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समाजभारत

मणिपुर हिंसा के दौरान बलात्कार बना हथियार

मुरली कृष्णन
७ अगस्त २०२३

भारत के मणिपुर राज्य में जनजातीय अधिकारों को लेकर मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़पें हो रही हैं. इन झड़पों में सबसे ज्यादा महिलाएं पिस रही हैं क्योंकि महिलाओं के खिलाफ लगातार भयावह अपराधों की खबरें आ रही हैं

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कुकी समुदाय ने मणिपुर में एक स्मृति दीवार बनाई है
कुकी और मेतेई समुदाय के बीच हिंसा में 150 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैतस्वीर: Murali Krishnan/DW

45 वर्षीया किम कोहाट चार बच्चों की मां और कुकी-जो जातीय समुदाय की सदस्य हैं. वो अभी भी यह बात स्वीकार नहीं कर पा रही हैं कि उनकी 22 वर्षीया बेटी ओलिविया मर चुकी है. ओलिविया और उसकी दोस्त फ्लोरेंस हैंगशिंग की 5 मई को दंगाई भीड़ ने बलात्कार के बाद बहुत ही बेरहमी से हत्या कर दी थी. ये दोनों महिलाएं मणिपुर की राजधानी इम्फाल में एक कार धुलाई करने वाले वर्कशॉप में काम करती थीं. जिस मकान के कमरों में वो किराये पर रह रही थीं, उसके चारों ओर मैतेई समूह के लोग थे. भीड़ ने महिलाओं को एक अलग कमरे में खींच लिया और उनके साथ मारपीट की.

डीडब्ल्यू से बातचीत में कोहाट कहती हैं, "अभी एक दिन पहले ही, मैंने ओलिविया से बात की थी. वह कई मायनों में घर की अकेली सदस्य थी जिससे परिवार का पेट पलता था. जब मैंने अगले दिन फोन किया, तो एक अजनबी ने फोन उठाया और मुझसे पूछा कि क्या मैं अपनी बेटी को मरा हुआ देखना चाहती हूं.” कोहाट इंफाल से 40 किलोमीटर दूर कांगपोकपी में एक साधारण घर में रहती हैं. कोहाट रोते हुए कहती हैं, "मेरी बेटी का शव अभी भी मुर्दाघर में है. मैंने उसे अभी तक नहीं देखा है. मैं क्या करूं? और पुलिस ने मुझे अब तक कुछ भी नहीं बताया है.”

फ्लोरेंस के पिता, अमोस पाओटिनथांग एक किसान हैं, जो फिलहाल शांत हैं लेकिन अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने के बारे में सोचकर ही वो सदमे में आ जाते हैं. उनकी बेटी का शव भी जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान के मुर्दाघर में लावारिस पड़ा हुआ है. फ्लोरेंस की तीन अन्य बहनें भी थीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में पाओतिनथांग कहते हैं, "मैं अधिकारियों से कोई मुआवजा नहीं चाहता. अब मैं जिस एकमात्र न्याय की उम्मीद कर रहा हूं, वो है- मैतेई लोगों से अलग होना और यही एकमात्र रास्ता है. हम एक साथ नहीं रह सकते.”

मणिपुर में महिलाओं का प्रदर्शन
जातीय हिंसा के बीच महिलाएं प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरींतस्वीर: Murali Krishnan/DW

अभूतपूर्व हिंसा

ज्यादातर हिन्दू मैतेई और बड़ी संख्या में ईसाई कुकी समुदाय के बीच संघर्ष की शुरुआत मई में हुई. इस हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 60,000 से ज्यादा लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है. भारतकी सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस हिंसा को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि, पिछले महीने 4 मई की घटना का एक वीडियो सामने आने के बाद आक्रोश अचानक बढ़ गया, जिसमें मणिपुर के थौबल जिले में प्रमुख मैतेई जनजाति के पुरुषों के एक समूह के सामने दो कुकी महिलाओं को नग्न करके उनके साथ बलात्कार किया गया और फिर उन्हें सार्वजनिक रूप से उसी अवस्था में परेड करने के लिए मजबूर किया गया.

जातीय हिंसा की सबसे बड़ी शिकार हैं मणिपुरी महिलाएं

कथित बलात्कार और हत्या के कई अन्य मामले भी सार्वजनिक हुए हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहे हैं. जनता के गुस्से को देखते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आगे बढ़कर कुछ पहल की और राज्य के अधिकारियों को उनकी निष्क्रियता के लिए फटकार लगाई. यौन हिंसा के पीड़ितों की ओर से दायर मणिपुर अशांति से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद, अदालत ने कहा कि स्पष्ट अपराध होने के बाद लगभग तीन महीने तक पुलिस ने मामले तक दर्ज नहीं किए गए थे. केवल कुछ संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हम सांप्रदायिक और जातीय हिंसा में महिलाओं के खिलाफ अभूतपूर्व पैमाने पर हो रही हिंसा से निपट रहे हैं.” मंगलवार को शीर्ष अदालत ने जातीय हिंसा की जांच को ‘सुस्त' बताते हुए इसकी आलोचना की और मणिपुर में अधिकारियों की आलोचना करते हुए कहा कि ‘राज्य की कानून-व्यवस्था और मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है.'

