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गिलगित बल्तिस्तान में चीनी कोरिडोर से डरे लोग

एस खान, इस्लामाबाद
४ जनवरी २०१८

पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना की शान में कसीदे पढ़ने वालों की कमी नहीं है. लेकिन गिलगित बल्तिस्तान इलाके में लोगों को इसके चलते कई डर सता रहे हैं. इस इलाके को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है.

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Pakistan Wahlen in Gilgit-Baltistan (Bildergalerie)
तस्वीर: DW/S. Raheem

गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान प्रशासित सबसे उत्तरी इलाका है जिसकी सीमा दक्षिण में पाकिस्तान और भारत के नियंत्रण वाले कश्मीरी इलाकों से मिलती हैं, तो अन्य दिशाओं से वह पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत, अफगानिस्तान और चीन से सटा हुआ है. 2009 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस इलाके को सीमित स्वायत्तता दी थी.

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गिल्गित बल्तिस्तान एक विवादित इलाका है और अरबों डॉलर की लागत से बनने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर इसी इलाके से होकर पाकिस्तान में दाखिल होगा. पाकिस्तान को उम्मीद है कि उसके ग्वादर बंदरगाह को चीन के कशगर शहर से जोड़ने वाले इस कोरिडोर से गिलगित बल्तिस्तान समेत पाकिस्तान के सभी इलाकों में बहुत समृद्धि और प्रगति आएगी. लेकिन गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है.

इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग शिया हैं, जबकि पाकिस्तान सुन्नी बहुल देश है. गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को डर है कि कोरिडोर परियोजना से न सिर्फ इलाके की पारिस्थितिकी, बल्कि यहां की आबादी में भी बड़े बदलाव होंगे. उन्हें अपनी जमीनें हड़प लिए जाने का भी डर सता रहा है. साथ ही उन्हें लगता है कि इससे उनकी अपनी संस्कृति के लिए खतरे पैदा होंगे.

गिलगित बल्तिस्तान के अपर हुंजा में रहने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक फरमान अली कहते हैं, "चीनी लोग विकास परियोजनाओं को लागू करने के लिए जाने जाते हैं और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की वे ज्यादा परवाह नहीं करते हैं." वह कहते हैं, "इस इलाके से हर रोज 70 हजार ट्रक गुजरेंगे, जो बड़ी मात्रा में कार्बन छोड़ेंगे. सरकार इस पहाड़ी इलाके में रेलवे लाइनें भी बिछाएगी, जिसके लिए बहुत सारी सुरंगें बनानी होंगी. इससे भूस्खलन होगा और इलाके के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान होगा."

खोखला वादा

पाकिस्तान सरकार का कहना है कि इस परियोजना से गिलगित बल्तिस्तान में 18 लाख नौकरियों के अवसर पैदा होंगे. हालांकि स्थानीय लोग इस दावे पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं. यह इलाका पाकिस्तान के सबसे ज्यादा साक्षरता वाले इलाकों में शुमार होता है, फिर भी यहां के युवाओं को काम नहीं मिलता.

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लोवर हुंजा में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक आमिर हुसैन रोजगार के मुद्दे पर सरकार के आश्वासनों को सिर्फ एक झुनझुना कहते हैं. उनका मानना है, "चीनी लोग जहां भी जाते हैं, वे अपने लोगों को साथ लेकर जाते हैं. कोरिडोर परियोजना के लिए वे 70 लाख चीनी मजदूरों को पाकिस्तान में ला सकते हैं. उनमें से लगभग चार लाख गिलगित बल्तिस्तान में काम करेंगे. तो फिर स्थानीय लोगों को कहां से नौकरियां मिलेंगी?"

हुसैन ने कहा, "नौकरियां तो भूल ही जाइए, हालत यह है कि स्थानीय लोगों को इस प्रोजेक्ट की वजह से अपनी रोजी रोटी गंवानी पड़ रही है. छोटे उत्पादक और दुकान मालिक बाजार में चीनी माल की बाढ़ से परेशान हैं. सरकार ने स्थानीय खनिकों के लाइसेंस भी रद्द कर दिए हैं. इलाके में खनन का काम भी चीनियों को सौंप दिया गया है."

