौच प्रथा से मुक्ति पाना है.

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ओडिशा में शौचालय बनाने के काम में जुटीं महिलाएं
ओडिशा में शौचालय बनाने के काम में जुटीं महिलाएंतस्वीर: Shipra Saxena/WASH UNICEF

ओडिशा के संभलपुर में नीलडूंगरी गांव की रहने वाली बेदामती मिर्धा अपने आस-पास के लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करने वालों में सबसे आगे रहती हैं कि वो शौच के लिए बाहर जंगल में जाने की बजाय अपने घरों में ही शौचालय बनवाएं.

दो साल पहले महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्य के तौर पर मिर्धा ने अपने घर में एक दो पिट वाला शौचालय बनवाया था जिसकी वजह से उनके परिवार में काफी बदलाव आया है.

खुले में शौच के खात्मे की लड़ाई

डीडब्ल्यू से बातचीत में मिर्धा कहती हैं, "हम लोग खुले में शौच जाने के चलते होने वाली तमाम बीमारियों और दूसरी परेशानियों से चिंतित नहीं होते. हमें यह समझना ही होगा कि शौचालय का हमारे जीवन में कितना महत्व है.”

गांव के आखिरी छोर पर रहने वाली प्रभासिनी मुंडा एक कैंसर सर्वाइवर हैं. पिछले साल अपने घर में ही टॉयलेट बनवाने वाली प्रभासिनी की कहानी भी कुछ इसी तरह है.

डीडब्ल्यू से बातचतीत में मुंडा कहती हैं, "शौच के लिए खुले खेतों में जाने पर सांप और दूसरे जहरीले कीड़ों का डर हमेशा बना रहता है. मानसून के मौसम में तो यह समस्या और भी खतरनाक हो जाती है और इसीलिए मैंने भी निश्चय किया कि शौचालय एक जरूरत थी.”

मुंडा आगे बताती हैं, "हम लोग इसे इज्जत घर कहते हैं और अब महिलाओं को डरने की जरूरत नहीं है.”

महिलाओं ने गांवों में घर-घर जाकर उन्हें साफ-सुथरा रहने के तरीकों पर बात की और उन सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जिनके तहत घरों में शौचालय बनवाने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है.

खुले मैं शौच की वजह से महिलाओं और लड़कियों को अक्सर मौखिक, शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से वो खुद को कमजोर समझने लगती हैं- शारीरिक तौर पर भी और मानसिक तौर पर भी.

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ओडिशा का उदाहरण

ओडिशा राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में, महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) यह सुनिश्चित करने के लिए उदाहरण पेश कर रही हैं कि घरों में बिना किसी प्रतिरोध के शौचालय बनाए जाएं.

यह अभियान राज्य के छह जिलों- आंगुल, जगतसिंहपुर, संभलपुर, देवगढ़, कोरापुट और गजपति में चलाया जा रहा है. आने वाले दिनों में इसे राज्य के 14 अन्य जिलों में भी चलाया जाना है.

हालांकि, ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता की स्थिति अभी भी खराब है, लेकिन ओडिशा देश के उन पांच राज्यों में है जहां कई गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में एक स्वयं सहायता समूह की लीडर सुरति बाडा कहती हैं, "यूनिसेफ और वॉटर.ओरआरजी ने ओडिशा लावलीहुड्स मिशन के साथ सहभागिता की है. यह सरकार द्वारा संचालित एक परियोजना है जिसका मकसद महिलाओं को विभिन्न तरीकों के प्रशिक्षण के जरिए उनके जीवन स्तर में सुधार कर उन्हें सशक्त करना है. इस तरह से इस कार्यक्रम को गति मिलती है और समुदाय को इसके दीर्घकालिक लाभ मिलते हैं.”

दो गड्ढों वाले एक शौचालय को बनाने की लागत 15 से 20 हजार रुपये के करीब बैठती है. अब तक करीब 12 हजार लोन दिए गए हैं जिनसे करीब 60 हजार लोग लाभान्वित हुए हैं. ज्यादातर लोन स्वच्छता के मकसद से ही दिए गए हैं.

Water.org से जुड़े अभिषेक आनंद कहते हैं, "सरकारी योजनाओं के जरिए गरीब इलाकों में पेय जल और स्वच्छता उपलब्ध कराने की दिशा में वित्तीय सहायता काफी अहम होती है.”

खुले मैं शौच की वजह से महिलाओं और लड़कियों को अक्सर मौखिक, शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है
खुले मैं शौच की वजह से महिलाओं और लड़कियों को अक्सर मौखिक, शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता हैतस्वीर: Murali Krishnan/DW

शौचालय निर्माण को बढ़ावा

अभी हाल तक, लोगों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी कि स्वच्छता, पेयजल और स्वास्थ्य संबंधी निर्माण और रखरखाव के लिए सरकार वित्तीय सहायता प्रदान करती है. लेकिन अब स्थिति बदल गई है.

