मारी-लुइजे एटा: बुंडेसलीगा में पहली महिला कोच
२४ नवम्बर २०२३यूनियन बर्लिन भले ही जर्मनी की फर्स्ट क्लास लीग में सबसे नीचे है, उसके पास स्थायी हेड कोच भी नहीं और वो पिछले अगस्त से अपनी पहली जीत के लिए भी तरस रही है. लेकिन 25 नवंबर को ये क्लब, पुरुषों के बुंडेसलीगा में इतिहास बना देगा. ऑग्सबुर्ग फुटबाल क्लब के जर्मन राजधानी बर्लिन के दौरे में एक महिला भी पहली बार, पुरुषों के बुंडेसलीगा टीम के कोचिंग स्टाफ में शामिल रहेगी. मारी-लुइजे एटा को मार्को ग्रोटे का सहायक नियुक्त किया गया है. दोनों को यूनियन की अंडर-19 टीम की बागडोर से प्रमोट कर, सीनियर टीम की अंतरिम रूप से कमान सौंपी गई है.
1991 में ड्रेसडेन में पैदा हुई मारी लुइजे ने 26 साल की उम्र में कोच बनने के लिए खेल छोड़ दिया था. शुरुआत में जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी से जुड़ी, जहां वो जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय महिला टीमों के विभिन्न आयु समूहों के बीच काम करती थीं. उसके बाद वो बर्लिन के क्लब यूनियन में पुरुष टीम की कोच बनीं. यूनियन के प्रेसिडेंट डिर्क सिंगलर ने कहा कि उन्होंने इस काम के लिए सबसे सही व्यक्ति को चुना है. सिंगलर ने भावनात्मक रूप से एक सख्त फैसले में उर्स फिशर को कोच के पद से हटा दिया था. फिशर वही हैं जो यूनियन को उसके इतिहास में पहली बार बुंडेसलीगा में ले जा पाए थे और फिर उल्लेखनीय रूप से चैंपियंस लीग में भी टीम को उतारा था.
ग्रोटे और एटा की नियुक्तियों के बाद सिंगलर ने कहा, "सहायक कोच के रूप में महिला को लाना कोई सोचा समझा फैसला नहीं, वह फैसले का अपमान होगा. हमने फुटबॉल कोच को लेकर फैसला किया है जो पहले से टीम के साथ हैं."
'बहुत शांत, बहुत समझदार'
एटा के अलावा, ऐसी ज्यादा महिलाएं नहीं हैं जो कह सकें कि वे पेशेवर स्तर पर महिला और पुरुष दोनों टीमों की कोच रही हों. ऐसी चुनिंदा कोच में से एक हैं इमके वुबेनहोर्स्ट जो इन दिनों स्विट्जरलैंड में यंग ब्वॉयज वीमंस टीम की हेड कोच हैं. दो सीजनों में वो एटा के साथ बीवी क्लोपेनबुर्ग क्लब की टीम में रही हैं. उसके बाद उन्होंने एक मैच के लिए पुरुष टीम की कमान संभाली थी.
दोनों ने मिलकर सेकंड टियर में एक सीजन खेला था और दूसरे सीजन में प्रमोशन हासिल करने के बाद वीमंस बुंडेसलीगा में खेली थीं. डीडब्ल्यू के साथ इंटरव्यू में वुबेनहोर्स्ट ने बताया कि एटा और वो मिलकर फुटबॉल की रणनीति पर चर्चा करती थीं और खेलों के दौरान फील्ड में जरूरी बदलाव अमल में लाती थीं.
वुबेनहोर्स्ट ने कहा, "हम लोग काफी एक जैसी थी क्योंकि मैं हमेशा कोच बनना चाहती थी. प्रणालियों के बारे में हम उच्चतर स्तर पर बात कर लेती, कैसे दबाव बनाना है...कभी कभार पिच पर खड़ी हो जाती और कहती 'ठीक है, इस समस्या का हल कैसे करें?' इस तरह हम पिच में कुछ बदलाव कर देते."
