मिल गई शांत, शर्मीली, शिकारी बिल्लियां
दक्षिण अफ्रीकी महाद्वीप के रेगिस्तान में बिल्लियों की एक खास प्रजाति रहती है. बेहद दुश्वार हालात में रहने वाली इन बिल्लियों की पहली बार जबरदस्त तस्वीरें मिली हैं.
अनदेखी, अंजानी
आकार में घरेलू बिल्ली की भी आधी और काले पैरों वाली इन बिल्लियों के बारे में बहुत कम जानकारी है. इन शर्मीली बिल्लियों को देखना करीब करीब नामुमकिन सा है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दक्षिण अफ्रीका के रेतीले इलाकों में ऐसी 10,000 बिल्लियां हैं.
जबरदस्त शिकारी
ये बिल्लियां सिर्फ रात में शिकार करती हैं. ये इतनी कुशल शिकारी होती हैं कि अगर एक बार यह शिकार करने निकल पड़ें तो 50 मिनट के भीतर खाने का इंतजाम कर लेती हैं. पंछियों को पकड़ने के लिए यह 1.4 मीटर ऊंची और दो मीटर लंबी छलांग मार सकती हैं.
निडर
काले पैरों वाली ये बिल्लियां भले ही शर्मीली हों लेकिन डरपोक कतई नहीं होतीं. ये बिल्लियां सांपों का शिकार भी करती हैं. विषहीन सांपों को वे खाती भी हैं.
डॉ. स्लिवा गदगद
काले पैरों वाली कुछ बिल्लियां इंसानी बस्ती के करीब भी रहती हैं, लेकिन इसके बावजूद उनकी झलक नहीं मिलती. ब्लैक-फुटेड कैट वर्किंग ग्रुप के अलेक्जेंडर स्लिवा इन बिल्लियों पर 1992 से रिसर्च कर रहे हैं. पकड़ में आने वाली बिल्लियों को वे रेडियो कॉलर पहनाते हैं.
बिल्लियों की गुफा
अब तक 12 बिल्लियों को रेडियो कॉलर पहनाया जा चुका है. ये बिल्लियां जमीन के भीतर गुफानुमा सुराखों में रहती हैं. रेगिस्तान की भीषण गर्मी में ये गुफाएं परफेक्ट एयर कंडीशनर का काम करती हैं. आम तौर पर दीमक की पुरानी बाम्बी को भी ये अपना घर बना लेती हैं.
दूसरे शिकारियों से सुरक्षा
नन्ही बिल्लियां गुफा में खासी सुरक्षित होती हैं. दो महीने के गर्भधारण के बाद मादा बिल्ली एक या दो बच्चों को जन्म देती है. मां नन्हे बच्चों के साथ लगातार जगह बदलती रहती है ताकि लोमड़ी जैसे शिकारियों से उसके बच्चों की रक्षा हो सके.
बिल्लियों तक पहुंच
जीवविज्ञानी इन बिल्लियों तक पहुंचने के लिए कभी कभार कुदाल और फावड़े का इस्तेमाल भी करते हैं. वे सावधानी से गुफा या बिलनुमा घरौंदों को खोदते हैं. दिसंबर की बेतहाशा गर्मी में वहां काम करना वाकई चुनौती है.
मिल गई
आखिरकार जाल में एक बिल्ली आ ही गई. अब वैज्ञानिकों को तेजी से काम करना होगा. वे बिल्ली की सेहत की जांच करेंगे. बिल्ली को बेहोश कर ऐसा किया जाता है, ताकि प्यारी बिल्ली को तनाव न हो.
टेस्ट टेबल पर शिकारी
2005 से अंतरराष्ट्रीय वर्किंग ग्रुप इन बिल्लियों के संरक्षण पर काम कर रहा है. अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी में रिसर्चर साल में एक बार तीन हफ्ते के लिए मिलते हैं. इस दौरान वे बिल्लियों के खून, मूत्र, मल, वीर्य, ऊतकों और लार की जांच करते हैं. पकड़ी गई बिल्लियों को रेडियो कॉलर भी पहनाया जाता है.
ये रहा सबूत
दूर से देखने में भले ही इनके काले पैर न दिखाई पड़े, लेकिन पास से देखने पर इन पैरों का साफ पता चलता है. घरेलू बिल्लियों के उलट रेगिस्तान की ये बिल्लियां पेड़ों पर नहीं चढ़ पातीं, क्योंकि वहां ज्यादा पेड़ हैं ही नहीं. लेकिन दौड़ने और कूदने के मामले में वो बहुत आगे हैं. वे एक रात में 30 किलोमीटर का सफर कर सकती हैं.
एक जानलेवा बीमारी
जीवविज्ञानी इन बिल्लियों में मेटोबॉलिज्म से जुड़ी एक घातक बीमारी एमिलॉडोसिस की जांच कर कर रहे हैं. बिल्लियों के लिए यह बीमारी जानलेवा होती है. पहली बार इस बीमारी का पता चिड़ियाघर की बिल्लियों में चला. बाद में यह कराकस की काले पैरों वाली जंगली बिल्लियों में भी मिली.
उठ जाओ किटी
चेक अप के बाद बिल्ली को बेहोश से बाहर निकालने के लिए एंटी एनेस्थेटिक दिया जाता है. फिर बिल्ली को उसकी गुफा में छोड़ दिया जाता है. गुफा में उसे होश आता है. रेडियो कॉलर के जरिये वैज्ञानिक इन बिल्लियों के जीवन के बारे में जानकारी जुटाना चाहते हैं.
रेगिस्तान में सीसीटीवी
गुफा के सामने दो कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं. नींद से जागने के बाद बिल्लियां कैसा व्यवहार करती हैं, इसका पता इन कैमरों से चलेगा. सेंसर से लेस से ये कैमर लेंस के सामने कोई हरकत होते ही तस्वीर और वीडियो रिकॉर्ड करने लगेंगे.
और ये रहा नतीजा
गुफा से बाहर निकलकर जब बिल्ली ने कैमरे देखे तो उसे शक हुआ. फिर बहुत संभलकर वह कैमरों तक गई और फिर तो उनसे खेलने लगी. वैज्ञानिक भी खुश हो गए. बिल्ली का मेडिकल टेस्ट सफल रहा, वो पूरी तरह चंगी है.
खतरे की सूची में
जीवविज्ञानी अलेक्जेंडर स्लिवा के मुताबिक यह पहला मौका है जब इन बिल्लियों के बारे में इतने विस्तार से जानकारी जुटाई जा रही है. उनकी रिसर्च की मदद से क्रमिक विकास को समझने में मदद मिलेगी और इन बिल्लियों का संरक्षण भी होगा. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक काले पैरों वाली इन बिल्लियों के लुप्त होने का खतरा है.