बारात में घोड़ी चढ़ना बनी दलित दूल्हों के लिए हक की लड़ाई
२३ जनवरी २०२५बीती 21 जनवरी को जब राजस्थान के अजमेर में रहने वाले विजय रैगर की बारात जब निकली तो उसमें बारातियों से ज्यादा बड़ी संख्या पुलिसवालों की थी. इन पुलिसवालों की जिम्मेदारी थी कि विजय की 'बिंदोली' रस्म के दौरान कोई गड़बड़ ना हो. उन पर हमला ना हो. दरअसल, राजस्थान के कई इलाकों में आज भी दलित समुदाय से आने वाले लोगों को पुलिस की सुरक्षा के बीच ही घोड़ी चढ़नी पड़ती है. विजय की बारात पहली नहीं है, जो इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच निकाली गई.
परिवार ने ना सिर्फ पुलिस बल्कि स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से भी मदद मांगी थी. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अजमेर के मानव विकास एवं अधिकार केंद्र संस्थान के सचिव रमेश चंद बंसल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार को चिट्ठी लिखी और स्थानीय पुलिस थाने जाकर मदद मांगी थी.
दुल्हन अरूणा के पिता ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि अगर वे इसी तरह डरकर जीते रहेंगे तो काम कैसे चलेगा. पढ़े-लिखे परिवार से होने के बावजूद दलित दूल्हों की बारात पर हमले की खबरें लगातार आती रहती हैं. इसलिए उनके परिवार ने शादी से पहले ही पुलिस और मानवाधिकार संगठनों के पास जाना बेहतर समझा.
दलित दूल्हों की बारात पर हमले नई बात नहीं
दलित दूल्हों की बारात पर हमले की घटनाएं सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं हैं. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी ऐसी घटनाएं होती रहती हैं. पिछले साल दिसंबर के महीने में बुलंदशहर में एक दलित पुलिस कॉन्सटेबल की बारात पर हमला हुआ था. हमलावरों ने दूल्हे रॉबिन सिंह को जबरदस्ती घोड़ी से उतार दिया था. बारात पर पथराव तो हुआ ही साथ ही डीजे भी बंद करवा दिया गया था. हमलावरों को इस बात से एतराज था कि एक दलित की बारात उनके इलाके से होकर कैसे गुजर सकती है.
दिसंबर 2024 में ही मध्य प्रदेश के दमोह में एक दलित दूल्हे की बारात पर इसलिए हमला हुआ क्योंकि उसकी बारात घोड़ी वाली बग्घी पर निकली थी. हमलावर जो कथित तौर सवर्ण जातियों से आते थे, उन्होंने पहले ही चेतावनी दी थी कि बारात बग्घी पर नहीं निकलनी चाहिए.
राजस्थान में, दलित दूल्हों की बारात पर अक्सर सवर्ण जातियों से आने वाले लोगों द्वारा हमले की खबरें आती रहती हैं. कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां बारात पर पथराव किया जाता है. लेकिन कई दलित युवा आज इस प्रथा को चुनौती दे रहे हैं. हमले की आशंका के बावजूद वे घोड़ी चढ़ रहे हैं.
विजय के ससुरालवालों को भी इस बात का अंदेशा कि ऐसी घटना उनके साथ भी हो सकती है. इसलिए उन्होंने प्रशासन से सुरक्षा की मांग की थी. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, प्रशासन ने करीब 200 पुलिसवालों को तैनात किया.
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कोर्ट के आदेश बाद दलित दूल्हों को मिलने लगी सुरक्षा
दलित अधिकारों पर काम करने वाली जयपुर की संस्था सेंटर फॉर दलित राइट्स ने 2015 में जयपुर हाईकोर्ट में दलितों की बारात और शव यात्रा पर होने वाले हमलों के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. तब हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि यह जिला अधिकारी, जिला पुलिस अधीक्षक और सर्किल अफसर की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी घटनाएं ना होने दें. कोर्ट ने जिन इलाकों में ऐसी घटनाएं होने की संभावना अधिक है वहां के लिए स्पेशल टीम गठित करने का भी आदेश दिया था.
