तालिबान से बातचीत करनी चाहिएः मैर्केल
२६ अगस्त २०२१जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भरोसा दिलाया है कि देश की सेना के साथ काम करने वाले अफगानों को निकालने के लिए पूरी तत्परता से काम किया जा रहा है. बुधवार को जर्मन संसद में एक बयान में मैर्केल ने कहा कि 31 अगस्त की समयसीमा के बाद भी जर्मनी अफगान लोगों की मदद करता रहेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान छोड़ने की समयसीमा बढ़ाने की संभावना से इनकार कर दिया है जिसके बाद कई देश इस उलझन में हैं कि 31 अगस्त के बाद भी छूट गए लोगों का क्या होगा. जर्मन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उसने अब तक 4,600 से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है. इनमें जर्मन नागिरकों के अलावा स्थानीय कर्मचारी रहे लोग भी शामिल हैं.
मैर्केल के भाषण की मुख्य बातें
बुधवार को मैर्केल ने संसद को बताया कि जर्मनी 31 अगस्त के बाद भी उन लोगों की मदद करता रहेगा जिन्होंने अभियान के दौरान जर्मन सेना के साथ काम किया था और अब देश से निकलना चाहते हैं. मैर्केल ने कहा, "कुछ दिन में हवाई संपर्क की समयसीमा खत्म हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि हमारी मदद करने वाले और तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी समस्या में फंसे अफगान लोगों को लोगों की मदद की कोशिशें भी खत्म हो जाएंगी.”
चांसलर मैर्केल ने देश के अब तक के सबसे बड़े निकासी अभियान में जुटी जर्मन सेना को धन्यवाद कहा. उन्होंने अपने भाषण में कुछ बातों की ओर ध्यान दिलाया.
-
जर्मनी अफगानिस्तान में काम कर रहीं समाजसेवी संस्थाओं की मदद करता रहेगा.
-
जर्मनी अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों की मदद करेगा
-
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ बात करनी चाहिए
-
पश्चिमी देशों ने तालिबान की रफ्तार को कम करके आंका.
अब कड़वी सच्चाई है तालिबान
अंगेला मैर्केल ने कहा कि तालिबान सत्ता में लौट चुके हैं यह एक "एक कड़वी सच्चाई है जिसका हमें सामना करना है.” उन्होंने कहा, "इतिहास में बहुत सी चीजें लंबा वक्त लेती हैं. इसलिए हमें अफगानिस्तान को नहीं भूलना चाहिए, और हम नहीं भूलेंगे. क्योंकि, अभी इस कड़वे समय में दिखाई भले ना दे रहा हो, मुझे पूरा यकीन है कि कोई ताकत या विचारधारा शांति और न्याय की इच्छा को रोक नहीं सकती.”
देखेंः अमेरिका की 7 गलतियां
मैर्केल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि तालिबान के साथ बातचीत करे ताकि नाटो अभियान के दौरान जो प्रगति हासिल हुई है, उसे बचाया जा सके. उन्होंने कहा, "हमारा मकसद होना चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके, 20 वर्ष में अफगानिस्तान में बदलाव के तौर पर हमने जो हासिल किया है उसका जितना हो सके बचा सकें. इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए.”
खूब बरसा विपक्ष
अफगानिस्तान जिस तेजी से तालिबान के हाथों में गया, उसने जर्मन सरकार को हैरान कर दिया था. अब उसकी आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि उसने ऐसी स्थिति के लिए तैयारी क्यों नहीं की. मैर्केल ने बताया कि लोगों को निकालने का काम पहले से शुरू नहीं किया जा सकता था क्योंकि इससे अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार पर लोगों का भरोसा कम होता. बुधवार को हुआ जर्मन संसद का यह सत्र अद्वितीय था क्योंकि सरकार संसद से एक हफ्ता पहले शुरू हो चुके निकासी अभियान की पुष्टि चाहती थी. कैबिनेट ने संसद की मंजूरी से पहले ही अभियान को शुरू करने का फैसला काबुल पर तालिबान के अचानक हुए नियंत्रण के चलते लिया था.
सांसदों ने इस अभियान के पक्ष में मतदान तो किया लेकिन विपक्ष ने सरकार की आलोचना में भी कसर नहीं छोड़ी. बहस के दौरान सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के मुखिया डिएटमार बार्ट्ष ने कहा बतौर चांसलर मैर्केल के 16 साल के कार्यकाल में ‘विफल अफगानिस्तान अभियान' सबसे "निम्नतम स्थिति” है.
जानेंः अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
ग्रीन पार्टी की ओर से आगामी चुनावों में चांसलर पद की उम्मीदवार आनालेना बेयरबॉक ने पूरी स्थिति को विदेश नीति की असफलता करार दिया. बाजारवाद की समर्थक मानी जाने वाली फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी सरकार पर गैरजिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आरोप लगाया.
सोशल डेमोक्रैट्स पार्टी के संसद में प्रमुख रॉल्फ म्युत्सेनिष ने तो सरकार की पूरी स्थिति को संभालने के मामले की जांच की भी मांग की. संसद में विदेश मामलों की समिति की अध्यक्ष सेविम डागडेलेन ने सरकारी रेडियो डॉयचलांडफुंक से बातचीत में कहा कि जर्मन सेना द्वारा दसियों हजार लोगों को काबुल एयरपोर्ट के रास्ते बाहर निकालने का विचार ही ख्याली पुलाव है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत कर्मचारी तो एयरपोर्ट पहुंच ही नहीं पाए हैं.
रिपोर्टः आलेक्स बेरी, फरहा भगत