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आसमान छूने को बेकरार भारत का निजी अंतरिक्ष उद्योग

२ अक्टूबर २०२३

एक वक्त था जब भारत में देसी निजी कंपनियों के रॉकेट अंतरिक्ष में भेजने की व्यवस्था ही नहीं थी. अब निजी कंपनियां तेजी से पांव पसार रही हैं.

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भारत में निजी क्षेत्र भी अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहा हैतस्वीर: Satish Babu/AFP/Getty Images

जब भारतीय उद्यमी अवैस अहमद ने 2019 में बेंगलुरू में अपनी उपग्रह सैटेलाइट स्टार्टअप कंपनी शुरू की, तो उनके देश भारत में अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए नहीं खोला गया था. अहमद की कंपनी पिक्सल अंतरिक्ष से तस्वीरें लेने वाले कई उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर चुकी है.

21 साल की उम्र में अपनी कंपनी शुरू करने वाले अहमद बताते हैं, "जब हमने शुरुआत की तो कहीं कोई मदद नहीं थी. कोई गति नहीं थी.” अब हालात एकदम अलग हैं. भारत में अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र आसमान में ऊंची उड़ान भर रहा है और तेजी से बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष उद्योग का हिस्सा बन रहा है.

तेजी से बढ़ता उद्योग

भारत में 190 स्टार्टअप कंपनियां हैं जो अंतरिक्ष उद्योग में काम कर रही हैं. एक साल में इनकी संख्या दोगुनी हो चुकी है. कंसल्टेंसी कंपनी डेलॉइट के मुताबिक 2021 और 2022 के बीच निजी अंतरिक्ष उद्योग में निवेश 77 फीसदी बढ़ा है.

अहमद कहते हैं, "बहुत सारे निवेशक इस तरफ देखने को भी राजी नहीं थे क्योंकि अंतरिक्ष तकनीक में खतरा बहुत था. अब आप देख सकते हैं कि एक के बाद एक कंपनियां भारत में निवेश पा रही हैं. लगातार नयी कंपनियां शुरू हो रही हैं.”

पिक्सल के पास फोटोग्राफी की ऐसी तकनीक है कि उसके उपग्रह आसमान से अत्यधिक साफ तस्वीरें ले सकते हैं और वे बारीकियां भी पकड़ सकते हैं जो आम कैमरे से ली गईं तस्वीरों में नहीं होतीं. इसी तकनीक के आधार पर पिक्सल उपग्रह बनाती है. कंपनी का कहना है कि उसका मिशन है "पृथ्वी के लिए एक हेल्थ मॉनिटर बनाना, जो बाढ़, जंगलों की आग और मीथेन लीक जैसे जलवायु संकटों का पता लगा सके.”

जब पिक्सल को मना कर दिया गया

शुरुआत में पिक्सल ने अपने उपग्रह भेजने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के रॉकेट इस्तेमाल करने चाहे थे. अहमद बताते हैं, "मैं इसरो में लॉन्च बुक करना चाहता था. मुझे याद है कि इसरो में किसी से मेरी बात हो रही थी और उन्होंने मुझसे कहा कि उनके पास तो भारतीय उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने की कोई प्रक्रिया ही नहीं है. (उन्होंने कहा कि) अगर आप विदेशी कंपनी होते तो हमारे पास प्रक्रिया है. मुझे तो यह बात समझ ही नहीं आयी थी.”

चांद पर पहुंच गया भारत

पिक्सल ने इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के साथ बुकिंग की और दो उपग्रह अंतरिक्ष को भेजे. पिक्सल ने अपने निवेशकों से 7.1 करोड़ डॉलर जुटाये हैं. इनमें से लगभग आधे गूगल के हैं. इस धन से कंपनी अगले साल छह नये उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगी. कंपनी को अमेरिका में एक जासूसी एजेंसी नेशनल रीकनेसांस ऑफिस (एनआरओ) से भी ठेका मिला है.

फ्रांस के नेशनल साइंटिफिक रिसर्च सेंटर में काम करने वालीं और भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की विशेषज्ञ इजाबेला सावरबेस-वर्जर बताती हैं कि 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने से पहले "भारत में हर गतिविधि इसरो की निगरानी में होती थी.”

सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. अगस्त में ही उसने चंद्रमा के दक्षिणी धुर्व पर एक रोवर उतारा, जो आज तक कोई नहीं कर पाया था. इसके अलावा इसरो ने पिछले महीने की शुरुआत में ही सूर्य अनुसंधान अभियान भेजा है जो सौर मंडल के केंद्र में जा रहा है. अगले साल उसकी यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजने की योजना है.

यह सब इसरो ने हासिल किया है. अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार होने से पहले निजी कंपनियां इसरो के सप्लायर्स के तौर पर ही काम कर सकती थीं. सावरबेस-वर्जर कहती हैं, "वह अब संभव नहीं था क्योंकि करने को बहुत कुछ है.”

ग्लोबल इकोनॉमी में हिस्सा

अंतरिक्ष उद्योग के क्षेत्र में सुधारों को और विस्तार देने के लिए भारत ने अप्रैल में अपनी अंतरिक्ष नीति का ऐलान किया. इस नीति में इसरो के कार्यक्षेत्र को अनुसंधान और विकास तक ही सीमित कर दिया गया है ताकि "वैश्विक अंतरिक्ष आर्थिकी में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ायी जा सके.”

भारत का कहना है कि 386 अरब डॉलर की वैश्विक अंतरिक्ष इकोनॉमी में उसका हिस्सा महज दो फीसदी का है. 2030 तक वह इस हिस्से को नौ फीसदी तक बढ़ाना चाहता है. 2040 तक वैश्विक स्तर पर इस बाजार के एक खरब डॉलर को पार कर जाने की संभावना है.

इस संभावना का फायदा उठाने के लिए भारत में हाल के सालों में तेजी से निजी कंपनियां उभरी हैं. इनमें स्काईरूट एयरोस्पेस भी शामिल है जिसने देश का पहला निजी रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा. एक अन्य कंपनी ध्रुव स्पेस छोटे-छोटे उपग्रह बना रही है जबकि बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस प्रोपल्सन सिस्टम बनाती है.

सावरबेस-वर्जर कहती हैं, "क्या वाकई इससे एक सक्रिय और ओद्यौगिक स्तर का लाभदायक ढांचा तैयार होगा? संभव है, लेकिन उसकी कुछ सीमाएं भी होंगी.”

वीके/एए (एएफपी)

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