जर्मनी से रूसी गैस का 50 साल पुराना पेचीदा रिश्ता
१२ मार्च २०२२रूसी गैस का आयात रोकने में जर्मनी का विरोध दिखाता है कि इस ऊर्जा स्रोत पर देश की निर्भरता कितनी गहरी और दीर्घकालिक रही है. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्त्स ने सोमवार को इस बारे में देश की स्थिति स्पष्ट कर दी.
एक बयान में उन्होंने कहा कि, "यूरोप, रूस से आने वाली ऊर्जा सप्लाई को प्रतिबंधों से जान बूझ कर अलग रखता आया है. ऊष्मा उत्पादन, आवाजाही, ईंधन और उद्योग के लिए यूरोप को ऊर्जा की सप्लाई फिलहाल किसी और तरीके से सुरक्षित नहीं रखी जा सकती है.”
रूस दुनिया में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और वह कमोबेश 50 साल से यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी को गैस सप्लाई करता आ रहा है- घरों को गरम रखने के लिए, व्यापारिक ठिकानो को ऊर्जा देने के लिए, खाना पकाने और सड़कों को रोशन करने के लिए.
रूस यूरोपीय संध के देशों में अपनी गैस सप्लाई करता है, पूर्वी यूरोप के कई देशों में भी उसकी गैस जाती है जो उस पर जर्मनी से ज्यादा निर्भर हैं. इन देशों की कमोबेश 50 फीसदी गैस आपूर्ति रूस से आती है.
हालांकि जर्मन बाजार रूसी गैस उद्योग के लिए लंबे समय से सबसे खास और सबसे अहम ग्राहक रहा है. रूसी कस्ट्मस डाटा के मुताबिक, 2020 में रूसी गैस का करीब 20 फीसदी निर्यात अकेले जर्मनी को हुआ था. इस लिहाज से वो रूस का सबसे बड़ा खरीदार है.
गैस के लिए पाइप
1955 में तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी के चांसलर कोनराड आडेनावर ने नवगठित जर्मन संघीय गणराज्य (एफआरजी) और तब के सोवियत संघ के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने के लिए रूस का दौरा किया था. 1958 में दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता हुआ और 1960 से दोतरफा व्यापार फलनेफूलने लगा.
1960 के दशक में, रूस के पास तेल और गैस संसाधनो का हैरतअंगेज खजाना साफ दिखने लगा था. सोवियत संघ के लिए ऊर्जा व्यापार का एक विराट परिदृश्य उभर आया तो जर्मनी में बने बड़े आकार और बड़े घेरे वाले पाइपों की मांग बढ़ने लगी.
द्रूज्बा पाइपलाइन (दोस्ताना पाइपलाइन) के लिए पश्चिम जर्मनी, पाइप मुहैया कराने लगा था. ये रूस को अधिकांश पूर्वी यूरोप को जोड़ने वाली दुनिया की सबसे लंबी तेल पाइपलाइन थी. 1964 में ये चालू भी हो गई. अमेरिका में तत्कालीन केनेडी सरकार, सोवियत संघ के ऊर्जा सेक्टर के उभार से परेशान हो उठी. नाटो के जरिए वो जर्मनी से रूस को पाइप के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने में कामयाब रही.
फिर भी दशक खत्म होते होते, तत्कालीन जर्मन चांसलर विली ब्रांट की ओस्टपोलिटिक (पूर्वोन्मुख राजनीतिक) नीति ने अपने पूर्वी पड़ोसियों के साथ रिश्तों की शुरुआत कर दी. पश्चिम जर्मनी और सोवियत संघ के बीच 1970 में ऐतिहासिक सौदे का मार्ग प्रशस्त हुआ. उसी के तहत पश्चिम जर्मनी, ट्रांसगैस को विस्तार देने पर सहमत हुआ, ये सोयुज गैस पाइपलाइन का विस्तार था, जो आज के चेक गणराज्य से होती हुई दक्षिणी जर्मन राज्य बवेरिया तक बिछाई गई थी. गैस के बदले पाइप नाम से एक ज्यादा व्यापक समझौते के तहत जर्मनी को पाइपों की सप्लाई करनी थी. सोवियत संघ से आने वाली गैस का भुगतान इस्पाती पाइपों की सप्लाई के रूप में हो रहा था.
1973 में रूसी गैस, पश्चिम जर्मनी तक आना शुरू हो चुकी थी. उसी साल वो पूर्वी जर्मनी भी पहुंची. जो यूरोप के पूर्वी ब्लॉक का हिस्सा था और सोवियत संघ का एक सुदूर राज्य था.
कई राजनीतिक टिप्पणीकार, बिजनेस जगत के उस्ताद और अकादमिक विद्वान- 1970 की डील को शीतयुद्ध के रास्ते में एक अहम कांटे के तौर पर चिन्हित करते हैं. क्योंकि इस समझौते से रूस और पश्चिमी यूरोप के बीच पारस्परिक आधार पर आर्थिक सहयोग स्थापित हुआ था.
1970 के पूरे दशक में, जर्मनी को सोवियत गैस का निर्यात स्थिर और सुचारू बना रहा. उस दौरान सप्लाई बढ़ाने के लिए और भी विभिन्न समझौते हुए. 1970 के दशक के बीच के वर्षों में उत्पन्न तेल संकट को देखते हुए जर्मनी जैसे देशों ने ऊर्जा के एक स्रोत के रूप में प्राकृतिक गैस का रुख किया, बदले में सोवियत संघ ने खूब लाभ कमाया.