हालांकि, कोर्ट के इस फैसले के बाद भी हालात नहीं सुधरे हैं. संस्था के निदेशक सतीश कुमार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि दलित दूल्हों की बारात रोकने और उन पर हमले की प्रथा राजस्थान से शुरू होकर आस-पास के राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश यहां तक कि पंजाब तक भी फैल गई है. उनकी याचिका के बाद प्रशासन ने कई आदेश निकाले जिनका पालन भी हो रहा है. जैसे दलित दूल्हों को सुरक्षा देना.
आदेश के बावजूद यह हमले क्यों जारी हैं इस पर सतीश कहते हैं, पहले के जमाने में दलित दूल्हे घोड़ी नहीं चढ़ते थे. उन्हें पता था अगर वे ऐसा करेंगे तो स्थिति क्या होगी. जो युवा हैं वे अपने अधिकारों और पहचान को लेकर दृढ़ हुए हैं. उनके लिए घोड़ी चढ़ना उनके सम्मान से भी जुड़ा है. अपने अधिकारों और पहचान को लेकर उनकी यह दृढ़ता इन हमलों के पीछे की एक वजह है."
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"घोड़ी चढ़ना स्वाभिमान की लड़ाई”
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में 2015 में हुए एक संशोधन के मुताबिक एससी, एसटी समुदाय से आने वाले लोगों को मोटरसाइकिल चलाने, सार्वजनिक जगहों पर चप्पल और नए कपड़े पहनने से रोकना, बारात में घोड़ी या बग्घी चढ़ने से रोकना एक दंडनीय अपराध है. लेकिन जमीनी हकीकत आज भी नहीं बदली है.
इन मामलों की तह तक जाएं तो ज्यादातर मामलों में हमले की बड़ी वजह बिंदोली निकालना नहीं, बल्कि घोड़ी चढ़ना या बग्घी चढ़ना या फिर बारात में डीजे पर नाचना है. दलितों की उन बारातों पर हमले अधिक हुए जहां दूल्हे घोड़ी पर थे या उनकी बारात में डीजे था.
सतीश कहते हैं, "दलित युवा अपने स्वाभिमान के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि दिक्कत दलितों की बारात से नहीं है. अगर वह बिलकुल साधारण बारात निकालें तो किसी को दिक्कत नहीं होती. दिक्कत तब होती है तब बारात घोड़ी पर निकले. यहां सवाल उठता है कि एक दलित घोड़ी कैसे चढ़ सकता है, उसके पास यह अधिकार है ही नहीं.”
दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों की सूची में राजस्थान दूसरे नंबर पर है. एसटी एससी एक्ट के तहत केंद्र सरकार की 2023 में आई रिपोर्ट बताती है कि 2022 में दलितों के खिलाफ राजस्थान में 8,651 केस दर्ज किए गए थे.
सतीश आज से दस साल पहले राजस्थान में चलाए गए खाट आंदोलन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि समस्या की मुख्य जड़ तो जातिवादी सोच ही है कि एक दलित को घोड़ी चढ़ने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है. एक दलित सवर्णों से आगे की पंक्ति में कैसे बैठ सकता है.
राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में अपने घर के बाहर भी खाट पर बैठने की इजाजत नहीं थी. अगर कोई सवर्ण सामने से गुजरे तो उन्हें उठना पड़ता था. दलित अधिकार संस्थाओं की मुहिम के बाद ही यह जातिवादी प्रथा अब धीरे धीरे खत्म हुई है. लोग अपने घरों के बाहर खाट पर बैठते हैं. सवर्णों के गुजरने पर एकदम से उठ खड़े नहीं होते. युवा दलितों का बारात में घोड़ी चढ़ना भी इसी दिशा में जाता दिख रही एक मुहिम ही है.