बांग्लादेश की 'मृत' नदी, बूढ़ीगंगा
बांग्लादेश की "बूढ़ीगंगा" कभी एक शक्तिशाली नदी हुआ करती थी, लेकिन आज वो दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से है. टॉक्सिन से भरे काले पानी वाली यह नदी मौत के कगार पर है.
आखिरी सांसें लेती नदी
नुरुल इस्लाम कभी ढाका की जीवनरेखा समझे जाने वाली बूढ़ीगंगा नदी को देख रहे हैं. दो दशक पहले इस्लाम इसी नदी से मछलियां पकड़ा करते थे, लेकिन आज नदी में शायद ही मछलियां बची हों. 70 साल के इस्लाम को अपना पुराना पेश छोड़ना पड़ा. आज वो खाने पीने की चीजें बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं. औद्योगिक और मानव अपशिष्ट के नदी में अनियंत्रित रूप से डाले जाने के कारण नदी आज आखिरी सांसें ले रही है.
एक खतरनाक खेल
बूढ़ीगंगा में बेरोक गिरने वाले गंदे पानी में खेलते बच्चे. मानसून के पहले और बाद में नदी इतनी प्रदूषित रहती है कि उसका पानी गहरा कला नजर आता है और उसमें से बदबू भी निकल रही होती है. बांग्लादेश में रहने वाले 17 करोड़ लोगों में से कई जिंदा रहने के लिए और यातायात के लिए नदियों पर निर्भर हैं. लेकिन बूढ़ीगंगा की तरह इनमें से कई नदियां गंभीर प्रदूषण की वजह से बुरे हाल में हैं.
रसायनों में नहाना
दिहाड़ी श्रमिक मोतहर हुसैन के पास इस गंदी नदी में नहाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. देश में हर चार में से सिर्फ एक घर में नल का पानी आता है. 1995 में सरकार ने उद्योगों द्वारा छोड़े गए गंदे पानी को साफ करना उद्योगों के लिए ही अनिवार्य कर दिया था. लेकिन कानून का पालन नहीं हो पाया है.
कपड़ा व्यापार का बुरा असर
हर रोज नदी के पास बनी मिलों और फैक्ट्रियों से बिना ट्रीट किया गया मैला पानी, कपड़े को रंगने के उपोत्पाद और दूसरा रासायनिक अपशिष्ट नदी में गिरता है. बांग्लादेश चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक है, लेकिन यह बढ़ता उद्योग नदी की मौत का भी कारण बन रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मानक नाकाम
कपड़ा उत्पादक और निर्यातक संगठन के शहीदुल्लाह अजीम ने रॉयटर्स को बताया कि सभी कपड़ा फैक्ट्रियों के पास गंदे पानी को साफ करने के अपने अपने संयंत्र हैं क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय मानकों का निर्देश है. लेकिन असलियत बहुत अलग है. यहां लाल रंग का गंदा पानी बेरोक एक नाले से बूढ़ीगंगा की एक सहायक नदी में बह रहा है.
आंखों में होती है जलन
45 साल के नाविक सिद्दीक हवलदार अपनी पत्नी और बेटी के साथ बूढ़ीगंगा के तट पर ही रहते हैं. उनका कहना है कि नदी लोगों को बीमार बना रही है. "जो इस नदी में नहाते हैं उन्हें अक्सर चर्म रोग हो जाते हैं. कभी कभी हमारी आंखों में खुजली और जलन होती है."
बंद नाले
कभी इस नहर का पानी बूढ़ीगंगा में गिरता था. अब यहां इतना प्लास्टिक और कचरा है कि पानी यहां से आगे बह ही नहीं पाता. नहर के सूख चुके तल में कचरे की परतें नजर आती हैं. कचरा निष्पादन का कोई इंतजाम ना होने की वजह से लोग अपना कचरा नहर में ही फेंक देते हैं.
उम्मीद की किरण
यह धलेश्वरी नदी है जिसके पास ही यह कचरा भराव क्षेत्र है. बांग्लादेश को कचरा प्रबंधन में निवेश करने की बेहद जरूरत है. ढाका का पहला कचरे से बिजली बनाने वाला संयंत्र 2024 में शुरू होना है. क्या उससे बदलाव की शुरुआत हो पाएगी? (क्लॉडिया डेन)