सऊदी में औरतों पर डंडा चलाने वाली पुलिस अब हताश क्यों है?
१४ जनवरी २०२२सऊदी अरब की धार्मिक पुलिस, मुतवा. एक वक्त था, जब रूढ़िवादी सऊदी अरब में 'नैतिकता के पहरेदार' इस संगठन का खौफ हुआ करता था. इसके सिपाही नमाज पढ़ने के लिए दुकानें बंद कराया करते थे. सार्वजनिक जगहों पर आदमी-औरत के साथ दिखने पर उन्हें खदेड़ा करते थे. लेकिन, डंडे के जोर पर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले इस संगठन का असर पिछले कुछ बरसों में कम हुआ है.
हालिया वर्षों में सऊदी अरब में सामाजिक पाबंदियों में कुछ ढील दी गई हैं. खासकर महिलाओं को कुछ अधिकार मिले हैं, जो मुतवा पुलिस को बिल्कुल रास नहीं आ रहे हैं. अपना बदला हुआ नाम फैसल बताने वाले समाचार एजेंसी एएफपी से कहते हैं, "मुझे यह अधिकार नहीं है कि मैं किसी चीज पर पाबंदी लगाऊं, इसलिए मैं यह संगठन छोड़ रहा हूं."
मुतवा को क्या जिम्मेदारी दी गई थी?
सऊदी अरब में मुसलमानों के दो सबसे पवित्र स्थल हैं. यह लंबे वक्त तक इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी धड़े से जुड़ा रहा है. यहां की मुतवा पुलिस को आधिकारिक रूप से 'अच्छाई को बढ़ावा देने और बुराई को रोकने वाला कमीशन' नाम दिया गया था. इसका मकसद इस्लाम के नैतिक कानून को लागू कराना रहा है.
इसके सिपाही नशीले पदार्थों समेत तस्करी और शराब पीने जैसी अवैध चीजों की निगरानी तो करते ही थे, साथ ही इन्हें सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करने का भी अधिकार था. जैसे महिला और पुरुष अलग-अलग रहें, महिलाएं इस्लाम के मुताबिक ही कपड़े पहनें और सार्वजनिक जगहों पर प्रेम का प्रदर्शन न किया जाए.
फिर आया बदलाव का दौर
लेकिन, साल 2016 में जब तेल पर निर्भर इस देश ने अपनी कठोर और चरम सेक्सिस्ट यानी लैंगिक आधार पर भेदभाव करने वाली छवि को बदलने की कोशिश शुरू की, तो मुतवा पुलिस अलग-थलग पड़ गई. तब से महिलाओं के लिए तय कुछ पाबंदियों में ढील दी गई है. जैसे अब वे गाड़ी चला सकती हैं, खेल और संगीत के आयोजनों में पुरुषों के साथ जा सकती हैं और पासपोर्ट हासिल करने के लिए उन्हें किसी पुरुष की इजाजत की जरूरत नहीं है.
मुतवा की पारंपरिक काली पोशाक पहने 37 साल के फैसल कहते हैं कि मुतवा से इसके सभी विशेषाधिकार छीन लिए गए हैं और अब उनकी कोई स्पष्ट भूमिका नहीं रह गई है. वह तंज में कहते हैं, "पहले सऊदी अरब में मुतवा पुलिस सबसे अहम कमीशन था. आज कल आम मनोरंजन प्रशासन सबसे अहम हो गया है."
दरअसल फैसल का इशारा उस सरकारी एजेंसी की ओर है, जिसे मनोरंजन से जुड़े कार्यक्रम आयोजित कराने की जिम्मेदारी दी गई है. इसी एजेंसी ने पिछले साल सऊदी फॉर्मूला वन ग्रांप्री रेस में पॉप स्टार जस्टिन बीबर का कंसर्ट और चार दिनों का एक इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक फेस्टिवल आयोजित कराया था.
इन बदलावों का असर क्या पड़ा?
1940 में बनाए गए मुतवा के सिपाहियों ने दशकों तक उन महिलाओं पर डंडे बरसाए हैं, जो अबाया सही तरीके से नहीं पहनती थीं. अबाया एक ढीली, काली ड्रेस है, जो महिलाएं कपड़ों के ऊपर पहनती हैं. अब अबाया पर नियम ढीले कर दिए गए हैं. आदमियों और औरतों के मिलने-जुलने पर प्रतिबंध भी नरम किए गए हैं. अब दिन में पांच बार की नमाज के वक्त लोगों को दुकानें भी बंद नहीं रखनी पड़ती हैं.
