सेक्स और संक्रामक यौन रोगः जानलेवा सिफलिस
३० दिसम्बर २०२२"सेफ सेक्स" यानी सुरक्षित यौन संबंध 1980 के दशक का एक आम नारा था. एचआईवी का पता चला और उस पर व्यापक बहस भी चली. लेकिन सुरक्षित सेक्स का विचार लगता है फिर से भुला दिया गया है. शायद इसका संबंध इस बात से भी है कि आपने 80 के दशक का खौफ झेला या नहीं. लेकिन ऐसे भी संकेत हैं कि खासतौर पर नयी पीढ़ी में यौन संक्रमित बीमारियों यानी एसआईटी के बारे में जागरूकता का अभाव है.
सिफलिस संक्रमण के सामान्य लक्षण क्या हैं?
सिफलिस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग अलग हो सकते हैं. अक्सर ही किसी को अल्सर या फोड़ा होने पर, ट्रेपोनेमा पैलीडम नाम का जो बैक्टीरिया शरीर में घुसता है वही सिफलिस का कारण भी बनता है. घाव एक दाने के आकार से एक सेंटीमीटर चौड़ा भी हो सकता है. पुरुषों में ये घाव पेनिस यानी शिश्न में उभर आता है. औरतों में ये वजाइना यानी योनि में मिल सकता है. ये संक्रमण गुदा के आसपास भी उभर सकता है और शरीर के दूसरे हिस्सों में भी.
खराब अर्थव्यवस्था की भेंट चढ़ते सुरक्षित यौन संबंध
विशेषज्ञ नॉर्बर्ट ब्रॉकमायर के मुताबिक, "कुछ लोगों में, अल्सर होंठों पर या जीभ पर आ जाता है. अंगुलियों पर भी ये बैक्टीरिया फैल सकता है. ये सिफलिस की पहली अवस्था है, प्राइमरी स्टेज."
शुरुआती लक्षण अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं
संक्रमित होने वाले लोग अक्सर सिफलिस के शुरुआती चिन्हों को गंभीरता से नहीं लेते हैं. हो सकता है उन्हें अहसास न होता हो कि वो है क्या और मान बैठते हों कि वो खुदबखुद गायब हो जाएगा. लेकिन सिफलिस रोग अपने आप ही नहीं उभर आता है. वो संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग यानी संभोग की वजह से होता है और अपने आप जाता भी नहीं है.
समस्या अपने आप हल नहीं होती, शुरुआत में भले ही ऐसा लगे. कई मामलों में करीब तीन हफ्ते बाद अल्सर खुदबखुद भरने लगता है. ब्रॉकमायर कहते हैं, "एक अनिश्चित अवधि के बाद, चमड़ी पर चकत्ते उभर आते हैं क्योंकि विषाणु खून के जरिये पूरे शरीर में फैल चुके होते हैं. उसका मतलब पूरे शरीर में घाव होने लगते हैं. कुछ उभर आते हैं कुछ में पपड़ियां जम जाती हैं, कुछ लाल हो जाते हैं."
सिफलिस की अलग अलग अवस्थाएं
चकत्ते आमतौर पर तलवों या हथेलियों पर उभरते हैं. ब्रॉकमायर कहते हैं, "उनमें खुजली नहीं होती और एलर्जी के चकत्तों से बिल्कुल अलग होते हैं." ये संक्रमण की दूसरी अवस्था है. तीसरी अवस्था में संक्रमण काफी गंभीर हो जाता है. वो अंदरूनी अंगों, वायु-मार्ग, पेट और लीवर के अलावा मांसपेशियों और हड्डियों को भी प्रभावित कर सकता है.
स्थिति तब नाजुक हो जाती है जब एक "सिफलिटिक गांठ" एओर्टा यानी महाधमनी में बन जाती है. उसकी वजह से जानलेवा एऑर्टिक एन्यूरिज्म यानी धमनी फैल कर फट सकती है. ये जान को खतरे में डालने वाली स्थिति है.
सिफलिस से स्थायी बीमारी का खतरा
सिफलिस एक दैहिक बीमारी है. और चौथी अवस्था में इसके नतीजे बदले नहीं जा सकते. दिल में सूजन आ जाती है, लकवा हो सकता है, लीवर के काम में गड़बड़ी आ सकती है और दिमागी नुकसान हो सकता है. सिफलिस के करीब 25 फीसदी मरीजों में स्थायी मस्तिष्क सूजन पैदा हो जाती है. बीमारी आंखों पर भी असर डाल सकती है.
