चक्रव्यूह में फंस गए हैं इमरान खान
११ मई २०२३इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह पाकिस्तान की सड़कों पर लोग उमड़े हैं, उससे पता चलता है कि ना तो उनके हक में खड़े होने वालों की कमी है और ना उनके लिए जान देने वालों की. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी के दो दिन के भीतर विरोध प्रदर्शनों में अब तक कम से कम छह लोग मारे जा गए हैं और हजारों लोग गिरफ्तारी दे चुके हैं. और यह आग जल्द ठंडी होने वाली नहीं है.
पाकिस्तान के इतिहास में यह विलक्षण नजारा है, जब पूरा राजनीतिक परिदृश्य किसी एक राजनेता के इर्द-गिर्द घूम रहा है. वरना, बीते 75 साल के इतिहास में यही देखा गया है कि भले दुनिया इधर से उधर हो जाए, लेकिन पाकिस्तान की ताकतवर सेना ने देश पर अपनी पकड़ को कभी कमजोर नहीं होने दिया. पाकिस्तान का राजनीतिक, सामाजिक औरआर्थिक ताना-बाना ही इस तरह बुना गया है कि पूरा तंत्र सेना के हाथों की कठपुतली नजर आता है.
लेकिन अब इसे चुनौती मिल रही है. और चुनौती देने वाले हैं इमरान खान, जिनकी लोकप्रियता इस वक्त आसमान पर है. उनकी गिरफ्तारी ने तो टकराव की इस आग को और भड़का दिया है. लेकिन इस की तपिश में कौन जलेगा? सेना या शायद खुद इमरान खान.
फंस गए हैं इमरान खान?
पाकिस्तान कभी इतना बंटा हुआ नहीं दिखा, जितना आज नजर आता है. तंग आर्थिक हालात के बीच उठे सियासी बवंडर ने देश को असल में दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. हालात इतने जटिल हो चुके हैं कि कई लोगों को गृह युद्ध भड़कने की आशंका सताने लगी है. इसकी वजह साफ है कि इमरान खान को रोका गया तो ना वह चुप बैठेंगे और ना ही उनके समर्थक.
दूसरी तरफ, लगता है कि मौजूदा सरकारी तंत्र हर कीमत पर इमरान खान को देश की सत्ता और राजनीतिक व्यवस्था से दूर रखना चाहता है. उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे इसी बात की तरफ इशारा करते हैं. किसी एक मामले में भी वह दोषी करार हो गए, तो इस साल होने वाले आम चुनाव में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. इमरान खुद पर लगे तमाम आरोपों को बेबुनियाद करार देते हैं लेकिन सच यही है कि उनके आसपास घेरा तंग हो रहा है.
मौजूदा सरकार में बैठे उनके राजनीतिक विरोधियों को वह बेशक फूटी आंख नहीं सुहाते. साथ ही सेना की आंखों में भी इमरान खान चुभ रहे हैं. पाकिस्तानी सेना के मौजूदा प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को उनसे पुरानी खुन्नस है. इमरान खान ने प्रधानमंत्री रहते हुए भी और पद छोड़ने के बाद भी, हर मुमकिन कोशिश की कि आसिम मुनीर को सेना की कमान ना मिले. लेकिन पिछले साल जैसे ही इमरान की सरकार गिरी और उसके बाद शहबाज शरीफ के नेतृत्व में नई सरकार बनी, तो सबसे पहले आसिम मुनीर की नियुक्ति की गई.
इसके बाद भी इमरान और उनके समर्थकों ने आसिम मुनीर का पीछा नहीं छोड़ा. आए दिन सोशल मीडिया पर इमरान के समर्थक कुछ तकनीकी वजहों का हवाला देकर आसिम मुनीर की नियुक्ति को गैरकानूनी ठहराने में लगे रहते हैं. ऐसे में इमरान खान कैसे सेना की तरफ से किसी समर्थन की उम्मीद कर सकते हैं. कुल मिलाकर हवा इमरान खान के खिलाफ बह रही है.
