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समाजएशिया

दक्षिण कोरियाई लोग होंगे एक साल जवान

२८ जून २०२३

दक्षिण कोरिया में उम्र का हिसाब-किताब जन्मदिन से नहीं गर्भधारण के वक्त से रखा जाता है. उम्र गिनने के एक दूसरा तरीके भी प्रचलन में है लेकिन अब व्यवस्था में बदलाव के लिए कानून बना है.

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दक्षिण कोरिया में उम्र का हिसाब रखने के एक नहीं तीन तरीके हैं.
दक्षिण कोरिया में फुटबॉल खेलते बच्चेतस्वीर: Ahn Young-joon/AP/picture alliance

अंतर्राष्ट्रीय मानकों से कदम ताल करने के इरादे से दक्षिण कोरिया ने उम्र गिनने का अपने परंपरागत तरीके को छोड़ने का फैसला किया है. नतीजतन लोगों की उम्र से एक आध साल कम हो जाने की उम्मीद है. बुधवार से लागू हुए इस कानून के जरिए अलग व्यवस्थाओं से पैदा होने वाली सामाजिक दुविधा और आर्थिक भार के कम होने की उम्मीद है. पिछले साल सत्ता संभालने वाले राष्ट्रपति यून-सुक ओल इस बदलाव के प्रबल समर्थक रहे हैं.

वैसे यह पहला मौका नहीं है जब देश में इस बदलाव की कोशिश की गई. साल 2019 और 2021 में भी उम्र की व्यवस्था को एकरूप करने का बिल लाया गया था लेकिन उस वक्त कोरियाई असेंबली में बिल को समर्थन नहीं मिला.

ऐसा नहीं है कि देश में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था नहीं थी लेकिन इसे कानूनी रूप अब मिला है. इसका मतलब यह है कि दक्षिण कोरिया में उम्र के साल गिनने के लिए तीन व्यवस्थाएं एक साथ चलती आ रही हैं. सांसदों ने पिछले साल दिसंबर में इस स्थिति को बदलकर अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम को ही आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करने के हक में वोट किया. सवाल हालांकि अब भी ये बना हुआ है कि क्या कानून बन जाने से दिक्कतें सुलझेंगी या उलझनों का एक नया दौर पैदा होगा.

दक्षिण कोरियाई मंत्री ली वान-क्यु अपनी अंतर्राष्ट्रीय और देसी उम्र का अंतर दिखाते हुए
दक्षिण कोरियाई मंत्री ली वान-क्यु अपनी अंतर्राष्ट्रीय और देसी उम्र का अंतर दिखाते हुएतस्वीर: Jung Yeon-je/AFP/Getty Images

उम्र की कोरियाई व्यवस्था

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देश में उम्र गिनने के पहले तरीके के मुताबिक कोख में आते ही ये गिनती चालू हो जाती है. यानी हर दक्षिण कोरियाई पैदा होते ही एक साल का होता है. उम्र में अगला साल जन्मदिन पर नहीं बल्कि एक जनवरी से जुड़ जाता है. इसका मतलब यूं समझिए कि अगर किसी का जन्मदिन 31 दिसंबर को हुआ तो कोरियाई व्यवस्था के हिसाब से एक जनवरी को उसकी उम्र दो साल हो जाएगी.

दूसरा तरीका है जिसमें बच्चे की उम्र पैदाइश के दिन शून्य लेकिन पहली जनवरी को एक साल मानी जाती है. इसके अलावा 1960 के दशक से मेडिकल और कानूनी कागजातों में अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम का इस्तेमाल भी होता है जिसमें जन्म के वक्त उम्र शून्य होती है और जन्मदिन पर पहला साल गिना जाता है. आम जीवन में लोगों ने परंपरागत तरीकों को छोड़ा नहीं. हालांकि सितंबर 2022 में हुए एक सर्वे में 86 फीसदी लोगों ने कहा कि कानून बनने के बाद वे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को ही इस्तेमाल करना चाहेंगे.

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-ओल उम्र गिनने की कोरियाई व्यवस्था में बदलाव के समर्थक रहे हैं.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-ओल उम्र गिनने की कोरियाई व्यवस्था में बदलाव के समर्थक रहे हैं.तस्वीर: Lee Jin-man/AFP

क्या दूर होंगी उलझनें

दक्षिण कोरियाई सरकार में मंत्री ली वान-क्यु ने पत्रकारों से कहा, "हमें उम्मीद है कि उम्र का हिसाब रखने के तरीकों से पैदा हुए कानूनी विवाद, शिकायतें और सामाजिक उलझनें अब कम होंगी." कुछ लोग तो इस बात से भी खुश हैं कि उनकी उम्र से एक साल कम होने जा रहा है. सोल शहर में रहने वाले च्वे ह्युनजी कहते हैं, "कोरियाई व्यवस्था के हिसाब से मैं अगले साल तीस बरस का होने वाला हूं लेकिन अब मुझे कुछ और वक्त मिल गया है, मुझे ये काफी अच्छा लग रहा है." तीन तरह से उम्र नोट किए जाने का मतलब है इंश्योरेंस और पेंशन जैसी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने में दिक्कत लेकिन सब कुछ अचानक से बदलने जा रहा है ऐसा नहीं है.

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अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम लागू करने का मतलब ये नहीं होगा कि सभी जगह तुरत-फुरत चीजें बदल जाएंगी. जैसे सिगरेट या शराब खरीदने पर अचानक बंदिश होगी या फिर पढ़ाई-लिखाई शुरू करने की उम्र में बदलाव हो जाएगा. जीवन के सामाजिक पहलुओं को चलाने के लिए एक जनवरी से उम्र गिनने की पारंपरिक व्यवस्था फिलहाल लागू रहेगी ताकि साल दर साल नई व्यवस्था को लागू करने का काम चले और अफरा-तफरी ना मचे.

इस तरह के सवाल भी हैं कि क्या दुनिया से कदम मिलाने की कोशिश देसी परंपराओं के साथ खिलवाड़ है? क्या एक कानून लंबे वक्त से चल रही परिपाटी को मिटा सकता है? जब सरकारी सर्वे हुआ तो लोगों ने माना कि इस नई पहल से जिंदगी आसान हो सकती है लेकिन इस तरह के सवालों का कोई ठोस जवाब तो मुमकिन नहीं. साथ ही जानकार ये भी मानते हैं कि भले ही नई व्यवस्था को कानूनी जामा पहना दिया जाए लेकिन परंपराएं यूं आसानी से दम नहीं तोड़तीं. रवायतों और आधुनिक जरूरतों के साथ-साथ चलते रहने की आदत हो तो ये और भी मुश्किल लगता है.

एसबी/एनआर (एएफपी, रॉयटर्स)