कुकी समुदाय के लोगो का कैंप
इस हिंसा से प्रभावित लोगों के लिए कैंप लगाने पड़ेतस्वीर: Murali Krishnan/DW

मणिपुर में सामाजिक दरार

दोनों समूहों के बीच विवाद का मूल कारण आदिवासी अधिकारों पर विवाद को लेकर है. कुकी और नगा जो कि दोनों मुख्य तौर पर ईसाई समुदाय हैं, ये राज्य की कुल आबादी का करीब 40 फीसदी हैं. राज्य की कुल आबादी 35 लाख है. इन्हें मौजूदा समय में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है और इस वजह से मणिपुर के करीब 75 फीसदी हिस्से को कवर करने वाली पहाड़ियों और जंगलों में जमीन का मालिकाना हक मिला हुआ है. कुकी और नगा लोगों ने मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने की प्रस्तावित योजना पर आपत्ति जताई है. लेकिन दोनों समुदायों के बीच रिश्तों में ये दरार हाल के दिनों में बहुत ज्यादा बढ़ी हैं और स्थिति यह हो गई है कि मणिपुर अब पूरी तरह से दो जातीय क्षेत्रों में विभाजित हो गया है.

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इम्फाल से करीब 65 किलोमीटर दूर कुकी बहुल कस्बा है- चुराचांदपुर. वहां रहने वाली एक गृहिणी एस्तेर कोंगसाई ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह अपने घर से भागने के बावजूद जिंदा रहकर खुश हैं. कोंगसाई कहती हैं, "जब भीड़ हमारे इलाके में घुसी तो सौभाग्य से मेरा बेटा और कुछ दोस्त समय पर सामने आ गए. कुछ लोगों ने मुझ पर हमला करने की कोशिश की लेकिन हम किसी तरह भाग निकले. लेकिन हमने अपना घर और सारी संपत्ति खो दी.” कोंगसाई अब 150 अन्य विस्थापित लोगों के साथ एक शिविर में रहते हैं. दोनों समुदायों यानी कुकी और मैतेई के सदस्य अब अपने-अपने क्षेत्र में ही रहते हैं. राज्य में गोलीबारी और छिटपुट हिंसा जारी है. सरकार अब तक हालात पर काबू पाने में नाकाम रही है.

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समझौते की गुंजाइश नहीं

मणिपुर के घाटी इलाके में, जहां मुख्य रूप से मैतेई आबादी है, कुकी लोगों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार और पुलिस मैतेई भीड़ को बढ़ावा दे रही है. वहीं दूसरी ओर, पहाड़ी इलाके में रहने वाले मैतेई लोग केंद्र सरकार और अर्धसैनिक बल असम राइफल्स पर कुकी उग्रवादियों के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप लगाते हैं, जो कथित तौर पर पोस्ता की खेती में लगे हुए हैं. मणिपुर के सबसे बड़े समुदाय के रूप में, मैतेई लोगों को भारी राजनीतिक और आर्थिक लाभ मिलता है और वे राज्य सरकार और इसके बदले में पुलिस बल पर हावी रहते हैं. कई लोगो का कहना है कि इससे उन्हें संघर्ष की स्थिति में लाभ मिलता है.

चूड़चांदपुर की एक महिला कार्यकर्ता मैरी बेथ ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम जो देख रहे हैं वह बहुत भयावह है. अल्पसंख्यक समुदायों को नुकसान पहुंचाने के लिए बलात्कार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसका अक्सर अलग-अलग जातीय या धार्मिक प्रेरणाओं के साथ एक बहुत लंबा इतिहास रहा है.” उन्होंने कहा, "जातीय संघर्ष के हिस्से के रूप में यौन हिंसा का व्यापक उपयोग हुआ है.” 

मणिपुर के एक कैंप में महिलाएं
हिंसा के डर से लोग अपने घर छोड़कर भागने पर मजबूर हुएतस्वीर: Murali Krishnan/DW

पुलिस की कार्रवाई

मई में संघर्ष शुरू होने के बाद से पुलिस ने आधिकारिक तौर पर मैतेई महिलाओं पर कोई मामला दर्ज नहीं किया है. हालांकि, कुछ गैर सरकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि सामाजिक दरारों को गहरा करने और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए गलत सूचनाएं रणनीतिक रूप से शुरू की गई हैं. ह्यूमन राइट्स अलर्ट के निदेशक बब्लू लोइटोंगबम ने डीडब्ल्यू को बताया, "ऐसी बेतहाशा अफवाहें थीं कि मैतेई महिलाओं पर हमला किया गया और उनके साथ बलात्कार किया गया और ऐसी सूचनाएं लोगों की भावनाएं और भीड़ के उन्माद को भड़काने के लिए पर्याप्त थीं.” सुप्रीम कोर्ट में दी गई एक रिपोर्ट में मणिपुर सरकार ने कहा था कि अब तक करीब 6500 रिपोर्ट दर्ज की गई हैं और 252 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 मामले महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा से संबंधित र्ज किए गए हैं. यौन हिंसा से जुड़े लगभग सभी मामले कुकी-जो समुदाय से संबंधित हैं.

बदले में, मैतेई लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी  का कहना है कि महिलाओं पर अज्ञात हमले हुए हैं और कई पीड़ित तो सामने ही नहीं आए हैं. इसी संस्था से जुड़ी खुराइजम अथौबा ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस संघर्ष में हत्याओं और विस्थापित लोगों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. समुदाय की कई महिलाएं इस तरह आगे नहीं आती हैं.” मणिपुर के आदिवासी संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम की प्रवक्ता गिन्जा वुएलजोंग का कहना है कि यहां हर कोई चिंतित और असुरक्षित महसूस कर रहा है. वह कहती हैं, "हम बस यही चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए.”