ब्रॉकमायर कहते हैं कि, "स्नायु मार्गो में अवरोध आ जाता है और कोशिकाओं में भी. सिफलिस के कई मशहूर रोगियों में पाया गया कि बीमारी ने उनकी मानसिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचाया." ऐसी शख्सियतों में लुडविग फान बीठोफन, फ्रीडरिश नीत्शे भी शामिल थे और कुछ शोध बताते हैं कि कैथरीन महान को भी सिफलिस हो गया था.
सिफलिस रोग को "महान नकलची" भी कहा जाता था क्योंकि वो दूसरी कई बीमारियों की नकल कर लेता है. कनाडा के जानेमाने फिजिशियन विलियम ओस्लर ने 19वीं सदी के आखिर में कहा था, "जो सिफलिस को जानता है वो चिकित्सा जानता है."
क्या सिफलिस का इलाज है?
शुरुआत में सिफलिस का उपचार सलवरसन नाम के एक आर्सेनिक कम्पाउंड से किया जाता था जो 1910 में बाजार में आया था. 1943 में पेंसिलिन काम की दवा बन गई और अब तक चल रही है. ब्रॉकमायर आगाह करते हैं, "दूसरे एंटीबायोटिक, प्रतिरोध दिखा ही रहे हैं.
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अगर विषाणु, पेंसिलिन के खिलाफ प्रतिरोध बना लेता है, हमारे लिए समस्या हो जाएगी जिसका समाधान बहुत ज्यादा कोशिशों से ही हो सकता है. इसीलिए ये सही समय है कि रिजर्व एंटीबॉयोटिक विकसित किए जाएं और उनका परीक्षण किया जाए."
युद्ध में हथियार की तरह सिफलिस का इस्तेमाल
इस बारे मे बहुत सारी थ्योरियां हैं कि सिफलिस यूरोप में कैसे पहुंचा. उनमें से एक ये है कि क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके साथी, 1492 में अमेरिका अभियान से स्पेन लौटते हुए बीमारी को अपने साथ ले आए. माना जाता है कि उसके बाद यह बीमारी इटली और फ्रांस में फैल कर महामारी बन गई. उस दौरान "फ्रांसीसी बीमारी” के रूप में कुख्यात सिफलिस तब एशिया में चली आई. जल्द ही ये साफ हो गया कि सिफलिस एक संक्रामक रोग था.
सेनाओं को रसद पहुंचाने वाले सट्लर अक्सर औरतें हुआ करती थीं जो युद्धों मे सेनाओं के साथ जाती थीं और यौनकर्मियों की तरह काम करती थीं. ब्रॉकमायर कहते हैं, "अगर ये पता चल जाता कि कोई सट्लर सिफलिस रोग से ग्रस्त हैं तो उन्हें शत्रु सेनाओं में प्यार के दूत की तरह भेज दिया जाता था." ब्रॉकमायर कहते हैं, "कुछ युद्ध सिफलिस से तय हुए. सैनिक बीमारी से ग्रस्त हुए और उनकी टुकड़ियां बीमारी से खत्म हो गईं. तो एक लिहाज से कई सदियों पहले भी एक बायोलॉजिकल यानी जैविक युद्ध चल ही रहा था."
जानकारी और उपचार में पैसों की कमी
सिफलिस आज समाज में भुलाया जा चुका है. ये खतरे की बात है. क्योंकि ये तो बढ़ ही रहा है. जानकारी, परामर्श, पहचान और उपचार ही इस खतरनाक संक्रामक बीमारी पर काबू पाने के सबसे अहम उपाय हैं. रोकथाम का सबसे सही तरीका है सुरक्षित यौन संबंध. कंडोम का इस्तेमाल कीजिए क्योंकि ये आपको संक्रामक यौन रोगों से बचा सकता है. लेकिन इस बारे में शिक्षा या जानकारी होना भी बहुत जरूरी है. इसीलिए जर्मनी में यौन चिकित्सा और स्वास्थ्य केंद्र ने अपनी सूची के शीर्ष में इस बारे में सूचना और परामर्श को रखा है.
लेकिन ब्रॉकमायर कहते हैं कि पैसे की कमी है, "लंबी अवधि का कोई नजरिया है ही नहीं. हमें अभी जरूरत है पैसों की जिससे हम पांच साल में कामयाबी पा सकें. व्यापक स्तर के यौन संक्रमित संक्रमणों के खिलाफ हमें बचाव के विकल्पों को इस्तेमाल करने की जरूरत है. पैपीलोमा वायरस के टीके चाहिए, एचआईवी संक्रमण की दवाएं चाहिए, स्क्रीनिंग और जांच चाहिए. अगर हम ये कदम उठा पाए तो सिफलिस के मामले कम होंगे और दूसरी संक्रामक यौन बीमारियों के मामले भी."