क्या कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए तैयार है?
२४ अगस्त २०२४भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से जारी कार्यक्रम के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से एक अक्टूबर के बीच तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे. हालिया लोकसभा चुनाव में वहां 58 फीसदी मतदान हुआ था, जिसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था, "लोगों ने बुलेट को नहीं, बल्कि बैलेट को चुना है." जम्मू-कश्मीर के लिए विधानसभा चुनावों का एलान करते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले चुनावों में भी इसी तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी.
जम्मू-कश्मीर में पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे, जब यह एक राज्य था. इसके बाद पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई थी लेकिन 2018 में उसने अपना बहुमत खो दिया. इसके बाद 2019 में केंद्र सरकार ने धारा 370 को हटाते हुए जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया और इसे केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया.
राज्य की बहाली बड़ा मुद्दा
पीडीपी के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू के साथ बाचीत में कहा कि उनकी पार्टी चाहती है कि यह इलाका फिर से भारत का एक राज्य बने. पीडीपी प्रवक्ता मोहित भान ने कहा, "यह वह नहीं है जिसकी हमें उम्मीद थी और हम चाहते हैं कि पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो. लेकिन कम से कम विधानसभा में लोगों के प्रतिनिधि होंगे और लोगों की आवाज होगी जिसे नहीं सुना गया है."
वहीं जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेस पार्टी कह चुकी है कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत होनी चाहिए. पार्टी यह भी चाहती है कि एक कानून के जरिए नौकरियों और जमीन का संरक्षण किया जाए और राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए.
पार्टी की मांग यह भी है कि स्थानीय अधिकारियों को उनकी पुरानी शक्तियां वापस मिलें. पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्लाह ने स्थानीय मीडिया से कहा, "हम राज्य का दर्जा बहाल कराने के लिए दृढ़ संकल्प हैं. सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट के सामने यह वादा कर चुकी है. अगर सरकार अपनी इच्छा से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल नहीं करती है तो हम अदालत के जरिए इंसाफ हासिल करने की कोशिश करेंगे. राज्य के दर्जे के साथ ही जम्मू-कश्मीर की सरकार के पास वो शक्तियां होंगी जो वादों को पूरा करने के लिए चाहिए."
हिंसा का साया
चुनावों की यह प्रक्रिया ऐसे समय में शुरू हो रही है जब हाल के समय में कई हिंसक वारदातों की खबरें आई हैं. 8 जुलाई को कठुआ जिले में घात लगाकर किए गए चरमपंथियों के हमले में भारतीय सेना के पांच जवान मारे गए जबकि पांच अन्य घायल हो गए. इससे पहले, जून में रियासी जिले में चरमपंथियों के हमले के बाद हिंदू श्रद्धालुओं को लेकर जा रही एकबस गहरी खाई में जा गिरी जिससे कम से कम नौ लोग मारे गए और 33 जख्मी हो गए.
जानकारों का कहना है कि अब जम्मू क्षेत्र में हिंसक घटनाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं जो पहले कमोबेश शांत हुआ करता था. इस साल के शुरुआती छह महीनों में वहां अलग अलग घटनाओं में 17 लोग मारे गए हैं जबकि पिछले पूरे साल में यह आंकड़ा 12 था.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप नाम की संस्था में वरिष्ठ विश्लेषक प्रवीण धोंटी कहते हैं कि चुनाव अपने आप में तब तक प्रासंगिक नहीं होंगे जब तक केंद्र सरकार वहां पनप रही अलगाव की भावना से निपटने के लिए सार्थक राजनीतिक प्रक्रिया शुरू नहीं करेगी. उन्होंने डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में कहा, "इस वार्ता प्रक्रिया में सभी संबंधित पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए और यह ईमानदार कोशिश होनी चाहिए. यह भी उचित होगा कि पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए ताकि सरकार के पास शक्तियां हों."
2019 के बाद पहली बार कश्मीर में मोदी की रैली
सत्ता संघर्ष
कश्मीर मुद्दे पर वार्ताकार रहीं राधा कुमार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि चुनाव बहुत जरूरी हैं क्योंकि इसी से लोगों को बताने का मौका मिलेगा कि वे जम्मू कश्मीर को बांटने और इसका दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बारे में क्या सोचते हैं. उन्होंने कहा, "इन घटनाओं पर लोगों की प्रतिक्रिया चुनावों में ही देखने को मिलेगी. मुझे पूरा विश्वास है कि मोदी सरकार के कदमों का विरोध करने वाली पार्टियां चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेंगी."
कुमार कहती हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि चुनाव के बाद अस्तित्व में आने वाला नया प्रशासन या विधानसभा चुपचाप उन नए नियमों को मान लेगी जो उपराज्यपाल को मजबूत करते हैं. उन्होंने कहा, "विधायक अपनी ताकत को स्थापित करेंगे और हर उस नीतिगत फैसले पर सवाल उठाएंगे जिस पर विधानसभा में चर्चा ना हुई हो और जो चुने हुए प्रसाशन की सिफारिश पर ना आया हो. नेशनल कांफ्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में विशेष दर्जे और राज्य के पूर्ण दर्जे की बहाली के लिए काम करने का वादा किया गया है. यहां तक कि बीजेपी समर्थक अपनी पार्टी भी पूर्ण राज्य के दर्जे का समर्थन कर रही है."
भविष्य के लिए संदेश
अन्य विश्लेषक कहते हैं कि विधायी शक्तियां घटने के बावजूद राज्य में बनने वाली सरकार को व्यापक राजनीतिक सशक्तिकरण की तरफ एक कदम माना जाएगा. राजनीति विज्ञानी और कश्मीर विशेषज्ञ नवनीता चड्ढा बेहेरा का कहना है, "इन चुनावों की महत्ता इस बात से नहीं है कि आखिरकार कौन जम्मू कश्मीर में राज करेगा, बल्कि इस बात से है कि यहां से क्या संदेश जाएगा. क्या लोग भारी संख्या में निकलकर वोट डालेंगे? क्या वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदार बनने की इच्छा रखते हैं?"
बेहेरा कहती हैं, "इन चुनावों की अहमियत आगे चल कर लंबे समय में ही समझी जा सकती है. इससे एक झलक मिल सकती है कि अगले कुछ सालों और महीनों में क्या होने वाला है?"