रक्षा के बाद अब टेक्नोलॉजी और व्यापार में सहयोग पर जोर
१३ जुलाई २०२३फ्रांस के साथ भारत का कुल व्यापार ब्रिटेन से कम है. यहां तक कि यह जर्मनी से भी कम है. फिर भी जब भी दुनिया में भारत के सबसे अहम सहयोगियों की बात आती है तो फ्रांस का नाम शुरुआती देशों में होता है. यह गुत्थी ही भारत-फ्रांस संबंधों को समझने की कुंजी है.
साल 1998 की बात है. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में परमाणु परीक्षण के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ा हुआ था. ठीक उसके बाद भारत ने फ्रांस के साथ सामरिक सहयोग समझौता किया. भारत के लिए सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के दावे को समर्थन देने वाला सुरक्षा परिषद का पहला स्थाई सदस्य भी फ्रांस ही था. अमेरिका के परमाणु प्रतिबंध हटाने के बाद 2008 में भारत के साथ पहला शांतिपूर्ण परमाणु समझौता करने वाला देश भी फ्रांस था.
वैश्विक राजनीति में पक्की दोस्ती
इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद भी फ्रांस पहले देशों में था, जिसने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे के बजाए भारत और पाकिस्तान के बीच का मुद्दा माना. ये मामले भारत के लिए व्यापार से कहीं ज्यादा अहम रहे हैं. यही वजह है कि फ्रांस को वर्तमान में भारत का बेहद अहम राजनीतिक सहयोगी कहा जा सकता है.
हालांकि विदेश व्यापार के मसले पर भी भारत की रुचि बढ़ी हुई है. लेकिन जानकार कहते रहे हैं कि चीन की तरह दुनिया का सप्लायर बनने के बजाए, भारत के लिए अच्छा ये होगा कि वो हाई एंड प्रोडक्ट्स के निर्माण के रास्ते खोले. इस दिशा में फ्रांस भारत के लिए एक अहम सहयोगी हो सकता है.
डिफेंस टेक्नोलॉजी की चाहत
इस पूरे व्यापार और उद्योग को सहारा देने के लिए भारत को बड़े स्तर पर ऊर्जा की जरूरत है. और जलवायु परिवर्तन की बहस के बीच ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत स्वच्छ ऊर्जा और परमाणु तकनीकों पर बहुत अधिक निर्भर है. फ्रांस इसमें लंबे समय से भारत का सहयोग कर रहा है और भारतीय प्रधानमंत्री के हालिया दौरे पर इसपर नए समझौते भी हो रहे हैं.
फ्रांस भारत को लंबे समय से फाइटर जेट और रक्षा सामग्री बेचता रहा है. अब भारत डिफेंस टेक्नोलॉजी के मामले में भी फ्रांस से सहयोग चाहता है ताकि भारत खुद भी फाइटर जेट और पनडुब्बियों के निर्माण में आगे बढ़ सके और मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी भारतीय योजनाएं सिर्फ यूरोप के सुपरमार्केट्स तक ही सामान पहुंचाने तक न सीमित हो जाएं.
अंतरिक्ष में इंसान भेजने में मदद
अन्य कई मोर्चों पर भी फ्रांस, भारतीय छवि में आ रहे बदलावों में योगदान दे रहा है. एयरबस विमानों की डील में यह देखने को मिला. जिससे भारत के घरेलू विमान उद्योग को काफी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. इसके अलावा भारत और फ्रांस लंबे समय से अंतरिक्ष के मामले में सहयोग करते आ रहे हैं.
भारत फ्रांस के लॉन्च स्टेशन कुरू से 20 से ज्यादा सैटेलाइट्स लॉन्च कर चुका है. फ्रांस की साझेदारी में भी भारत ने कई सैटेलाइट छोड़े हैं. अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने के भारतीय कार्यक्रम में भी फ्रांस सहयोग कर रहा है.
रक्षा सहयोगी फ्रांस
यूरोप के देशों से भारत के अलग-अलग राजनयिक संबंध रहे हैं लेकिन यूरोपीय संघ से सीधे संबंध स्थापित करना, भारत के लिए निर्यात और रणनीति के लिहाज से फायदेमंद साबित हो सकता है. इस दिशा में भी फ्रांस से मदद मिलने की गुंजाइश है.
चूंकि भारत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे को हमेशा उठाता रहा है. ऐसे में सेनाओं के बीच सहयोग और हिंद महासागर में सुरक्षा के लिए साझेदारी भारत और उसके आसपास के इलाकों में चीनी आक्रामकता जैसे मुद्दों से निपटने के लिए जरूरी है.
बहुध्रुवीय दुनिया के साथी
नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में रफाल डील पर जितने सवाल थे, उनके बीच डील को पूरा कर पाना आसान नहीं था. लेकिन विपक्ष के तमाम अभियानों के बावजूद नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक जोखिम उठाते हुए इसे पूरा किया. इसी से 26 नए रफाल मरीन विमानों और तीन नई स्कॉर्पियन पनडुब्बियों की रक्षा खरीद का रास्ता खुला, जो चीन के पड़ोसी भारत की रक्षा स्थिति को मजबूत करने के काम आएंगे.
भारत लंबे समय से बहुध्रुवीय दुनिया की वकालत करता रहा है. इस मोर्चे पर भी फ्रांस एक अहम सहयोगी हो सकता है. हालांकि हाल ही में चीन को लेकर फ्रेंच राष्ट्रपति माक्रों के बयान से दुनिया के कई देशों में असहजता थी, भारत भी ऐसे देशों में शामिल था. ऐसे में नियमित होने वाली मुलाकातें चीन के मुद्दे पर भी एक दूसरे के रुख को करीब लाने में मददगार हैं.