अब आगे क्या होगा?
इमरान के पास सिर्फ उनके समर्थक हैं. वह सड़कों को भर सकते हैं, चक्का जाम कर सकते हैं, सोशल मीडिया पर छा सकते हैं, दुनिया भर के मीडिया में सुर्खियां बटोर सकते हैं, हो सकता है कि कुछ देश उनके समर्थन में अपीलें भी जारी कर दें. लेकिन क्या इससे पाकिस्तान के सियासी अखाड़े में इमरान खान को कोई फायदा होगा? ऐसा लगता नहीं है.
पाकिस्तान को आज तक जिस तरह चलाया गया है, उसमें सेना की भूमिका सर्वोपरि रही है. व्यावहारिक रूप से वह देश की हर संस्था और हर प्रतिष्ठान से बढ़कर है. उसे ही देश की संप्रभुता का असली रक्षक माना जाता है. इसीलिए सेना को कमजोर करने की किसी भी कोशिश को सीधे संप्रभुता के लिए मौजूद खतरे के तौर पर देखा जा सकता है. इसीलिए पाकिस्तान में कोई भी शख्स देश की सेना से बड़ा नहीं हो सकता. इमरान खान भी नहीं.
अभी हालात ऐसे हो गए हैं कि इमरान खान की मजबूती को सेना की कमजोरी के तौर पर देखा जाएगा. और पाकिस्तानी सेना किसी भी कीमत पर अपना दबदबा नहीं छोड़ना चाहेगी. मौजूदा सेना प्रमुख आसिम मुनीर के नेतृत्व में तो वह शायद इमरान खान से समझौता भी नहीं करना चाहेगी.
इमरान खान अपने समर्थकों के जरिए राजनीतिक पारे को जितना बढ़ाते जाएंगे, उतना ही टकराव का रास्ता तैयार होता जाएगा. बेशक जनता का बड़ा हिस्सा इमरान खान के साथ है. लेकिन पाकिस्तान में असली ताकत सेना के पास है जिसके हाथ में पूरा तंत्र है. और जो भी सेना से उसकी ताकत छीनने की कोशिश करेगा, सेना उसे बर्दाश्त नहीं करेगी. इमरान खान ने टकराव का रास्ता चुना है.
चक्रव्यूह तोड़ने की चुनौती
ऐसा नहीं है कि इमरान खान के लिए इस चक्रव्यूह को तोड़ना एकदम नामुमकिन है. यहां तुर्की की मिसाल दी जा सकती है, जिसकी तरफ पाकिस्तान कई मामलों में उम्मीद की निगाहों से देखता है और कई बार उसे कश्मीर जैसे मुद्दों पर तुर्की का समर्थन भी मिला है. तुर्की की व्यवस्था में भी कभी सेना का इसी तरह दबदबा हुआ करता था. लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने सेना के पर कुछ इस तरह कतरे कि फौजी सिर्फ अपने बैरकों और छावनियों तक सिमट कर रह गए हैं. और देश की सत्ता अब पूरी तरह राजनीतिक नेतृत्व के हाथों में है.
पाकिस्तान के मौजूदा परिदृश्य में ऐसा हो पाएगा, कहना मुश्किल है. लेकिन यह असंभव नहीं है. अगर इमरान खान ऐसा कर पाए, तो यह वाकई 'तब्दीली' होगी, जिसका नारा इमरान खान शुरू से लगाते आए हैं. इससे सिर्फ पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था ही नहीं बदलेगी, बल्कि पड़ोसी भारत के साथ भी रिश्तों में बेहतरी का रास्ता तैयार हो सकता है. भारत से पाकिस्तान के रिश्ते जितने बेहतर होंगे, पाकिस्तानी सेना के दबदबे में उतनी ही कमी आएगी.