पाकिस्तान में भीड़ ने व्यक्ति को मारकर पेड़ पर लटकाया
१४ फ़रवरी २०२२ईशनिंदा से जुड़ी हिंसा की ताजा घटना में पाकिस्तान में एक व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. पुलिस का कहना है कि लोगों को उस व्यक्ति पर कुरान के पन्ने जलाने का संदेह था.
पुलिस ने इस घटना के लिए 80 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. घटना शनिवार को हुई जब पंजाब प्रांत के खानेवाल जिले में एक व्यक्ति पर भीड़ ने हमला कर दिया. हमले के वक्त यह व्यक्ति पुलिस की हिरासत में था और लोगों ने उसे पुलिस से छीन लिया.
इमरान खान सख्त
रविवार को पुलिस ने उस व्यक्ति का शव उसके परिजनों को सौंप दिया और उसका अंतिम संस्कार किया गया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि घटना के लिए जिम्मेदार लोगों से सख्ती निपटा जाएगा.
इमरान खान ने कहा, "हमारी सरकार किसी भी व्यक्ति के द्वारा कानून अपने हाथ में लेने की घटना को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी. इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को पूरी कानून सख्ती से निपटा जाएगा.” इमरान खान ने उन पुलिस अफसरों पर भी रिपोर्ट मांगी है जो उस व्यक्ति को बचाने का अपना फर्ज निभाने में नाकाम रहे.
पाकिस्तान: ईशनिंदा का मैसेज भेजने पर महिला को मौत की सजा
स्थानीय पुलिस अधिकारी मुनव्वर हुसैन ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति 40 वर्ष से अधिक आयु का था. शनिवार को जब पुलिस अधिकारी उसकी खोज में लाहौर से 275 किलोमीटर दूर खानेवाल पहुंचे तो वह बेहोश था और एक पेड़ से लटका हुआ था.
हुसैन ने कहा, "लोगों के हाथों में लाठियां, कुल्हाड़ियां और लोहे की छड़ें थीं. उन्होंने उसे मारकर उसके शव को पेड़ से लटका दिया था.” यह घटना तुलांबा कस्बे में हुई. वहां के एसएचओ मुनव्वर गुज्जर ने बताया कि वह व्यक्ति पिछले 15 साल से मानसिक रूप से अस्थिर था.
बार-बार हो रहीं ऐसी हत्याएं
दो महीने पहले ही पाकिस्तान में ऐसी एक घटना में श्रीलंका के एक नागरिक को भीड़ ने मार डाला था. श्रीलंका का यह व्यक्ति एक फैक्ट्री का मैनेजर था. पंजाब के ही सियालकोट शहर में भीड़ ने उस व्यक्ति को जलाकर मार डाला था.
पाकिस्तानः ईशनिंदा के आरोपी की कोर्ट में हत्या
पाकिस्तान में ईशनिंदा के खिलाफ बेहद कड़े कानून हैं और सजा में मौत का प्रावधान है. जो भी व्यक्ति इस्लाम की निंदा का दोषी पाया जाता है उसे मौत की सजा दी जा सकती है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस कानून को अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि लोग इस कानून का इस्तेमाल निजी दुश्मनी निकालने के लिए और एक दूसरे से बदला लेने के लिए करते हैं और अक्सर धर्म का इससे कोई लेनादेना नहीं होता.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)