जमीनों पर खतरा

पहाड़ी इलाके में जमीन बहुत कीमती संपत्ति होती है. और स्थानीय लोगों को डर है कि कोरिडोर परियोजना के कारण उनसे उनकी जमीनें छीनी जा सकती हैं. हुसैन बताते हैं कि सरकार ने मकपून दास इलाके में 500 एकड़ जमीन एक विशेष आर्थिक जोन बनाने के लिए आवंटित कर दी है. हुसैन का दावा है, "कोरिडोर परियोजना के नाम पर इस इलाके को लिया गया है. इसके अलावा सेना कोरिडोर परियोजना के लिए सुरक्षा मुहैया कराने के लिए चेकपोस्ट बना रही है. इसलिए वे हुंजा और नगर जिलों से लोगों को दूसरी जगहों पर भेजने की योजना बना रहे हैं. ये दोनों जिले चीनी सीमा के नजदीक पड़ते हैं."

वह कहते हैं, "कोरिडोर परियोजना पाकिस्तान में एक पवित्र गाय बन गई है. स्थानीय लोगों को इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं है. जो प्रदर्शन करते हैं, उनके खिलाफ आंतकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमे शुरू हो जाते हैं और उन्हें राष्ट्रविरोधी करार दे दिया जाता है."

लेकिन अधिकारी इन सब बातों को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि गिलगित बल्तिस्तान में कोरिडोर परियोजना को लेकर आम सहमति है. गिलगित बल्तिस्तान की स्थानीय सरकार के प्रवक्ता फजलुल्लाह फराक कहते हैं कि सभी लोग इलाके में हो रहे विकास का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा, "कोरिडोर परियोजना गिलगित बल्तिस्तान को पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों से जोड़ेगी. इलाके में स्पेशल आर्थिक जोन बनेगा, रेलवे ट्रैक बिछाया जाएगा, फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट लगेगा और मवेशियों के लिए योजनाएं चलेंगी. स्थानीय लोग इस सब को लेकर बहुत खुश हैं."

वह कहते हैं, "सरकार ने एक भूमि सुधार आयोग बनाया है. कोरिडोर परियोजना के विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए सिर्फ जमीनों की पहचान की गई है, अभी उनका अधिग्रहण नहीं किया गया है. आयोग फैसला करेगा कि इन जमीनों का अधिग्रहण होना चाहिए या नहीं. और इसके लिए पहले जमीन मालिकों को मुआवजा दिया जाएगा."

स्थानीय लोगों को सिर्फ चीनी लोगों के आने का डर नहीं हैं, बल्कि उन्हें यह भी आशंका है कि पाकिस्तान के अन्य इलाकों खासकर खैबर पख्तून ख्वाह और पंजाब से आए लोग कोरिडोर परियोजना से पैदा होने वाली नौकरियां ले लेंगे.

सांप्रदायिक तनाव का अंदेशा

पाकिस्तान में 1980 के दशक में जनरल जिया उल हक के शासन में गिलगित बल्तिस्तान में बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए थे. बताया जाता है कि सुन्नी शासक जिया उल हक ने खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत (उस वक्त के पश्चिमोत्तर प्रांत) के बहुत से सुन्नी लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे शिया बहुल गिलगित बल्तिस्तान इलाके में जाकर बसें. माना जाता है कि इस कदम के पीछे वहां शियाओं के दबदबे को कम करने की कोशिश की गई थी. कुछ राजनीतिक और सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान को इस इलाके की जरूरत थी ताकि इस रास्ते से भारत प्रशासित कश्मीर में अलगाववाद और उग्रवाद को भड़काने के लिए जिहादियों को भेजा जा सके.

कोरिडोर परियोजना के कारण फिर खैबर पख्तून ख्वाह से बड़ी संख्या में लोग गिलगित बल्तिस्तान का रुख कर सकते हैं. गिलगित बल्तिस्तान में सक्रिय एक राजनीतिक कार्यकर्ता शेर बाबू कहते हैं, "यहां के बहुत से होटल, दुकान, बाजार और बिजनेस पहले ही खैबर पख्तून ख्वाह और पंजाब से आए लोगों के हाथ में हैं. अब कोरिडोर परियोजना की वजह से और लोग यहां आएंगे. इसका नतीजा यह होगा कि स्थानीय लोग अल्पसंख्यक बन कर रहे जाएंगे."

कुछ स्थानीय लोग यह भी कहते हैं कि सुन्नी चरमपंथी गुटों ने पहले ही इस इलाके में पैर जमाने शुरू कर दिए हैं. नाम ना जाहिर करने की शर्त पर स्कार्दू के एक निवासी ने बताया, "जिहादी मजबूत हो रहे हैं और गिलगित बल्तिस्तान फिर एक बार सांप्रदायिक संघर्ष का केंद्र बन सकता हैं."