वुबेनहोर्स्ट ने कहा कि उनकी पूर्व टीममेट की शांतचित्तता और बुद्धिमानी उन्हें अलग बनाती है, वो ये भी मानती हैं कि यूनियन में असिस्टेंट कोच के रूप में उनकी नई भूमिका उनके गुणों से पूरी तरह मेल खाती है. उन्होंने कहा, "मारी-लुइजे एक बहुत ही शांत व्यक्ति और बहुत ही समझदार खिलाड़ी हैं. वो हमेशा सेंट्रल पोजीशन पर खेलती थी. उनके पास एक अच्छी रणनीति है, वो जानती है कि गेंद कहां ले जानी है, दूसरों के लिए जगह कैसे निकालनी है. और वो अलग अलग किस्म के लोगों को हैंडल कर सकती है. मुझे लगता है कि उसे पीछे रहकर काम करना पसंद है."
'उन्हें प्रभावित करना होगा'
मारी लुइजे एटा ने न सिर्फ अपनी कोचिंग क्षमताओं के लिहाज से बल्कि महिला होने के नाते भी ध्यान खींचा है. ग्रोटे ने कहा कि एटा जब इस साल के शुरू में क्लब में पहुंची तो यूनियन के युवा खिलाड़ियों ने उन्हें "फौरन स्वीकार" कर लिया. लेकिन एटा का कहना है कि पहले उन्हें पुरुष खिलाड़ियों की महिला कोच होने के नाते कुछ विरोध झेलना पड़ा.
उन्होंने पिछले महीने यूरोपीय फुटबॉल संघ यूएफा को बताया, "मैंने गौर किया कि कुछ लोग मुझसे पहले की तुलना में अलग ढंग का बर्ताव करने लगे थे. ये चीज दिख ही जाती है और असुविधा होती है ये सब देखकर." "मैंने हमेशा कोशिश की है कि इस पर ध्यान ही न दूं कि मैं एक औरत हूं. मेरे लिए बात औरत या आदमी की नहीं, या पुरुष कोच महिला टीम के लिए अच्छा है या नहीं, बात हमेशा विविधता की है."
2018 में वुबेनहोर्स्ट को प्रतिष्ठा मिली थी जब उन्हें क्लोपेनबुर्ग की पुरुष टीम का हेड कोच बनाया गया. वो भी हालात को एटा की तरह देखती हैं. उनका कहना है कि अधिकांश कोच जिन समस्याओं से रूबरू होते हैं, वे स्त्री-पुरुष दोनों की होती हैं, लेकिन कुछ समस्याएं सिर्फ महिलाओं से जुड़ी होती हैं. वुबेनहोर्स्ट कहती हैं, "आपको उन्हें अच्छे ड्रिल्स, अच्छे विश्लेषण के बारे में तैयार करना होगा. जहां भी आप हैं, आपको दिखाना होगा कि आपमें अच्छे गुण हैं और आपको खिलाड़ियों को विकसित करना होगा."
वुबेनहोर्स्ट कहती हैं, "उन्हें अच्छे कोचों की आदत होती है, यूथ स्तर से ही, लिहाजा वे आसानी से तुलना कर सकते हैं. आप महिला कोच हैं तो आपके करियर की शुरुआत को लेकर वे प्रभावित नहीं होते. आपको उन्हें इंप्रेस करना होता है. अगर आप अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं, जैसे कि मिरोस्लाव क्लोजे, तो वे पहले से ही प्रभावित रहते हैं."
2019-20 में वुबेनहोर्स्ट ने आरबी लाइपजिग में एक सीजन बिताया था. वो युलियान नागेल्समन की बैकरूम टीम का हिस्सा थीं. टॉप लेवल के पेशेवर पुरुषों के साथ काम करने की चुनौतियां वो भलीभांति समझती हैं. वुबेनहोर्स्ट के मुताबिक "शीर्ष क्लबों में दुनिया के अलग अलग नजरिए के साथ इतने सारे विदेशी खिलाड़ी होते हैं, आपको खुले दिमाग से काम करना होता है...वो ज्यादा संवेदनशील होते हैं. क्योंकि स्पॉटलाइट में रहने की उन्हें आदत होती है, बहुत सारा पैसा कमाने की आदत होती है, तो जब आप उनकी आलोचना करते हैं, तो आपको बहुत, बहुत सावधानी से ऐसा करना होता है."
