यूपी: अब तक 9 लोग भेड़ियों के शिकार, पकड़ना क्यों मुश्किल
१ सितम्बर २०२४उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में महसी विधानसभा का एक गांव है, कुम्हारनपुरवा. 25 अगस्त को यहां की निवासी रीता देवी पर भेड़िए ने जानलेवा हमला किया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बचाई जा सकी.
भेड़िये इंसानों के लिए खतरा हैं या इको सिस्टम के रक्षक
रीता देवी के पति रामनरेश वर्मा बताते हैं, "रात के समय घर की सभी लाइटें जल रहीं थी. बच्चे और हम छत पर थे. रीता आंगन में सो रही थी. अचानक आवाज आई, तो बच्चे नीचे पहुंचे. देखा, रीता की गर्दन भेड़िए के मुंह में थी और वह छटपटा रही थी. हमने अपने आस-पास की चीजें उठाकर उसकी तरफ फेंकी, तो वह रीता को छोड़कर भाग गया."
कई गांवों में फैला है डर
बहराइच जिले के करीब 35 गांवों के लोग बीते कई महीनों से दहशत में हैं. मार्च से अब तक अलग-अलग गांवों के नौ लोगों की भेड़ियों के हमले से मौत हो चुकी है. इनमें आठ बच्चे और एक महिला शामिल है. हालिया हमलों से जुड़ा शुरुआती मामला 17 जुलाई को सामने आया, जब सिकंदरपुर गांव में एक साल का बच्चा भेड़िए के हमले में मारा गया. कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 31 अगस्त की रात हरदी इलाके में भी एक जानवर ने छह साल के एक बच्चे और 55 वर्षीय व्यक्ति पर हमला किया. बच्चे की हालत गंभीर बताई जा रही है. लोगों का दावा है कि हमला करने वाला जीव भेड़िया था.
घायल बच्चे के एक रिश्तेदार ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, "मैं बच्चे का चाचा हूं. देर रात करीब 1:30 बजे उसपर हमला हुआ. जब हम चीखे, तो भेड़िए ने उसे छोड़ा और भाग गया. हमने उसका पीछा किया, लेकिन वो गन्ने के खेत में चला गया. वह भेड़िया था. घर में उसके पांव का निशान है."
जिन भेड़ियों को कीड़ा काट जाए, वे बनते हैं दल के नेताः शोध
यूं तो भेड़ियों के हमलों की घटनाएं मार्च से ही हो रही हैं, लेकिन बीते डेढ़ महीने से यह दहशत और बढ़ गई है. सबसे अधिक हमले इसी अवधि में हुए हैं. 36 से भी अधिक लोगों को भेड़ियों ने घायल किया है. डर के कारण ग्रामीण लाठी- डंडे और पटाखे जलाकर पहरेदारी कर रहे हैं.
शिवनारायण वर्मा, कुम्हारनपुरवा गांव में भेड़िए के हमले से मारी गईं रीता देवी के देवर हैं. वह बताते हैं कि रीता देवी की मौत के बाद से ही गांव में काफी दहशत है. डर के मारे बच्चों को घर से निकलने नहीं दिया जाता. रात के समय झुंड में लोग भेड़ियों के तलाश में जाते हैं. दो दिन पहले ऐसी ही एक गश्त में ग्रामीणों ने एक भेड़िया देखा था, लेकिन वह तुरंत ही गन्ने के खेत में गायब हो गया.
इस इलाके में नीलगाय और आवारा पशुओं से फसलों को नुकसान होने की शिकायतें पुरानी हैं. फसलों की सुरक्षा के लिए कई गांवों में लोग रात को पहरेदारी करते हैं. इस समय खेतों में धान की फसल लगी हुई है, लेकिन भेड़ियों के डर से लोग बाहर निकलने से कतरा रहे हैं . ताहिर कहते हैं, "फसलों की देखभाल करें या खुद की सुरक्षा करें?"
अधिकारियों के प्रति रोष
चंदपइया गांव में तीन लोगों पर भेड़िए हमला कर चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें हर दिन भेड़िये दिख रहे हैं. इसकी वजह से स्थानीय निवासियों में डर और प्रशासन के प्रति रोष भी है. गांव के निवासी मोहम्मद ताहिर कहते हैं, "हमें गांव में रहते हुए कई साल हो गए हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि रोजाना भेड़िए दिख रहे हैं. इसकी वजह से डर भी बढ़ रहा है."
