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उग्रवादियों के शव क्यों नहीं लौटा रही भारतीय सेना

२ दिसम्बर २०२१

कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए उग्रवादियों के परिवार शवों को ना लौटाने की नीति पर सख्त नाराज हैं. अधिकारियों ने शवों को लौटाने की जगह अब उन्हें दूर-दराज के इलाकों में दफनाना शुरू कर दिया है.

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तस्वीर: Reuters/D. Ismail

मुश्ताक अहमद वाणी का किशोर बेटा भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया. एक विवादित मुठभेड़ में श्रीनगर के बाहरी इलाके में उसे मार दिया गया. यह मुठभेड़ पिछले साल 30 दिसंबर को हुई थी, जिसमें कुल तीन लोग मारे गए थे. मुश्ताक अहमद वाणी के लिए बेटा खो देना तो दुखदायी था, उन्हें आखिरी वक्त में उसकी शक्ल देखना भी नसीब नहीं हुआ. सेना ने उनके बेटे का शव लौटाने से इनकार कर दिया.

इसके बाद वाणी ने जनता से समर्थन की मांग की. प्रदर्शन करते वाणी को जब पुलिस घसीटकर ले जा रही थी तो वह श्रीनगर के लाल चौक में चिल्ला रहे थे, "आज यह मेरा बेटा है, कल तुम्हारा होगा."

जज्बाती अपील

मुश्ताक के बेटे के शव को सुरक्षा बलों ने दक्षिणी कश्मीर स्थित उसके घर से 150 किलोमीटर दूर उत्तर में सोनमर्ग में दफनाया था. 11 महीने से मुश्ताक अपने बेटे के शव की मांग कर रहे हैं. हाल ही में वह सोशल मीडिया पर एक वीडियो में नजर आए जिसमें उन्होंने जज्बाती अपील करते हुए कहा कि जो कब्र उन्होंने अपने बेटे के लिए उनके पुश्तैनी कब्रिस्तान में खोदी थी, वो अब भी खाली है.

कश्मीर के पैलेट पीड़ितों का दर्द

वाणी ने कहा, "हम अपने बेटे के शव का इंतजार कर रहे हैं. जब भी किसी का बेटा मरता है, हमें अपने बेटे की याद आती है. हम अधिकारियों से गुजारिश करते हैं कि उसका शव लौटा दें."

भारतीय कश्मीर में मुश्ताक अहमद वाणी जैसे सैकड़ों लोग हैं जो अपने परिजनों के शवों की मांग कर रहे हैं. 15 नवंबर को श्रीनगर के हैदरपुरा इलाके में हुई एक मुठभेड़ के बाद यह मांग और विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने तीन लोगों को मार गिराया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मुठभेड़ फर्जी थी.

वाणी ने अपने वीडियो में इस मुठभेड़ के बारे में कहा, "जैसे तीन निर्दोष नागरिकों को हैदरपुरा में मारा गया, उन्होंने मेरे बेटे को भी एक फर्जी मुठभेड़ में मारा था. जब तक मैं जिंदा हूं अपने बेटे का शव वापस पाने के लिए संघर्ष करता रहूंगा."

क्यों नहीं लौटाए जा रहे शव?

अप्रैल 2020 से भारतीय सुरक्षा बलों ने आतंकवाद रोधी अभियानों में मारे गए लोगों के शव लौटाना बंद कर दिया है. इसके पीछे उन्होंने कोविड-19 को एक वजह बताया है. इन शवों को अब दूर-दराज सीमांत इलाकों में दफनाया जाता है.

18 नवंबर को स्थानीय सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखकर आग्रह किया कि लोगों के शव उनके परिजनों को लौटाए जाएं.

परिजनों के बढ़ते विरोध के चलते पिछले हफ्ते पहली बार भारत सरकार ने दो नागरिकों के शव कब्र से बाहर निकालकर परिजनों को सौंपे. अल्ताफ अहमद बट और मुदासिर गुल हाल ही में श्रीनगर में एक मुठभेड़ में मारे गए थे. उनके परिजनों का कहना है कि सुरक्षा बलों ने उनका कत्ल किया था.

मुश्किल में श्रीनगर की डल झील

इन दोनों के शवों को हंदवाड़ा उप जिले श्रीनगर से करीब 130 किलोमीटर दूर सीमा के पास एक कब्रिस्तान में दफनाया गया था. तब से परिजन और अन्य स्थानीय लोग लगातार विरोध कर रहे थे जिसके बाद आखिरकार अधिकारियों ने वे शव लौट दिए और उन्हें पुश्तैनी कब्रिस्तानों में दफनाया गया.

उग्रवाद का खतरा

भारतीय सेना के एक अधिकारी ने डॉयचे वेले को बताया कि सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार आमतौर पर प्रदर्शनों में बदल जाते हैं और उनमें सक्रिय उग्रवादी भी शामिल होते हैं और इन्हें नई भर्तियों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

अधिकारी ने कहा, "मिलिटेंट के अंतिम संस्कार में मृत्यु का महिमामंडन अक्सर युवा लड़कों को उग्रवाद की ओर आकर्षित करेगा. उस चक्र को तोड़ने की जरूरत थी."

2018 में पुलिस के एक अध्ययन के मुताबिक आधे से ज्यादा नए उग्रवादी मारे गए किसी उग्रवादी के घर के दस किलोमीटर के दायरे से आए थे. भारतीय मीडिया में चर्चित रही इस रिपोर्ट के मुताबिक, "ऐसा देखा गया है कि अक्सर अपने दोस्तों के शव और अंतिम संस्कार को देखकर किशोर उग्रवाद का हिस्सा बनने का मन बनाते हैं."

हालांकि कुछ अधिकारी मानते हैं कि शव लौटाए जाने चाहिए. जम्मू कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद कहते हैं कि उग्रवादियों के अंतिम संस्कार चिंता की बात तो हैं लेकिन मुठभेड़ में मारे गए आम नागरिकों और उग्रवादियों के शव लौटाए जाने चाहिए.

उन्होंने कहा, "स्थानीय लड़कों के शव उनके परिवारों को इस शर्त पर फौरन लौटा दिए जाने चाहिए कि वे जल्द से जल्द उनका अंतिम संस्कार कर देंगे और सिर्फ रिश्तेदारों को मैयत में शामिल होने की इजाजत होगी. प्रदर्शन की इजाजत नहीं होनी चाहिए."

रिपोर्टः समान लतीफ (श्रीनगर)

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