फट सकती है एशिया की बैटरी मेकॉन्ग वैली
२७ अगस्त २०२१अमेरिकी राजनेता कई बरसों से जापान की "मुक्त और खुले हिंद प्रशांत” नीति के समर्थक रहे हैं. यह नीति विवादित दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानून लागू करने की मांग करती है. चीन पर वहां आक्रामक होने के आरोप भी लगते हैं.
अब अमेरिका एक कदम और आगे बढ़ रहा है. अगस्त 2021 में पूर्वी एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों के साथ सम्मेलन में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने "फ्री एंड ओपन मेकॉन्ग” की मांग कर दी.
इससे पता चलता है कि दक्षिणपूर्व एशिया में शांति और स्थिरता के लिए मेकॉन्ग नदी की भूमिका कितनी अहम है. दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों का इस नदी को लेकर चीन के साथ विवाद चल रहा है. बीजिंग पर मेकॉन्ग का भू-राजनीतिक इस्तेमाल करने के आरोप लग रहे हैं.
मेकॉन्ग नदी, चीन में तिब्बत के पठार से निकलती है. आगे चलकर यह म्यांमार, लाओस, थाइलैंड, कंबोडिया और वियतनाम के डेल्टा से गुजरते हुए दक्षिण चीन सागर में समाती है.
2010 से अब तक मेकॉन्ग नदी के ऊपरी और निचले क्षेत्र में चीन और लाओस पनबिजली के लिए सैकड़ों बांध बना चुके हैं. एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशन (आसियान) का सबसे गरीब देश लाओस चारों ओर से जमीनी सीमा से घिरा है. लाओस में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ना के बराबर हैं. लेकिन इसके बावजूद बीते एक दशक में उसकी जीडीपी 7 फीसदी की दर से बढ़ी है और इसमें पनबिजली का बड़ा योगदान है.
राजनीतिक एजेंडे के तले दबा पर्यावरण संकट
इन बांधों की कीमत पर्यावरण के साथ साथ करोड़ों विस्थापित लोगों ने चुकाई है. 2018 में दक्षिणी लाओस में बांध का एक हिस्सा टूटा. इस हादसे में 40 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बाढ़ का शिकार हुए.
थाईलैंड और वियतनाम के मुताबिक ऊपरी मेकॉन्ग क्षेत्र में बांध बनने के बाद से वे भी असामान्य सूखे और बाढ़ का सामना कर रहे हैं. पियानपोर्न डीटेस, एक ग्लोबल एनजीओ इंटरनेशनल रिवर्स की थाईलैंड और वियतनाम की कैंपेन डायरेक्टर हैं. डीटेस का कहना है कि मेकॉन्ग मुद्दे पर अमेरिका और चीन की बढ़ती दिलचस्पी ने बहस को "और ज्यादा राजनीतिक और धुव्रीय” बना दिया है.
आलोचकों का कहना है कि चीन ऊपरी इलाके में नदी का पानी रोककर बाकी देशों को धमका सकता है. ऐसा हुआ तो थाईलैंड और वियतनाम भीषण सूखे का सामना करेंगे. मेकॉन्ग का इस्तेमाल बैंकॉक और हनोई को राजनीतिक रूप से ब्लैकमेल करने के लिए किया जा सकता है. जुलाई 2021 में चीन के एक हैकर पर कंबोडियाई विदेश मंत्रालय के सर्वरों से मेकॉन्ग का डेटा चुराने के आरोप भी लगे.
डीडब्ल्यू से बातचीत में डीटेस ने कहा कि इन चुनौतियों के साथ ही इस इलाके में नदी से जुड़ी कई परियोजनाओं में अमेरिका और चीन ने खूब पैसा झोंका है. इस होड़ ने भी मामले को और उलझा दिया है.
क्या अमेरिका और चीन आपसी सहयोग कर सकते हैं?
2 अगस्त 2021 को अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने मेकॉन्ग-अमेरिका पार्टनरशिप के तहत मंत्री समूह की दूसरी बैठक में हिस्सा लिया. वह इसके सह मेजबान थे. यह सम्मेलन लोअर मेकॉन्ग इनिशिएटिव का नया रूप है. वहीं दूसरी तरफ चीन ने 2016 में लानकांग-मेकॉन्ग कोऑपरेशन फोरम की शुरुआत की.
स्टीम्सन सेंटर के साउथईस्ट एशिया प्रोग्राम के डायरेक्टर ब्रायन इयलर कहते हैं, "अमेरिका अपनी मेकॉन्ग-अमेरिका पार्टनरशिप पहल के तहत पारदर्शिता और मेकॉन्ग क्षेत्र में सबको साथ लेकर चलने पर जोर देता है, इससे चीन की अपने पड़ोस के प्रति जवाबदेही तय होती है.”
कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि तमाम मतभेदों के बावजूद अमेरिका और चीन मेकॉन्ग पर मिलकर काम भी कर सकते हैं. ग्लोबल डेवलपमेंट पॉलिसी सेंटर में ग्लोबल चाइना इनिशिएटिव की सीनियर रिसर्चर सेसिलिया हान स्प्रिंगर कहती हैं, "मेकॉन्ग का पर्यावरणीय संरक्षण एक ऐसा बड़ा मुद्दा है जो अमेरिका और चीन को साथ लाता है.”
दक्षिणपूर्वी एशिया में भीतरी मतभेद
आईएचई डेलफ्ट में वॉटर लॉ एंड डिप्लोमैसी की एसोसिएट प्रोफेसर सुजाने शमॉयर इसे एक साथ उलझी कई समस्याओं की तरह देखती हैं. उनके मुताबिक, "पहली नजर में ये चीन और दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के बीच का तनाव है, लेकिन उसके बाद दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के आपसी विवाद भी आते हैं."
ब्रायन इयलर कहते हैं, "डेटा दिखाता है कि लाओस के पनबिजली बांधों का सबसे बड़ा निवेशक थाईलैंड है, जिसने चीन के मुकाबले चार गुना ज्यादा बांध बनाए हैं.”
थाईलैंड, लाओस की बिजली का सबसे बड़ा खरीदार भी है. लेकिन इसके बावजूद लाओस के पास अभी भी सरप्लस बिजली बची है. वहीं पड़ोसी देश वियतनाम भी बिजली बेचने के लिए नया बाजार खोज रहा है. इयलर कहते हैं, "बुद्धिमानी तो यही होगी कि बिजली की मांग और आपूर्ति की समस्या सुलझने तक कोई नया बांध न बनाया जाए.”
डीटेस कहते हैं, "लाओस में मेकॉन्ग और उसकी सहायक नदियों पर बने बांधों की बिजली का अहम फाइनेंसर और खरीदार होने के नाते थाईलैंड की भूमिका काफी अहम है. वह चाहे तो मेकॉन्ग और उसके तटों पर बसने वाले लोगों को कम प्रभावित कर सकता है."
फरवरी 2020 में थाईलैंड सरकार ने चीन की अगुवाई वाले लानकांग-मेकॉन्ग नेविगेशन चैनल प्रोजेक्ट को खत्म कर दिया. इसकी वजह समाजिक और पर्यावरणीय असर को बताया गया.
इसके साल भर बाद, थाई प्रशासन ने चीनी डेवलपर की नई टेक्निकल रिपोर्ट को खारिज कर दिया. यह रिपोर्ट लाओस के सानाखाम डैम प्रोजेक्ट को लेकर थी. प्रोजेक्ट दो अरब डॉलर का है. डीटेस के मुताबिक, "थाईलैंड को लानकांग जलधारा को लेकर ज्यादा सक्रिय होना चाहिए और दूसरे मेकॉन्ग देशों के साथ काम करना चाहिए. वहां जिस तरह डैमों को ऑपरेट किया जा रहा है, उसे बदलने की जरूरत है ताकि नदी और उस पर निर्भर लोगों पर असर को कम किया जा सके."
चीन पर आर्थिक निर्भरता
लाओस पर दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों का असर कितना होगा, इसका सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है. बड़ी समस्या ये है कि लाओस, जिसे एशिया की बैटरी भी कहा जाता है, वह बिजली बेचने पर अपनी निर्भरता कैसे कम कर सकता है.
पड़ोसियों के उलट, लाओस के पास लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर नहीं है. वह अमेरिका और यूरोपीय संघ को बहुत ही कम निर्यात करता है. यूरोपीय आयोग के डेटा के मुताबिक 2020 में ईयू ने लाओस से सिर्फ 30 करोड़ डॉलर का आयात किया. लाओस की अर्थव्यवस्था पनबिजली के निर्यात, खनन और कृषि पर बहुत ही ज्यादा निर्भर है.
चीन लाओस का अहम राजनीतिक और कारोबारी साझेदार है. लाओस के कई बड़े प्रोजेक्टों में बीजिंग का पैसा लगा है. आशंका जताई जाती है कि लाओस पर चीन "कर्ज के दबाव वाली कूटनीति" इस्तेमाल कर सकता है. ऐसा हुआ तो लाओस को कर्ज चुकाने के लिए अपनी सरकारी संपत्तियां चीन को बेचनी पड़ सकती हैं. 2020 में चीन की एक कंपनी ने लाओस के घरेलू बिजली ग्रिड को इसी तरह अपने नियंत्रण में लिया.
मेकॉन्ग क्षेत्र के 100 बड़े पनबिजली बांधों को सूचीबद्ध करने वाली सेसिलिया हान स्प्रिंगर कहती हैं कि लाओस 90 फीसदी बिजली विदेशों को बेचना चाहता है. लाओस चाहे तो अपने घरेलू बिजली की मांग को पवन और सौर ऊर्जा से पूरी कर सकता है. पनबिजली बांधों के मुकाबले बहुत कम निवेश से यह किया जा सकता है.
रिपोर्ट: डेविड हट