ग्रामीणों के मुताबिक, 30 अगस्त को भी भेड़िया एक बच्ची पर झपटा लेकिन उसकी मां ने समय रहते देख लिया और बच्ची को बचा लिया. ग्रामीणों ने वन विभाग को भी इस बारे में सूचित किया, लेकिन अब तक वहां कोई अधिकारी नहीं पहुंचा है. इसके कारण ग्रामीण नाराज हैं. मोहम्मद ताहिर बताते हैं, "हमने भेड़िए के पांव के निशान पहचानने और उसे पकड़ने के लिए डीएफओ को बुलाया. उनकी तरफ से आश्वासन भी मिला, लेकिन अब तक कोई भी नहीं आया."
"ऑपरेशन भेड़िया"
आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने की कार्रवाई को "ऑपरेशन भेड़िया" नाम दिया गया है. वन विभाग के अनुसार, बहराइच में घाघरा नदी के किनारे बसे इलाकों में अब तक छह आदमखोर भेड़िए नजर आ चुके हैं. थर्मल इमेजिंग वाले ड्रोन कैमरों से भेड़ियों को खोजा जा रहा है. खेतों में गन्ने के पत्तों की ओट में या घनी जगहों पर वन्यजीवों को देखना मुश्किल होता है. कैमरों के लिए भी उन्हें देख पाना मुश्किल होता है. ऐसी स्थिति में इंफ्रारेड कैमरों से जानवरों के मौजूद होने की पहचान की जाती है. थर्मल इमेजिंग का ड्रोन कैमरा इसी तकनीक पर काम करता है.
तकनीक के इस्तेमाल के अलावा इस ऑपरेशन में वन विभाग की 10 टीमें शामिल हैं. वन विभाग के अलावा राजस्व विभाग, पीएसी की दो कंपनियां, कई थानों के पुलिसकर्मी, होमगार्ड और प्रांतीय रक्षा दल के सदस्य भी ऑपरेशन में शामिल हैं. इनके अलावा बाराबंकी, बहराइच और कतर्निया घाट नेशनल पार्क के डीएफओ भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं.
जानकारों के मुताबिक, भेड़ियों को पकड़ना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उनका झुंड एक साथ एक जगह पर मिल जाए ऐसा जरूरी नहीं होता. भेड़ियों को पकड़ने के लिए तेंदुआ और बाघ के रेस्क्यू ऑपरेशन की तकनीक नहीं अपनाई जा सकती. भेड़िया काफी चालाक होता है और पिंजरे में जल्दी नहीं आता.
भेड़ियों को पकड़ने की कार्रवाई का ब्योरा साझा करते हुए बहराइच के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) अजीत सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "वन विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारियों के साथ घेरा बनाया जाता है. घेरा जितना छोटा होता है, भेड़िए को पकड़ना उतना आसान होता है. इसके अलावा हवा का बहाव जिस ओर होता है, उसकी विपरीत दिशा में घेरा बनाया जाता है ताकि भेड़िए तक हमारी गंध न पहुंचे."
इंसानी गंध मिलते ही भेड़िये उस जगह से दूर चले जाते हैं और उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है. उन्हें पीछे से जाल के जरिए पकड़ना पड़ता है. हालांकि, बाघ के लिए भी जाल बिछाया जाता है पर वह भारी होता है. ऐसे में भेड़ियों को पकड़ने के लिए हल्के जाल का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उन्हें लगे कि वह इसपर आसानी से चल सकते हैं और इसी के जरिए उन्हें पकड़ना आसान हो जाता है. इसके बाद जाल से एक ऐसा रास्ता बनाया जाता है, जो पिंजरे तक जाता हो.
तैरकर भी आ सकते हैं भेड़िये
प्रकृति और पर्यावरण को देखें, तो इस इलाके में भेड़ियों की उपस्थिति सामान्य है. बहराइच में घाघरा नदी का किनारा और टापू है. भेड़ियों को खाना-पानी और रहने के लिए बलुई मिट्टी खोदकर नाद के रूप में सुरक्षित स्थान मिल जाता है.