कुछ और साल लगेंगे रवैया बदलने में
एटा की ऐतिहासिक नियुक्त से और महिलाओं का रास्ता भी आगे बढ़ने के लिए खुलेगा. लेकिन अमेरिका के मुकाबले, यूरोप में महिला कोचों को लेकर ज्यादा विरोध देखा जाता है. अमेरिका में पुरुषों की टीमों में महिला सहायक कोच की परंपरा काफी पुरानी है. वुबेनहोर्स्ट मानती हैं कि यूनियन में एटा के प्रमोशन को सहजता से लिया जाएगा लेकिन महिलाओं के प्रति जो रवैया लंबे समय से जेहन में धंसा हुआ है उसे बदलने में वक्त लगेगा.
वो कहती हैं, "जब आप कुछ करने वाले पहले इंसान होते हैं, तो वो मुश्किल होता है क्योंकि मीडिया आपके बोले हरेक शब्द पर गौर करता है...लेकिन जब आप दूसरे या तीसरे व्यक्ति होते हैं, तो मामला थोड़ा आसान हो जाता है. क्लबों के प्रबंधन को देखना होगा कि ये व्यवस्था कैसे काम करेगी. इन पदों पर महिला के चयन का फैसला गाहेबगाहे वे ही करेंगे.
उन्होंने कहा, "यूरोप में, इंग्लैंड, स्पेन, जर्मनी में, फुटबॉल पुरुषों का खेल है. जब औरतों की भूमिका बदलती है, और समाज में समग्र तौर पर बदलाव हो रहा होता है तो ये काम आसान हो जाता है. क्योंकि प्रबंधन देखता है कि खेल में मजबूत महिलाएं भी हैं और अच्छा कोच होने के लिए जरूरी नहीं कि वो पुरुष हो या महिला. "कुछ साल तो ये और चलना चाहिए. लेकिन अभी स्थिति ये है कि पैसा उम्रदराज पुरुषों के पास है और वही फैसला करते हैं कि कोच कौन होगा. मेरे ख्याल से ये बदलना चाहिए और उसमें कुछ साल और लगेंगे."
तब तक के लिए, वुबेनहोर्स्ट के मुताबिक, महिलाओं को "पुरुषों जैसा होने" का दबाव नहीं लेना चाहिए. उनकी राय में महिला कोचों के लिए ये बहुत जरूरी है कि वे जैसी हैं वैसी ही रहें. उन्होंने खुद भी पुरुषों के खेल में कामयाब होने के लिए अपने स्त्रीत्व के पहलुओं को दबाने की कोशिश नहीं की. वो कहती हैं, "आप औरत हैं इसलिए आप बेहतर पुरुष नहीं हो सकती. मेरी शख्सियत बड़ी मजबूत है. मेरे सेक्स से ये तय नहीं होता कि मैं मजबूत हूं या नहीं."
"एक समय था जब मैं अपने नाखून रंगना चाहती थी और मैंने सोचा, 'ठीक है, गेम वीकेंड में है, शायद मुझे रंगे हुए नाखूनों के साथ वहां नहीं जाना चाहिए. 'मेरे समूचे करियर में सिर्फ वही समय था जब मैंने इस बारे में सोचा. लेकिन अब मेरी उम्र हो चुकी है, अनुभव भी ज्यादा है और मैं सोचती हूं 'क्यों नहीं?' सिर्फ उस वजह से तो मैं एक अच्छी या खराब कोच नहीं हो जाती."
नाखून रंगे हो या नहीं, एटा शनिवार को डगआउट में अपनी जगह पर होंगी. वो पहले ही दिखा चुकी हैं कि वो पायनियर हैं. सवाल अब ये है कि पुरुषों के खेल में रवैये और ढीले पड़ेंगे या नहीं, जर्मनी हो या और कहीं, और भी महिलाएं उनके नक्शेकदम पर चलेंगी या नहीं.
रिपोर्ट: माइकेल डा सिल्वा