दो गड्ढे वाले शौचालय यह सुनिश्चित करते हैं कि मानव मल का निस्तारण मिट्टी और पानी को प्रदूषित किए बिना भी प्राकृतिक तरीके से हो सकता है. इस शौचालय तकनीक की मुख्य विशेषता इसके दो गड्ढे हैं जो कि वैकल्पिक तरीके से इस्तेमाल होते हैं. मानव मल का निस्तारण करके यह घरों में ही एक पूर्ण स्वच्छता समाधान मुहैया कराता है.

एक बार जब शौचालय बन जाता है, तो स्वयं सहायता समूह की निगरानी टीम यह सुनिश्चित करती है कि वो लोग इसका नियमित इस्तेमाल कर रहे हैं और खुले में शौच के लिए नहीं जा रहे हैं.

एक स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष सकुंतला मिर्धा डीडब्ल्यू को बताती हैं, "हमारा सपना है कि हम पूरे राज्य में शौचालय मुहैया करा सकें. हम कर्ज लेते हैं और सरकारी अधिकारी इस मामले में हमारा काफी सहयोग करते हैं. कई सदस्य तो कर्ज की राशि साल भर के भीतर ही वापस करने में सक्षम हैं.”

महिलाओं ने दो पिट वाले गड्ढे को ढकने के लिए कंक्रीट के छल्ले बनाना शुरू किया और आस-पास के गांवों में इन्हें बेच दिया
महिलाओं ने दो पिट वाले गड्ढे को ढकने के लिए कंक्रीट के छल्ले बनाना शुरू किया और आस-पास के गांवों में इन्हें बेच दियातस्वीर: Murali Krishnan/DW

देखा जाए तो शौचालय महिला सशक्तिकरण के इतिहास में सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक है. कई अध्ययन बताते हैं कि सार्वजनिक स्वच्छता में सुधार के कारण महिलाओं के कामकाज के समय को दस फीसद तक बचाया है और महिलाओं में साक्षरता दर भी इससे बढ़ी है.

राज्य के तमाम हिस्सों में यह देखने में आया है कि महिलाएं अब वो काम भी करने लगी हैं जो परंपरागत रूप से नहीं करती थीं. मसलन, शौचालय निर्माण के दौरान राजमिस्त्री का काम या फिर ठेकेदारी का काम.

खुलिया गांव की रहने वाली सौदामिनी बताती हैं, "हम लोगों ने दो पिट वाले गड्ढे को ढकने के लिए कंक्रीट के छल्ले बनाना शुरू किया और आस-पास के गांवों में इन्हें बेच दिया. इससे हमें अतिरिक्त आय भी हो रही है और यह हर उस शौचालय के लिए प्रोत्साहन है जिसे हम बनाने में मदद करते हैं.”

महिलाओं का सशक्तिकरण ओडिशा सरकार द्वारा चिह्नित प्रमुख विकास कार्यक्रमों में से एक है. राज्य सरकार के एक प्रमुख कार्यक्रम मिशन शक्ति ने अब तक 6 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह बनाए हैं.

साल 2014 में बने सरकार के स्वच्छ भारत मिशन या क्लीन इंडिया का उद्देश्य था कि अक्टूबर 2019 तक देश के सभी शहरी निकायों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया जाए.

अब (ओडीएफ) को बनाए रखने के लिए सार्वजनिक शौचालयों के रखरखाव इत्यादि पर ध्यान केंद्रित किया गया है. साथ ही मल और कीचड़ के प्रबंधन के संदर्भ में यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि वाटर बॉडीज में किसी तरह का कीचड़ या मल सीधे न छोड़ा जाए.

यूनिसेफ के वाटर सेनिटेशन और हाइजीन स्पेशलिस्ट सुजॉय मजूमदार कहते हैं कि यह पहल सुरक्षित तरीके से स्वच्छता प्रबंधन में योगदान दे रही है. इसमें सभी के लिए साफ शौचालय और जल सेवाएं शामिल हैं, साथ ही आजीविका कार्यक्रम के जरिए महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना भी शामिल है ताकि वो आगे चलकर अपने परिवार का बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सके.

डीडब्ल्यू से बातचीत में मजूमदार कहते हैं, "यह महिलाओं को राजमिस्त्री, प्लंबर्स और स्वच्छता संबंधी कार्यों के प्रशिक्षण के जरिए उन्हें लंबे समय तक आय का साधन भी मुहैया कराता है.”