मुतवा के ही एक और एजेंट भी अपना नाम बदलकर टर्की बताते हैं और कहते हैं कि जिस संगठन में उन्होंने एक दशक तक पूरी लगन से काम किया, अब वह बचा ही नहीं है. उनके मुताबिक जो लोग अब भी संगठन के लिए काम कर रहे हैं, वह महज तनख्वाह पाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. वह कहते हैं, "अब हमें दखल देने और लोगों का अनुचित बर्ताव बदलने का कोई अधिकार नहीं है."
साल 2017 में अघोषित तौर पर सऊदी अरब की कमान संभालने वाले क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान खुद को 'उदारवादी इस्लाम' के अगुवा के तौर पर पेश करना चाहते हैं. हालांकि, 2018 में इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि को बड़ा धक्का लगा था. लेखक सऊद अल-कतीब सऊदी में मुतवा की ताकत कम होने को 'बेहद अहम और क्रांतिकारी बदलाव' मानते हैं.
यूं बदल गईं भूमिकाएं
राजधानी रियाद के बीच में खड़े होकर सिगरेट का धुआं उड़ाने वाली लामा जैसी कई आम सऊदी महिलाएं कहती हैं कि उन्हें मुतवा के एजेंटों के लिए बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता है. लामा के लहराते हुए अबाया के भीतर से उनके कपड़े झांकते हैं. लामा कहती हैं, "कुछ साल पहले तो हम सड़क पर खड़े होकर सिगरेट पीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे." वह हंसते हुए कहती हैं, "तब तो ऐसा करने पर वो हमें डंडों से मारते."
मुतवा के एजेंट अब सड़कों पर दौरा करने के बजाय दफ्तरों मे बैठकर काम करते हैं. अब वे नैतिकता से जुड़े जागरूकता अभियान बनाते हैं और स्वास्थ्य को लेकर लोगों को जागरूक करने वाली बातों पर ध्यान देते हैं. सऊदी के एक अधिकारी नाम छुपाने की शर्त पर कहते हैं कि मुतवा अब अलग-थलग पड़ चुका है और इसके सिपाहियों की तादाद में खासी कमी आई है.
सऊदी अरब की आधी से ज्यादा आबादी 35 साल से कम उम्र की है. मुतवा के नेता अब्दल रहमान अल-सनद इस संगठन को नए सिरे से खड़ा करना चाहते हैं. एक स्थानीय टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह संगठन में महिलाओं को भर्ती करना चाहते हैं. सनद स्वीकार करते हैं कि उनके एजेंटों ने अतीत में 'अत्याचार' किए हैं और 'बिना किसी अनुभव या अहर्ता के' अपने कामों को अंजाम दिया है.
भविष्य के प्रति क्या है उम्मीद?
मुतवा के एक पूर्व वरिष्ठ नेता अहमद बिन कासम अल-गमदी अपने तरक्की-पसंद ख्यालों की वजह से 2015 में संगठन से बेदखल कर दिए गए थे. वह कहते हैं, "मुतवा की सबसे बड़ी गलती यह थी कि इसके कुछ सिपाही अपने स्तर पर गलत काम कर रहे थे. इससे संगठन की छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा."
वहीं फ्रांस की साइसेंस पो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और खाड़ी देशों के विशेषज्ञ स्टीफन लेक्रोइक्स का मानना है कि सऊदी प्रशासन जल्द ही इस संगठन से अपना पिंड नहीं छुड़ा पाएगा. वह कहते हैं, "मुतवा सऊदी अरब की उस पहचान से चिपका हुआ है, जिसे कई रूढ़िवादी सऊदी नागरिक आज भी मानते हैं और इसका अनुसरण करते हैं."
तो सऊदी अरब में एक तरफ जहां कुछ चीजें बदल रही हैं, वहीं कुछ अब भी पहले जैसी हैं. इस धार्मिक पुलिस की ताकत भले कमजोर हुई हो, लेकिन हुकूमत के प्रति विरोध जताने, बुद्धिजीवियों और महिला अधिकारों की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की जाती रही है.
वीएस/ओएसजे (एएफपी)