अंटार्कटिका के इकोसिस्टम में खलबली मचाने जा पहुंचा प्लास्टिक
२४ जून २०२०पहली बार वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका की मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के अंदर से माइक्रोप्लास्टिक मिला है. ‘बायोलॉजी लेटर्स' नाम के साइंस जर्मन में छपी इस स्टडी के लेखक ने लिखा है कि यहां की धरती पर मौजूद फूड चेन में प्लास्टिक के पहुंचने से "ध्रुवीय ईकोसिस्टम पर और दबाव बनेगा जो पहले से ही इंसानी दखलअंदाजी बढ़ने और जलवायु परिवर्तन की परेशानियां झेल रहा है."
क्या होते हैं माइक्रोप्लास्टिक?
यह प्लास्टिक के ऐसे कण होते हैं जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी छोटा होता है. दुनिया भर में नदियों और सागरों में इस समय करीब 15 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा घुला होने का अनुमान है. यह जब लहरों और अल्ट्रावायलेट किरणों के कारण टूट-टूट कर और छोटा हो जाता है तो माइक्रोप्लास्टिक बन जाता है. यह माइक्रोप्लास्टिक सागर के पानी के साथ फिर तलछटी, तटीय इलाकों और समुद्री जीवों में पहुंच जाता है.
स्टडी कैसे कराई गई?
इटली की सिएना यूनिवर्सिटी ने रिसर्च टीम का नेतृत्व किया. उन्होंने इलाके के किंग जॉर्ज आइलैंड से लाए गए एक सिंथेटिक फोम के टुकड़े की जांच की, जो लंबे समय से वहां पड़े होने के कारण मॉस और लाइकेन जैसे समुद्री जीवों से लिपटा था.
इंफ्रारेड इमेजिंग तकनीक की मदद से रिसर्चरों ने पाया कि इनमें से एक जीव के भीतर पॉलीस्टाइरीन से बने फोम का अंश पहुंचा हुआ था. यह जीव स्प्रिंगटेल कहलाता है और इसका वैज्ञानिक नाम है क्रिप्टोपाइगस एंटार्कटिकस. यह सूक्ष्मजीव अंटार्कटिका क्षेत्र में लगभग उन सब जगहों पर पाया जाता है, जो हमेशा बर्फ से ढके नहीं रहते. यह जीव लाइकेन और माइक्रो-एल्गी को खाता है.
रिसर्चरों ने बताया कि अपने इसी भोजन के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक स्प्रिंगटेल के भीतर पहुंचा होगा. रिसर्चरों का मानना है कि प्लास्टिक इस रास्ते से अब तक अंटार्कटिका की जमीन पर पाए जाने वाले जीवों के पूरे सिस्टम में प्रवेश कर चुका होगा.
प्लास्टिक प्रदूषण से कैसा खतरा
सागरों में प्लास्टिक का कचरा होने की जानकारी पहले से ही थी. लेकिन अंटार्कटिका जैसे इंसानी आबादी से दूर दराज के इलाकों की धरती में भी इसका पाया जाना नई बात है. वैज्ञानिकों कहते हैं कि यहां भी प्लास्टिक पहुंचने का मतलब हुआ कि इससे अंटार्कटिका के बेहद नाजुक संतुलन वाले ईकोसिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है.
यह इलाका पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से अपने ग्लेशियर गंवा रहा है. इसके अलावा रिसर्च पोस्ट, मिलिट्री सेंटर और पर्यटन के कारण बीते सालों में यहां इंसानी गतिविधियां भी काफी बढ़ गई हैं. इसलिए हैरानी नहीं कि साउथ शेटलैंड के द्वीपों में से एक किंग जॉर्ज आइलैंड के आसपास का इलाका "पूरे अंटार्कटिका के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक" बन चुका है.
आरपी/एके (एएफपी)
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