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कार्बन उत्सर्जन: अमीरों की करनी झेलती पूरी दुनिया

२१ सितम्बर २०२०

सड़कों पर बड़ी बड़ी एसयूवी कारों की सवारी करने वाले और साल में अनगिनत बार विमान पर चढ़ने वाले अमीरों को दुनिया में कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा मानवीय स्रोत पाया गया है. इन सुविधाओं की सबसे भारी कीमत गरीब चुका रहे हैं.

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तस्वीर: Imago Images/S. Zeitz

ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया के सबसे अमीर एक फीसदी लोग जितना कार्बन उत्सर्जन करते हैं, वह दुनिया की आधी गरीब आबादी के उत्सर्जन से दोगुना है. इन नतीजों को दिखाते हुए इस अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था ने ऐसे अमीरों पर कार्बन उत्सर्जन से संबंधित पाबंदियां लगाने की मांग की है. विश्व में जलवायु परिवर्तन के मामले में सबकी भागीदारी तय करने और इसकी न्यायोचित व्यवस्था स्थापित करने के लिए सार्वजनिक ढांचों में निवेश बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में सुधार करने की मांग की है.

ऑक्सफैम ने अपनी स्टडी के लिए सन 1990 से लेकर 2015 के बीच 25 सालों के आंकड़ों का अध्ययन किया. यह वही अवधि है जिसमें विश्व का कार्बन उत्सर्जन दोगुना हो गया. रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान विश्व के 10 फीसदी सबसे अमीर लोग ही कुल वैश्विक उत्सर्जन के आधे से भी अधिक (करीब 52 फीसदी) के लिए जिम्मेदार हैं. यहां तक कि विश्व के 15 फीसदी उत्सर्जन को रिसर्चरों ने केवल टॉप एक फीसदी अमीरों की गतिविधियों से जुड़ा पाया.

वहीं दुनिया की आधी गरीब आबादी ने इसी अवधि में केवल 7 फीसदी उत्सर्जन किया, जबकि जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर दुनिया के गरीबों को ही झेलना पड़ा रहा है. इसका कारण समझाते हुए ऑक्सफैम जर्मनी से जुड़ी सामाजिक असमानता विशेषज्ञ एलेन एमके बताती हैं दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं उपभोक्तावाद, आर्थिक विकास और पैसों के आधार पर लोगों के बंटवारे पर चलती हैं. वह बताती हैं कि इसी व्यवस्था के कारण मुट्ठी भर अमीर लोगों की खपत और सुविधाओं का खामियाजा दुनिया के सबसे गरीब लोग भरते हैं.

जर्मनी का कितना हाथ

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के अमीरों को भी ऑक्सफैम की स्टडी में काफी जिम्मेदार ठहराया गया. यहां के सबसे अमीर 10 फीसदी लोग यानि करीब 83 लाख लोग देश के कुल कार्बन उत्सर्जन के एक चौथाई से ज्यादा के लिए जिम्मेदार बताए गए. वहीं देश के गरीबों की आधी आबादी यानि 4.15 करोड़ लोगों ने कुल मिलाकर 29 फीसदी उत्सर्जन किया.

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अमीरों में साल दर साल बढ़ा प्राइवेट जेट रखने का शौक.

अमीरों और गरीबों के कार्बन उत्सर्जन में इतना बड़ा अंतर नजर आने का सबसे बड़ा कारण ट्रैफिक है. खासकर हवाई यात्रा से जुड़ी व्यवस्था में बदलाव लाकर बहुत कुछ बदला जा सकता है. ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में बड़ी बड़ी एसयूवी गाड़ियों की खासकर निंदा की है. स्टडी में पाया गया है कि 2010 से 2018 के बीच यही गाड़ियां कार्बन उत्सर्जन का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत रहीं.

बेहतरी के सुझाव

ऑक्सफैम का अनुमान है कि धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने के लिए सबसे अमीर 10 फीसदी आबादी को अपने उत्सर्जन को वर्तमान स्तर से 10 गुना नीचे लाना होगा. इसके लिए एनजीओ ने एसयूवी गाड़ियों और जल्दी जल्दी हवाई यात्रा करने वालों पर ज्यादा टैक्स लगाए जाने की मांग की है.

रिपोर्ट के मुख्य लेखक और संस्था में जलवायु नीति के प्रमुख टिम गोर ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बातचीत में कहा कि अमीरों से अपनी इच्छा से व्यक्तिगत स्तर पर बदलाव लाने की उम्मीद करना काफी नहीं होगा, "इसकी कमान सरकारों को अपने हाथ में लेनी ही होगी."

अमीरों पर ज्यादा टैक्स

कोरोना महामारी के काल में हवाई यात्राओं में वैसे ही बहुत कमी दर्ज हुई है. मिसाल के तौर पर, विमानों में बिजनेस क्लास, प्राइवेट जेट से यात्रा करने वालों और साल में कई बार विमान से यात्रा करने वालों की संख्या में बहुत कमी आई है. जलवायु से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मानना है कि नए और ऊंचे टैक्स लागू करने के लिए यह सबसे सही मौका होगा.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के अतिरिक्त टैक्सों से होने वाली कमाई को दुनिया के सबसे गरीब लोगों की मदद में लगाया जाना चाहिए. उनका प्रस्ताव है कि इससे गरीबों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, सार्वजनिक यातायात और डिजिटल ढांचे स्थापित किए जाने चाहिए.

फ्रांस ने एसयूवी गाड़ियों पर पहले ही टैक्स बढ़ा दिए हैं. न्यूजीलैंड और स्कॉटलैंड जैसे इलाकों में इस बारे में समझ बढ़ रही है कि सफलता की परिभाषा में केवल आर्थिक विकास पर ही नजर ना हो बल्कि लोगों की "खुशहाली" का व्यापक मूल्यांकन करने के लिए इन सब कारकों को देखा जाए.

आरपी/एके (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)

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