मोहम्मद अशफाक खान, बहराइच में वन विभाग के सोशल फॉरेस्ट्री विभाग में 11 साल काम कर चुके हैं. वन्यजीव विभाग में भी उन्होंने 24 साल तक सेवा दी है. वह बताते हैं, "आबादी के क्षेत्र से जंगल लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है. ऐसे में भेड़िए जैसे छोटे जानवर चलकर नहीं आ सकते." हालांकि, कई जानकार यह बात की भी संभावना जता रहे हैं कि भेड़िये बारिश के कारण आई बाढ़ में बहकर आबादी के क्षेत्र तक आए हों और खाने की तलाश में आदमखोर बन गए हों. इस पक्ष पर अशफाक कहते हैं, "जंगल में जब बाढ़ आती है, तो ज्यादातर जानवर बहकर ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं और गांव की तरफ आने पर इन जानवरों को शिकार में परेशानी होती है. ऐसे में भूख के चलते हुए बकरी जैसे जानवरों और बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं."
महसी से विधायक सुरेश्वर सिंह ने भी भेड़ियों को खोजने में लोगों का साथ दिया. वह बताते हैं, "नदी का कछार होने के कारण इस इलाके में भेड़िये काफी संख्या में हैं. इनमें से जो आदमखोर हो जाते हैं, उनका झुंड अलग हो जाता है." वन विभाग की मानें, तो नदी के आसपास 35 किलोमीटर का क्षेत्र भेड़ियों के हमले से प्रभावित है.
एक भेड़िये की मौत
पकड़े गए भेड़ियों में से एक नर और मादा को लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान और एक अन्य नर भेड़िये को गोरखपुर चिड़ियाघर भेजा गया है. इसके अलावा एक अन्य भेड़िए की 'दिल का दौरा पड़ने' से मृत्यु हो चुकी है. डीएफओ अजीत सिंह बताते हैं, "भेड़ियों को पिंजरे में बंदकर और फिर पिंजरे को ढककर ले जाना पड़ता है, ताकि वह आसपास के वातावरण को देखकर डरे नहीं."
हालांकि, इस दौरान बंद जगह पर घबराहट और बेचैनी के कारण भेड़िए को हार्ट अटैक आने के भी मामले सामने आते हैं. अजीत सिंह बताते हैं, "पहले भेड़िए की मौत होने के बाद अन्य तीन भेड़ियों को बहुत ही धीमी गति से चिड़ियाघर ले जाया गया, ताकि गाड़ी चलने के दौरान घुमावदार रास्तों में पिंजरे को हिलने-डुलने से बचाया जा सके और भेड़िए सुरक्षित रह सकें."
अभी रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा नहीं हुआ है. दो भेड़ियों की तलाश अब भी जारी है. 31 अगस्त को इन दो भेड़ियों के लिए जाल बिछाया गया था, लेकिन वे जाल में फंसने के बाद भी भाग निकले. हालांकि, कई जानकार और भी भेड़ियों के होने की आशंका जता रहे हैं. मोहम्मद अशफाक खान भी कहते हैं, "जरूरी नहीं कि इस झुंड में सिर्फ छह भेड़िये ही हों."
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया है कि उन्होंने ड्रोन की मदद से बाकी बचे दोनों भेड़ियों को खोज निकाला है और अगले एक-दो दिन में उन्हें पकड़ा जा सकेगा.
कतर्नियाघाट अभयारण्य भी है पास
बहराइच में ही कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य भी है. वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से यह अभ्यारण्य महत्वपूर्ण है. भारत और नेपाल की सीमा पर यह जगह 1987 से प्रोजेक्ट टाइगर के अधीन है. किशनपुर वन्य अभयारण्य और दुधवा नेशनल पार्क के साथ यह मिलकर यह दुधवा टाइगर रिजर्व बनाता है. यहां चीतल, सांभर, काकड़, पाढ़ा और बारहसिंगा जैसे वन्यजीवों के साथ बाघ, तेंदुआ, भालू, सेही, उड़न गिलहरी, हाथी, मगरमच्छ समेत कई अन्य जंगली प्रजातियों को देखा जा सकता है.
कई जानकार ध्यान दिलाते हैं कि वन्य जीव और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष को कम करने के लिए यह भी जरूरी है कि जंगली क्षेत्र के आसपास रहने वाली आबादी को इस दिशा में ज्यादा जागरूक किया जाए.