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एक पाकिस्तानी ने बनाई पीरियड्स पर स्मार्टफोन ऐप

वीके/एमजे (एएफपी)१ सितम्बर २०१६

विकासशील देशों, खासकर दक्षिण एशिया में पीरियड्स को लेकर महिलाओं तक में जानकारी बेहद कम है. इसे दूर करने का एक उपाय यह गेम हो सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. S. Galli

एक पाकिस्तानी उद्यमी ने एक अनोखी ऐप बनाई है जिसका मकसद महिला पीरियड्स को लेकर विकासशील देशों में फैली मानसिकता को बदलना है. इस ऐप के जरिए पीरियड्स को बुराई की छवि से बाहर निकालने की कोशिश हो रही है.

इस ऐप का नाम है मोहिम. मैन्सट्रुअल हेल्थ मैनेजमेंट से बने इस शब्द का उर्दू में मतलब होता है कोशिश. यह ऐप एक गेम की शक्ल में है. इस गेम को खेलने वालों को जीतने पर एक जोड़ा पैंटीज मिलती है. इनसे वे सैनिटरी पैड्स हासिल कर सकते हैं. विकासशील देशों में पीरियड्स के दौरान खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं पत्तों या अखबार के टुकड़ों का इस्तेमाल करती हैं.

जानें, पीरियड्स से जुड़ीं 10 गलतफहमियां

ऐप में जैसे जैसे खिलाड़ी लेवल्स पार करते जाते हैं, वे 'भ्रम-तोड़क' दरवाजे तोड़ने वाली चाबियां पाते जाते हैं. हर लेवल पर खिलाड़ी को पीरियड्स के बारे में समाज में मौजूद भ्रमों को दूर करने वाली जानकारी मिलती है. खासकर दक्षिण एशिया में ऐसे कई भ्रम हैं. मसलन पीरियड्स के दौरान महिलाओं को खाना नहीं बनाना चाहिए, या इस दौरान वे अपवित्र होती हैं.

यह ऐप मरियम आदिल के दिमाग की उपज है. अमेरिका के वॉशिंगटन में वर्ल्ड बैंक में बतौर विश्लेषक काम कर रहीं मरियम पाकिस्तान में एक छोटा स्टार्टअप ग्रुप ग्रिड भी चलाती हैं. ग्रिड का मकसद ऐसे गेम्स तैयार करना है जो सामाजिक बदलाव का जरिया बन सकें. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में पीरियड्स को लेकर बहुत सारी गलफहमियां हैं. ये गलतफहमियां समस्याएं पैदा करती हैं. आदिल कहती हैं, "ऐसा होता है कि लड़कियां शर्म के मारे उस हफ्ते स्कूल ही नहीं जातीं. और फिर वे स्कूल ही छोड़ जाती हैं. महिलाओं को कहा जाता है कि इस दौरान उन्हें नहाना नहीं है. इस वजह से उन्हें गंभीर इन्फेक्शन हो जाता है."

आदिल के मुताबिक उनके गेम के जरिए चीजें बदल सकती हैं. वह कहती हैं, "वीडियो गेम्स इन सामाजिक भ्रांतियों को चुनौती दे सकती हैं और लोगों को खेल-खेल में सीखने के लिए उकसाती हैं."

पीरियड्स पर 5 जरूरी बातें

पाकिस्तान में पीरियड्स पर बात करना शर्म की बात मानी जाती है. ऐसे अध्ययन सामने आए हैं कि महिलाओं में साफ-सफाई को लेकर अज्ञानता बहुत ज्यादा है. यूएन-हैबिटेट नाम की संस्था के मुताबिक खासकर निचले तबके में बच्चियां महीने में दो से चार दिन स्कूल नहीं जातीं.

मोहिम का प्रोटोटाइप इस महीने की शुरुआत में आ गया है. अब फेम इंटरनेशनल नाम की अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था के साथ मिलकर इसे केन्या की राजधानी नैरोबी में भी लोगों तक पहुंचाने की कोशिश हो रही है. अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो इसे पाकिस्तान में एंड्रॉयड पर उतारा जाएगा.