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भारत में बेअसर होतीं कई जीवनरक्षक एंटीबायोटिक दवाएं

कैथरीन डेविसन
३१ अक्टूबर २०२२

एंटीबायोटिक दवाओं के गलत और अंधाधुंध इस्तेमाल ने भारत को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है. कोविड महामारी ने हालात और खराब किए हैं.

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Bacillus subtilis zur Herstellung von Antibiotika
तस्वीर: Kateryna_Kon/imago images

केरल के एर्नाकुलम जिले में तैनात डॉक्टर राजीव जयादेवन के अस्पताल में एक बड़ी समस्या बार बार सामने आ रही है. साथी डॉक्टरों के साथ मीटिंग में भी यही समस्या हावी रहती है. जिले के दूसरे अस्पतालों में भी बैक्टीरियल इंफेक्शन का इलाज बेकार साबित हो रहा है. डॉक्टरों के मुताबिक आम एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं दिखा रही हैं.

डॉ. जयादेवन ने जो डाटा देखा है वो साफ इशारा कर रहा है कि कोविड-19 महामारी के फैलने के साथ ही दवाओं को बेअसर करने वाले इंफेक्शन बढ़े हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में जयादेवन ने कहा, "आईसीयू में गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज पर इसका असर पड़ेगा. मुझे यही बात बहुत ज्यादा चिंतित कर रही है."

महामारी के बाद एंटीबायोटिक दवाओं के असर में कमी के मामले
महामारी के बाद एंटीबायोटिक दवाओं के असर में कमी के मामलेतस्वीर: Himanshu Sharma/abaca/picture alliance

एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध

महामारी के पहले भी वैश्विक स्तर पर एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाले पैथोजन बड़ी चिंता बन चुके थे. महामारी ने हालात और दुश्वार बना दिए हैं. इसी साल की शुरुआत में द लैन्सेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दवाओं को बेअसर करने वाले इंफेक्शनों के कारण 13 लाख लोगों की मौत हुई. भारत में बीते एक साल में कई एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाओं के प्रति बैक्टीरिया ने प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है.

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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने सितंबर 2022 में एक रिसर्च पब्लिश की. इसके मुताबिक कई बैक्टीरियल इंफेक्शनों के मामले में कार्बापेनेम्स दवाएं बेअसर हो चुकी है. कार्बापेनेम्स दवाओं की वह श्रेणी है जो आईसीयू में न्यूमोनिया जैसे आम इंफेक्शनों के इलाज में इस्तेमाल की जाती रही है.

रिपोर्ट की मुख्य लेखिका और आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक कामिनी वालिया कहती हैं, "सेप्सिस या कई गंभीर इंफेक्शनों के इलाज के मामले में हमारे पास दवाएं कम पड़ती जा रही हैं, इसकी वजह है उच्च प्रतिरोधक क्षमता वाले पैथोजंस."

एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर होना एक वैश्विक समस्या
एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर होना एक वैश्विक समस्यातस्वीर: Vladimir Smirnov/TASS/dpa/picture alliance

दवाओं को बेजा इस्तेमाल

आम तौर पर पेथोजन भी क्रमिक विकास करते हुए मजबूत होते जाते हैं. लेकिन दवाओं के अत्यधिक या गलत इस्तेमाल से ये प्रक्रिया तेज हो सकती है. अगर कोई मरीज गलत एंटीबायोटिक दवा खा ले, या उसे गलत तरीके से ले, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि कुछ बैक्टीरिया जिंदा बच जाएंगे. फिर यही बैक्टीरिया, मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले नए बैक्टीरिया पैदा करेंगे.

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भारत में मेडिकल केयर के अच्छे और विस्तृत ढांचे के अभाव ने इस मुश्किल को बहुत ज्यादा बढ़ाया है. वालिया कहती हैं, "अस्पतालों में इंफेक्शन कंट्रोल में कमजोरी और डायग्नोस्टिक सपोर्ट की कमी इसकी दो मुख्य वजहें हैं."

भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का सिर्फ 1.25 फीसदी पैसा खर्च करता है. यह दावा ऑक्सफैम की 2020 की रिपोर्ट में किया गया है.

एंटीमाइक्रोबियल मिसयूज और कई तरह की एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल ने भारत की मुश्किलें कई गुना बढ़ाई हैं. द लैन्सेट की रिपोर्ट के मुताबिक देश का प्राइवेट हेल्थकेयर सिस्टम जिन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करता है, उनमें से 47 फीसदी से ज्यादा दवाओं को राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल रेग्युलेट्री बॉडी ने पास नहीं किया है.

अस्पतालों में हाइजीन काफी मदद पहुंचा सकता है
अस्पतालों में हाइजीन काफी मदद पहुंचा सकता हैतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

नई गाइडलाइंस, पुराना नजरिया

जयादेवन विदेश में पढ़ाई करने के बाद जब भारत लौटे तो आम मेडिकल स्टोरों में बिना पर्चें के बिकती दवाओं को देख वे हैरान हुए. जयादेवन कहते हैं, "फॉर्मेसी से दवाएं खरीदना ऐसा था जैसे आप फल विक्रेता से संतरे, अंगूर या सेब खरीद रहे हों."

अनुमान है कि जून 2020 से सितंबर 2020 के बीच ही भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की 21.6 करोड़ एक्स्ट्रा डोज इस्तेमाल की गईं. जयादेवन कहते हैं, "महामारी ने देश में एंटीबायोटिक दवाओं के अति इस्तेमाल को बढ़ावा दिया."

महामारी के कारण ऐसे इंफेक्शनों को टालने वाले हाइजीन और वैक्सीनेशन अभियानों पर भी असर पड़ा.

2018 में आईसीएमआर ने एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्ड्शिप गाइडलाइंस जारी की. इसके तहत डॉक्टर तकनीक का इस्तेमाल कर एंटीमाइक्रोबियल यूजेज को ट्रैक कर सकते हैं. ज्यादातर अस्पताल इसे अपना भी रहे हैं.

आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक कामिनी वालिया के मुताबिक आम लोगों में जागरुकता की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है.