राजस्थान के ओरणों को पवनचक्कियों से भारी खतरा
थार रेगिस्तान हवा से बिजली बनाने की एक मुफीद जगह साबित हो रहा है, लेकिन पवनचक्कियों के साये में रहने वाले लोगों का कहना है कि वे इसकी बड़ी कीमत चुका रहे हैं. इनसे राजस्थान की समृद्ध ओरण परंपरा को नुकसान हो रहा है.
हवा की ताकत से साफ बिजली
पवनचक्कियां, हवा की ताकत बटोरकर बिजली बनाती हैं. जलवायु संकट से निपटने के लिए हमें जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल घटाने और साफ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने की बेहद जरूरत है. यूं देखें तो पवनचक्कियों में फायदे ही फायदे दिखते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं.
थार रेगिस्तान में पवनऊर्जा की बड़ी संभावना
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. जलवायु लक्ष्यों के मुताबिक, भारत अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता बढ़ा रहा है. इसी क्रम में थार रेगिस्तान, पवन और सौर ऊर्जा का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है.
हवा से कितनी बिजली बना सकता है राजस्थान
जैसलमेर जिले के आसपास का इलाका सैकड़ों पवनचक्कियों से भरा है. यह भारत के सबसे बड़े ऑनशोर (समुद्र से दूर, जमीन पर) विंड फार्मों में से एक है. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, राजस्थान पांच गीगावॉट पवन ऊर्जा मुहैया कराने की क्षमता रखता है. गीगावॉट, बिजली मापने की एक यूनिट है. एक गीगावॉट मतलब 100 करोड़ वॉट.
किसानों और चरवाहों की शिकायत
ये विंड फार्म अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली का उत्पादन बढ़ाकर जलवायु लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मददगार तो हैं, लेकिन स्थानीय किसानों और चरवाहों को इनसे शिकायत है. उनका कहना है कि चरागाहों को नुकसान हो रहा है और 'ओरण' भी खतरे में हैं. तस्वीर में: जैसलमेर के पास सावता गांव में स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता सुमेर सिंह भाटी ओरणों के संरक्षण का अभियान चला रहे हैं.
क्या हैं ओरण
ओरण शब्द का मूल संस्कृत भाषा के 'अरण्य' (जंगल) में माना जाता है. यह स्थानीय आबोहवा और जलवायु को समझते हुए कुदरती स्थितियों से तारतम्य बिठाकर अपने लिए राह निकालने की एक समृद्ध परंपरा है. राजस्थान के कई गांवों में पूजनीय स्थलों, जैसे मंदिर के पास की जमीन को ओरण का दर्जा देकर सुरक्षित छोड़ दिया जाता है. ओरण खुद में भी बेहद पवित्र माने जाते हैं और आस्था का यह भाव शायद उनकी भूमिका के कारण है.
किस काम आते हैं ओरण
ओरण सदियों पुरानी ग्राम परंपरा का हिस्सा हैं. इनपर खेती नहीं की जाती. यहां देसी बबूल जैसी स्थानीय वनस्पतियां फलती-फूलती हैं. ये ऊंट जैसे जानवरों के लिए चरागाह बनते हैं. ओरण बरसात के पानी को जमा करने और भूमिगत जल बढ़ाने की दिशा में भी बेहद अहम हैं. कम बरसात वाले मरुस्थलीय इलाके में आसमानी पानी को सुरक्षित जमा करना, पेड़-पौधों और जानवरों के अलावा खेती जैसी गतिविधियों के लिए भी बेहद अहम है.
ओरण क्षेत्र में पवनचक्कियां!
ओरण पहले से ही अतिक्रमण और मिट्टी के लिए होने वाली खुदाई के कारण जोखिम में थे, अब पवनचक्कियों और सिर के ऊपर बिछी बिजली की लंबी तारों का अतिरिक्त संकट आ खड़ा हुआ है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों के निर्माण कार्य से ओरण क्षेत्र नष्ट हो रहे हैं. एएफपी की एक खबर के मुताबिक, जैसलमेर इलाके के कई किसानों का कहना है कि सामुदायिक चरागाहों पर पवनचक्कियां बना दी गई हैं.
