गंदी हवा में सांस ले रहा है लगभग हर यूरोपवासी
७ सितम्बर २०२३यूरोप में लगभग हर कोई प्रदूषित शहरों और कस्बों में रहता है जहां हवा में मौजूद बारीक प्रदूषकों का सालाना औसत डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों से कहीं ज्यादा है. इसका मतलब है कि यूरोप में लगभग हर इंसान गंदी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. वायु प्रदूषण से सांस और दिल की बीमारियां हो सकती हैं. बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के निदेशक मार्क न्यूवेनह्यूसेन ने कहा, "वायु प्रदूषण के वर्तमान स्तर की वजह से बहुत सारे लोग बीमार पड़ रहे हैं. हम जानते हैं कि अगर वायु प्रदूषण कम किया जाए तो यह नंबर भी नीचे आता है."
यूरोप का हाल
डीडब्ल्यू ने यूरोपियन डाटा जर्नलिज्म नेटवर्क के साथ मिलकर कॉपरनिकस ऐटमॉसफियर मॉनिटरिंग सर्विस के डाटा का विश्लेषण किया. जिससे पता चला है कि 2022 में 98 फीसदी यूरोपीय, यानी लगभग हर यूरोपीय जो ऑक्सीजन अंदर ले रहा है उसमें बारीक प्रदूषक जिन्हें पर्टिक्यूलेट मैटर या पीएम2.5 कहा जाता है, सुझाई गई सीमा से कहीं ज्यादा है. डब्ल्यूएचओ की सिफारिश है कि हवा में पर्टिक्यूलेट मैटर का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए. एक माइक्रोग्राम एक मिलिग्राम से 1000 गुना कम होता है. यूरोप में अलग-अलग इलाकों का प्रदूषण स्तरएक दूसरे से अलग है.
खास हिस्सों की बात की जाए तो मध्य यूरोप के कुछ इलाकों में जैसे इटली की पो वैली, बड़े मेट्रोपॉलिटन एरिया, एथेंस, बार्सिलोना और पेरिस में हालात काफी गंभीर हैं. डाटा दिखाता है कि यूरोप के सबसे ज्यादा प्रदूषित इलाकों में पीएम2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच जाता है.
यूरोपीय शहरों में प्रदूषण का ऊंचा स्तर कोई नई बात नहीं है लेकिन यह नया डाटा यूरोप के अलग-अलग इलाकों की तुलना पेश करता है. इससे यह भी पता चलता है कि हवा कहां बेहतर हुई है और कहां हालात बिगड़ेहैं.
दुनिया के बाकी हिस्से
इस तरह के डाटा का इस्तेमाल ऐसे इलाकों की पहचान के लिए किया जा सकता है जहां एक समान दिक्कतें हैं लेकिन स्थिति अलग है. जैसे उत्तरी इटली में प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा है. इसी तरह पोलैंड के दक्षिणी हिस्से में प्रदूषण ज्यादा है लेकिन वहां इसमें कमी आती भी दिख रही है. इससे यह पता लगाया जा सकता है कि हवा साफ करने के उपाय काम कर रहे हैं कि नहीं.
यूरोप की हवा दुनिया के बाकी इलाकों के मुकाबले साफ है. उदाहरण के लिए, भारत की बात की जाए तो दिल्ली, बनारस, आगरा जैसे उत्तरी शहरों में पीएम2.5 का औसत 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर चला जाता है. जबकि यूरोप में यह ज्यादा से ज्यादा 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर ही दर्ज हुआ है.
लेकिन तुलनात्मक रूप से यूरोप में प्रदूषण का स्तर नीचे होने के बावजूद लोगों की सेहत खराब करने के लिए यह काफी है.