बढ़ रही है सऊदी अरब की सिनेमा-शक्ति
५ जून २०२३पिछले हफ्ते कान फिल्म महोत्सव के रेड कार्पेट पर सुपरमॉडल स्टार नेओमी कैंबल के साथ जो शख्स चल रहा था वह सिनेमा उद्योग के सबसे शक्तिशाली पुरुषों में से है और ऐसे देश का रहने वाला है, जहां पांच साल पहले तक सिनेमा पर प्रतिबंध था. 36 वर्षीय मोहम्मद अल तुर्की सऊदी अरब की रेड सी फिल्म फाउंडेशन के प्रमुख हैं. उनका नाम कान में दिखाई गईं दुनिया की कुछ सबसे बड़ी फिल्मों के पोस्टरों पर छाया रहा.
रेड सी फिल्म फाउंडेशन की स्थापना दो साल पहले की गई. उसका अपना एक सालाना फिल्म महोत्सव भी होता है. अब तक उसने 168 फिल्मों को धन उपलब्ध कराया है जिनमें आठ ऐसी हैं जिन्हें इस साल कान फिल्म महोत्सव में आधिकारिक रूप से चुना गया. इनमें ‘ज्याँ दू बैरी' भी थी, जो फेस्टिवल की ओपनिंग फिल्म थी. यह एक फ्रांसीसी यौनकर्मी की कहानी है जिसे फ्रांस के राजा लुई 15वें से इश्क हो गया था. लुई की भूमिका जॉनी डेप ने निभाई है.
अपनी परंपराओं के बाहर
फाउंडेशन की बनाई अन्य फिल्मों में भी बहुत सी ऐसी हैं जिनकी कहानियां सऊदी अरब की परंपराओं से मेल नहीं खातीं. मसलन, ट्यूनिशिया की लड़कियों को धार्मिक रूप से कट्टर बनाये जाने पर आधारित ‘फोर डॉटर्स' या फिर सूडान में अपने अत्यधिक रूढ़िवादी पति को झेलती महिला की कहानी ‘गुडबाय जूलिया'.
रेड सी फिल्म फाउंडेशन के निदेशक एमाद इसकंदर कहते हैं, "हमने अन्य संस्कृतियों का सम्मान करना सीखा है. फाउंडेशन अरबी और अफ्रीकी फिल्मकारों पर ध्यान दे रही है.” हालांकि इसका रुख काफी लचीला लगता है क्योंकि ज्याँ दू बैरी की निर्देशक माइवेन एक फ्रांसीसी हैं, जबकि उनके पिता अल्जारियाई मूल के थे.
बॉलीवुड में लंबी है फिल्मों के विरोध, बायकॉट और विवाद की परंपरा
इसकंदर कहते हैं, "जब तक हमारे पास संसाधन हैं, हम क्षेत्र की सेवा करना चाहते हैं लेकिन इसे हम और ज्यादा सीखने के मौके के तौर पर भी देखते हैं.”
इस फाउंडेशन ने फेस्टिवल के दौरान महिलाओं के लिए एक विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किया. इस आयोजन में कैंबल के अलावा कैथरीन डेनवू और केटी होम्स जैसे सितारे पहुंचे. कैंबल ने इंस्टाग्राम पर लिखा, "रेड सी फिल्म जो कर रही है, उस पर हमें गर्व है. बहुत सारे काम पहली बार हो रहे हैं और सोच बदल रही है.”
बदल रहा है सऊदी
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सत्ता के केंद्र में आने के बाद से सऊदी अरब में कला के प्रति रवैया बहुत बदला है. अरबों डॉलर ऐसे क्षेत्रों में खर्च किये जा रहे हैं, जिनके बारे में पहले देश में नाम लेना भी ठीक नहीं माना जाता था, मसलन संगीत, फैशन और खेल.
हालांकि मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि यह सब खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड को छिपाने के लिए किया जा रहा है और "सऊदी अरब में नागरिक संगठनों का दमन, असहमति जताने वालों की प्रताड़ना और महिलाओं का शोषण” जारी है.
इसकंदर कहते हैं कि कुछ छिपाने के लिए यह सब हो रहा है, यह बात उदास करती है. वह बताते हैं, "आप हमारे यहां आइए, सऊदी अरब को जानिए और तब हमारे बारे में बात कीजिए. पश्चिम आज जहां है, वहां सालों के युद्धों और बहसों के बाद पहुंचा है. हम सिर्फ 90 साल पुराने हैं. थोड़ा धैर्य रखिए.”
एक सच्चाई यह भी है कि विभिन्न क्षेत्रों में सुधार नजर आ रहे हैं और उन्हें लोगों का समर्थन भी मिल रहा है. अधिकारी कहते हैं कि राजशाही रातोरात तो उदारवादी नहीं हो जाएगी. लेकिन सऊदी अरब अपनी छवि सुधारने के लिए कोशिशें कर रहा है और वे कामयाब होती भी दिख रही हैं. कान के निदेशक थिअरी फ्रेमॉ रेड सी फाउंडेशन की कोशिशों की तारीफ करते हैं. वह कहते हैं, "सऊदी अरब बदल रहा है.”
कान महोत्सव में जगह-जगह ऐसे विज्ञापन लगाये गये जिनमें फिल्मकारों को सऊदी अरब में जाकर फिल्में बनाने के लिए आमंत्रित किया गया. देश का अपना पविलियन भी था, जहां देसी युवा निर्देशकों का काम प्रदर्शित किया गया था.
अन्य देश भी सक्रिय
कान फिल्म मार्किट के प्रमुख जिलॉमे इस्मोएल कहते हैं, "हर साल सऊदी अरब ज्यादा बड़ी जगह और ज्यादा सुविधाओं की मांग करता है.”
वैसे सऊदी अरब एकमात्र खाड़ी देश नहीं है जो सिनेमा में इतना निवेश कर रहा है. उसका प्रतिद्वन्द्वी कतर भी इस दिशा में तेजी से प्रगति कर रहा है. इस साल कान में 13 ऐसी फिल्में हैं जिनमें कतर का पैसा लगा है. उनमें से तीन कान के आधिकारिक मुकाबले में शामिल हैं. कुछ तो ऐसी हैं जिनका मध्य पूर्व से कोई सीधा संबंध नहीं है.
दोहा फिल्म इंस्टिट्यूट की सीईओ फातमा हसन अलरेमैही कहती हैं, "हमने बहुत सारी फ्रांसीसी फिल्में बनाई हैं. हम किसी खोल में नहीं रहना चाहते. हम चाहते हैं कि हमारे फिल्मकार अन्य क्षेत्रों और अन्य फिल्मकारों के साथ संवाद करें और काम करें.”
यह बात कहने में अलरेमैही को कोई झिझक नहीं है कि यह निवेश कतर का सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. वह कहती हैं, "ऐसा कौन नहीं चाहता? अमेरिका हॉलीवुड फिल्मों के साथ ऐसा करता है. कम से कम हम वो कर रहे हैं जिस पर हम यकीन करते हैं और साथ ही अपनी पहचान भी बनाए हुए हैं.”
वीके/एए (एएफपी)