"किसान कीमत चुका रहे हैं"
पवनचक्कियों से जुड़े निर्माण कार्य में शामिल भारी ट्रकों की आवाजाही से पानी के स्रोतों को नुकसान पहुंच रहा है. जमीन और सूखती जा रही है. घास वाले इलाके घट रहे हैं. पशुपालकों के मुताबिक, दूध का उत्पादन भी घटा है. जैसलमेर के एक क्लिनिक में काम करने वाले जीतेंद्र कुमार ने एएफपी को बताया, "किसान कीमत चुका रहे हैं. उनकी जमीन ले ली गई. जिस जमीन पर मवेशी चरते थे, उनपर पवनचक्कियों ने कब्जा कर लिया है."
पक्षियों और जीवों को भी नुकसान
एएफपी के मुताबिक, टरबाइनों के साये में रहने वाले ग्रामीण इन्हें "सफेद ढांचों का हमला" बताते हैं. जानकार ध्यान दिलाते हैं कि रेगिस्तान के बारे में यह भ्रम हो सकता है कि यह बंजर और रेतीली जमीन है, जो किसी काम की नहीं. असलियत में यह जैव विविधता में काफी संपन्न है. स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पवनचक्कियों और बिजली की तारों के कारण पक्षियों और जीवों को भी नुकसान पहुंच रहा है.
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एक लुप्तप्राय पक्षी
प्रभावित जीवों में से ही एक है ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जो गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी है. समूचे भारत में इसकी आबादी बस 150 रह गई है.
पवनचक्कियों और बिजली की तारों से पक्षियों को खतरा
जैसलमेर के एक पर्यावरण कार्यकता पार्थ जगानी बताते हैं, "जब पवनचक्कियां और बिजली की ऊंची तारें लगनी शुरू हुईं, तो उनकी (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की मौतें भी बढ़ गईं." जानकार बताते हैं कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड समेत कई पक्षी ऊंचाई पर लगी तारों की चपेट में आकर मारे जाते हैं. ऐसा सिर्फ जैसलमेर या राजस्थान या कि भारत तक सीमित नहीं है.
बिजली की तारों से मरते हैं लाखों पक्षी
नेचर एंड बायोडायवर्सिटी कंजरवेशन यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले जर्मनी में ही हर साल 15 लाख से 28 लाख पक्षी ऊंचे वोल्टेज वाली पावर लाइंस से टकराकर या उनमें फंसकर मारे जाते हैं. भारत में इस गंभीर पहलू को देखते हुए साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि पक्षियों के प्रजनन के लिहाज से अहम इलाकों में बिजली की तारें जमीन के अंदर बिछाई जाएं.
जरूरत बनाम कुदरत तो नहीं हो सकता!
सरकार ने इस अदालती फैसले के खिलाफ अपील की. दलील दी गई कि इस निर्णय से अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य हासिल करने में अड़चन आएगी. नतीजतन, इस फैसले पर अमल नहीं हो पाया. जानकार ध्यान दिलाते हैं कि अक्षय ऊर्जा जलवायु संकट से निपटने की रणनीति का अहम हिस्सा हैं, लेकिन अगर इसके मौजूदा स्वरूप के कारण प्रकृति और जैव विविधता के बाकी पहलुओं को नुकसान पहुंच रहा है तो ढांचे में ज्यादा दूरदर्शिता अपनाए जाने की जरूरत है.
"हम कैसे जिंदा रहेंगे?"
जैसलमेर के पास सावता गांव में लोगों ने 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' की एक मूर्ति लगाई है, जो शायद इसी जरूरत को रेखांकित करती है. 65 साल के चरवाहे नेना राम कहते हैं, "बड़ी कंपनियां यहां आ गईं और उन्होंने पवनचक्कियां बनी दीं, लेकिन वे हमारे लिए बेकार हैं." अपनी बड़ी सी घुंघराली मूंछ को सहलाते हुए राम आगे कहते हैं, "अगर हमारे पक्षी और जानवर छीन लिए जाएं, तो हम क्या करेंगे? हम कैसे जिंदा रहेंगे?"