रूसी भंडार पर अमेरिकी आपत्तियां
रूसी गैस के साथ जर्मनी के रिश्ते, अमेरिका में हमेशा ही विवाद की जड़ रहे हैं.1960 के दशक की शुरुआत से ही पाइप निर्यात पर प्रतिबंध के साथ कई अमेरिकी राष्ट्रपति, रूसी ऊर्जा स्रोत पर यूरोप की बढ़ती निर्भरता के बारे में चिंतित रहे हैं. 1980 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पश्चिम जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों को रूसी गैस का आयात घटाने के लिए बारंबार राजी कराने की कोशिश भी की थी.
रीगन का दबाव बेकार रहा क्योंकि व्यापारिक संबंध दोनों पक्षों के लिए स्पष्ट रूप से लाभप्रद बने हुए थे. 1989 में बर्लिन दीवार गिरने का समय आने तक, पश्चिम जर्मनी में करीब एक तिहाई गैस आपूर्ति का जरिया सोवियत संघ ही बना हुआ था. मात्रा के तौर पर देखें तो जर्मनी को रूसी गैस आपूर्ति 1973 में 1.1 अरब घन मीटर थी, वही 1993 में उसका आकार बढ़कर 25.7 अरब घन मीटर हो चुका था.
भूराजनीतिक तनाव और बढ़ती पाइपलाइन
1990 के दशक में रूस की सरकारी गैस कंपनी गाजप्रोम यूरोप को गैस की डिलीवरी पहुंचाने के लिए खासी बेताब हो उठी. उसके लिए वो यूक्रेनी क्षेत्र को भी नजरअंदाज कर सकती थी. क्योंकि यूक्रेन में गैस का बुनियादी ढांचा जर्जर था और भूराजनीतिक वजहें भी थीं. 2006 में अपनी पूरी क्षमता से चालू हुई यमाल पाइपालाइन साइबेरिया के गैस भंडार को बेलारूस और पोलैंड से होते हुए जर्मनी से जोड़ती थी.
उसके बाद आई नॉर्ड स्ट्रीम 1. यह पाइपलाइन बाल्टिक सागर के रास्ते, रूस से सीधे जर्मनी तक गैस पहुंचाने के लिए बनाई गई थी. इस पाइपलाइन के रास्ते में कोई और देश नहीं था. जर्मन चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर और रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने 2005 में इस पाइलपाइन के समझौते पर दस्तखत किए थे. 2012 में यह चालू हो गई.
पोलैंड और बाल्टिक राज्य इसके सख्त खिलाफ थे. लेकिन समझौते को जर्मनी के भीतर उसके समर्थक, रूस के साथ सहयोग को सुनिश्चित करने वाली ज्यादा गहरी और सामरिक भागीदारी वाले रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने के एक तरीके के रूप में देखते थे.
अपने अंत की ओर बढ़ता रिश्ता?
पिछले दशक में जर्मनी ऐतिहासिक रूप से बहुत अधिक मात्रा में रूस से गैस आयात करता रहा है. दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर इधर काफी दबाव भी आने लगे हैं. ज्यादातर भूराजनीतिक चिंताओं के चलते ऐसा हुआ है. ये चिंताएं बुनियादी रूप से अमेरिका की ओर से उठी हैं जो जर्मनी की रूसी गैस पर निर्भरता को ऐसे समय में सही नहीं मानता जब रूस, यूक्रेन और जॉर्जिया समेत अपने पड़ोसियों को धमकाता फिरता है.
नॉर्ड स्ट्रीम 2 नाम से, बाल्टिक सागर से होकर जाने वाली दूसरी गैस पाइपलाइन की योजना भी बन चुकी थी. इस पाइपलाइन के चालू हो जाने से सीधी गैस आपूर्ति में बड़ा इजाफा हो सकता था. हालांकि यही पाइपलाइन अमेरिका के आंखों की किरकिरी बन गई. अमेरिका के स्पष्ट विरोध के बावजूद पाइपलाइन पूरी हुई और ये आखिरकार गैस आपूर्ति के लिए चालू भी कर दी जाती अगरचे रूस यूक्रेन पर हमला ना कर बैठता. आखिरकार उस हमले के चलते जर्मन सरकार नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन- 2 की मंजूरी को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने पर मजबूर हो गई.
इसका भविष्य अब खासा अनिश्चित नजर आता है. जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों और रूसी गैस आयात के बीच रिश्ता भी खटाई में पड़ा दिखता है. यूक्रेन युद्ध ने एक तरह से समझौतों और रिश्तों के अंत की घोषणा कर दी है. जर्मन विरोध के बावजूद, यूरोपीय संघ रूसी गैस संसाधनों से यथासंभव दूर हटने के लिए जोर डाल रहा है. मंगलवार को यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने 2030 से पहले रूसी ऊर्जा आयात को खत्म करने की योजना का एक खाका भी तैयार कर लिया. अकेले 2022 में ही, मांग में कम से कम दो तिहाई कटौती करने पर भी, वे आमादा नजर आते हैं.
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लेयन ने एक बयान में कहा, "हमें रूस के तेल, कोयले और गैस से खुद को आजाद करना होगा. हम उस सप्लायर पर कतई भरोसा नहीं कर सकते हैं जो हमें खुलेआम धमकाता है.”
रिपोर्टः आर्थर सुलिवान