सोशल मीडिया के इस्तेमाल में कटौती से क्या-क्या फायदे
२१ दिसम्बर २०२३आज कल सोशल मीडिया कई लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है. इसका मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. जब यूजर्स ऑनलाइन नहीं होते हैं तो उन्हें अपने नेटवर्क में होने वाली किसी महत्वपूर्ण घटना के छूट जाने का डर रहता है, जिसे फियर ऑफ मिसिंग आउट (फोमो) कहा जाता है.
जर्मनी के बोखुम की रुअर यूनिवर्सिटी में मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और उपचार केंद्र की एसोसिएट प्रोफेसर यूलिया ब्रेलोव्स्काया ने कहा, ''हमें संदेह है कि लोग सकारात्मक भावनाएं उत्पन्न करने के लिए सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी कमी वे अपने रोजमर्रा के कामकाजी जीवन में महसूस कर रहे हैं, खासकर जब वे अधिक काम का बोझ महसूस कर रहे हों."
यूलिया ने आगे कहा, "इसके अलावा, अगर लोग अपनी मौजूदा नौकरी से नाखुश हैं तो लिंक्डइन जैसे कुछ प्लेटफॉर्म नई नौकरियों की तलाश करने का मौका भी देते हैं."
असल दुनिया से अलग ले जाता है सोशल मीडिया
कम समय में वास्तविकता से सोशल नेटवर्क की दुनिया में भागने से असल में आपका मूड बेहतर हो सकता है. लेकिन लंबे समय में यह अडिक्टिव बिहेवियर को जन्म दे सकता है जिसका उलट असर पड़ता है.
बिहेवियर एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में रिसर्च टीम ने इन संबंधों का पता लगाने के लिए एक प्रयोग शुरू किया. अध्ययन में कुल 166 लोगों ने हिस्सा लिया जिनमें से सभी ने कई क्षेत्रों में अंशकालिक या पूर्णकालिक काम किया और गैर-कार्य संबंधित सोशल मीडिया के उपयोग पर हर दिन कम से कम 35 मिनट बिताए.
इस शोध के लिए टीम ने प्रतिभागियों के दो समूह बनाए थे. एक समूह ने अपनी सोशल मीडिया की आदतें नहीं बदलीं, जबकि दूसरे समूह ने सोशल नेटवर्क पर बिताए जाने वाले समय को सात दिनों के लिए हर रोज 30 मिनट कम कर दिया.
यूलिया ने बताया, "इतने कम समय के बाद भी हमने पाया कि जिस समूह ने सोशल मीडिया पर प्रतिदिन 30 मिनट कम बिताए, उनकी नौकरी की संतुष्टि और मानसिक स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ."
इस समूह के प्रतिभागियों को कम काम का बोझ महसूस हुआ और वे नियंत्रण समूह की तुलना में काम के प्रति अधिक प्रतिबद्ध थे. फोमो की उनकी समझ भी इसी तरह कम हो गई. इस प्रयोग के खत्म होने के बाद प्रभाव कम से कम एक सप्ताह तक रहा और इस दौरान कुछ मामलों में बढ़ भी गया.
सोशल मीडिया के इस्तेमाल में कटौती से क्या फर्क पड़ा
जिन प्रतिभागियों ने अपनी मर्जी से अपने रोजाना के सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम कर दिया था, उन्होंने एक सप्ताह के बाद भी ऐसा करना जारी रखा.
शोधकर्ताओं का मानना है कि अपने सोशल मीडिया के इस्तेमाल को कम करने से, प्रतिभागियों को अपना काम करने के लिए अधिक समय मिला, जिसका मतलब था कि उन्हें कम काम करना पड़ा और उन्हें बंटे हुए ध्यान से भी कम पीड़ित होना पड़ा.
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमारा दिमाग किसी काम से लगातार ध्यान भटकाने से अच्छी तरह निपट नहीं सकता है. उन्होंने आगे कहा कि जो लोग अपने सोशल मीडिया फीड पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बार-बार अपना काम करना बंद कर देते हैं, उनके लिए अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना अधिक कठिन होता है और उन्हें खराब परिणाम मिलते हैं.
इसके अलावा, सोशल मीडिया पर बिताया गया समय लोगों को वास्तविक जीवन में अपने सहकर्मियों के साथ बातचीत करने से रोक सकता है, जिससे अलगाव हो सकता है. सोशल मीडिया पर बिताया गया समय कम करने से इस प्रभाव को कम किया जा सकता है.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी