घर घर की एकता कपूर
१३ मई २०१३बालाजी टेलीफिल्म्स के बैनर में बने क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कसौटी जिंदगी की और कहानी घर घर की जैसे धारावाहिकों के जरिए एकता ने हर घर के ड्राइंगरूम तक पहुंच बनाई और लोगों के टीवी देखने का तौर-तरीका बदल दिया. 70 से ज्यादा धारावाहिकों के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा. यहां भी उनको कामयाबी तो मिली, लेकिन साथ ही द डर्टी पिक्चर जैसी बोल्ड फिल्मों के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी. उनकी ताजा फिल्म एक थी डायन पर भी अंधविश्वास को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगे हैं लेकिन एकता इससे विचलित नहीं हैं. अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कोलकाता पहुंची एकता ने अपने अब तक के सफर और भावी योजनाओं को डायचे वेले के साथ साझा किया.
डीडब्ल्यूः आपके बनाए धारावाहिकों ने लोगों के टीवी देखने का तरीका ही बदल दिया. क्या आपने इस कामयाबी के बारे में सोचा था ?
मैंने यह तो नहीं सोचा था कि इतनी कामयाबी मिलेगी. लेकिन मुझे अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था. आप मेहनत करें तो कामयाबी तय है. मैंने अपने धारावाहिकों में वही दिखाया जो आम जीवन में होता है. इसे अपनी कहानी समझ कर ही दर्शकों ने अपना लिया.
सीरियल से फिल्मों की ओर झुकाव कैसे हुआ ?
फिल्में तो हमारे खून में है. देर सवेर मुझे इस ओर आना ही था. लेकिन सीरियलों को मिली कामयाबी ने हौसला बढ़ाया. इसके अलावा मैंने लंबे समय तक छोटे परदे पर राज किया. बाद में प्रतिद्वंद्विता बढ़ने की वजह से धीरे-धीरे वर्चस्व टूटने लगा था. इसलिए मैंने फिल्में बनाने का फैसला किया.
छोटे परदे और बड़े परदे में क्या फर्क महसूस हुआ ?
देखिए, किसी भी नए माध्यम में कदम रखने पर आपको नए सिरे से खुद को साबित करना होता है. अपनी फिल्मी पारी के शुरूआती दौर में मुझे भी काफी संघर्ष करना पड़ा. लेकिन मैंने इसका आनंद उठाया.
आपकी ज्यादातर फिल्मों की विषय-वस्तु की आलोचना होती रही है ?
मुझे सकारात्मक आलोचना से कोई परहेज नहीं है. लेकिन गलत मकसद से की गई आलोचना मुझसे बर्दाश्त नहीं होती. आलोचना सही और सकारात्मक हो तो उससे अपनी कमियां पता चलती हैं.
एक फिल्म निर्माता के तौर पर आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा ?
शुरूआती दौर में कई चुनौतियों से जूझना पड़ा. टीवी सीरियल निर्माता का ठप्पा लगने से और दिक्कत हुई. शुरू में लोगों ने कहा कि मैं फिल्में नहीं बना सकती और यह कि छोटे और बड़े परदे में काफी फर्क है. शायद उनको लगा हो कि मैं गहने या सास-बहू पर आधारित फिल्में बनाऊंगी. यह तो मुझे भी लगा था कि पहले कोई गंभीरता से नहीं लेगा. इसलिए लव, सेक्स और धोखा के लिए मैंने दिवाकर बनर्जी जैसे प्रतिभाशाली फिल्मकार से हाथ मिलाया. ज्यादातर हीरो-हीरोइन पहले भी मेरी फिल्म के लिए हां करने में हिचक रहे थे.
फिल्मों के लिए पटकथा का चयन कैसे करती हैं ?
मैं निर्माता होने के अलावा दर्शक भी हूं और थिएटर में जाकर काफी फिल्मे देखती हूं. अगर कोई कहानी मुझे जंच गई तो लगता है कि वह आम दर्शकों को भी पसंद आएगी. दर्शकों के साथ थिएटर में फिल्में देखने से उनकी पसंद-नापसंद का अंदाजा भी लग जाता है. मैं आम जनजीवन में घट रही घटनाओं को ही फिल्मों का विषय बनाती हूं. यह कहें तो सही होगा कि कहानियों के लिए मुझे लोगों से प्रेरणा मिलती है.
आपने एक थी डायन बनाई है. क्या निजी जीवन में आप इन बातों पर विश्वास करती हैं ?
मैं कुछ अंधविश्वासी जरूर हूं. लेकिन डरपोक नहीं. मैंने दादी-नानी की कहानियों में डायन और भूत-प्रेत के बारे में सुना है. ऐसे विषय पर फिल्म बनाने का मतलब अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं बल्कि उसके बारे में जागरुकता फैलाना है.
आगे कौन सी फिल्मों पर काम कर रही हैं ?
अभी तो शूटआउट एट वडाला आने वाली है. उसके अलावा फरहान अख्तर और विद्या बालन के साथ शादी के साइट इफेक्ट्स है. यह फिल्म प्यार के साइड इफेक्ट्स का सीक्वल है.
इंटरवयूः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः मानसी गोपालकष्णन