श्रीलंका ने 263 कंटेनर कचरा ब्रिटेन भेजा
२२ फ़रवरी २०२२श्रीलंका के अधिकारियों के मुताबिक ब्रिटिश कचरे की आखिरी खेप 45 कंटेनरों में पैक कर वापस भेज दी गई है. इससे पहले की खेपों में भी 218 कंटेनर भेजे जा चुके हैं. श्रीलंका में इस मामले में का पता दो साल पहले चला. ब्रिटेन से आए कंटेनरों में रिसाइक्लिंग के लिए गद्दे, कालीन और स्प्रिंग बताए गए. लेकिन जब कस्टम अधिकारियों ने कंटेनरों की तलाशी ली तो उन्हें भारी मात्रा में कचरा भी मिला. दस्तावेजों में इस कचरे का कहीं कोई जिक्र नहीं था.
मामला पर्यावरण से जुड़े विभाग के पास गया. उप पर्यावरण प्रमुख अजीत वीरासुंदरा के मुताबिक इस सोमवार को कचरे की आखिरी खेप ब्रिटेन भेजी गई. वीरासुंदरा ने यह भी कहा कि अधिकारियों से जहाजों के जरिए आने वाले ऐसे कचरे पर कड़ी नजर रखने को कहा गया है.
गरीबों के मत्थे अमीरों का कचरा
विकसित और अमीर देशों द्वारा कारोबार, मदद या रिसाइक्लिंग के नाम पर जैविक व पर्यावरणीय रूप से खतरनाक कचरा गरीब देशों को भेजना नई बात नहीं है. हाल के बरसों में दक्षिणपूर्व एशिया के कई देश विकसित देशों की वेस्ट डंपिंग का सामना कर चुके हैं. विकिसित देशों के प्लास्टिक कचरे की रिसाइक्लिंग से चीन के इनकार के बाद ये मामले और बढ़े हैं.
डब्ल्यूएचओ: महामारी ने बनाया मेडिकल कचरे का पहाड़
2019 में मलेशिया के जोहोर प्रांत के करीब 4,000 निवासी एक रहस्यमयी बीमारी का शिकार हुए. जांच में पता चला कि सुंगाई किम नदी में जहरीला कचरा फेंकने के कारण ऐसा हुआ. 2020 में फिर 150 कंटेनर घातक कचरा लेकर मलेशिया पहुंचे.
श्रीलंका भी बाजेल समझौते का हिस्सा है. यह समझौते खतरनाक कचरे के अंतरराष्ट्रीय परिवहन पर नियंत्रण रखता है. विकास कर रहे देशों को अकसर विकसित देश डंपिंग ग्राउंड समझने लगते हैं. बाजेल संधि इस सोच पर लगाम लगाने की प्रक्रिया तय करती है. लेकिन रिसाइकिल किये जाने वाले प्लास्टिक और दूषित मिक्स प्लास्टिक के बीच का फर्क इस संधि का हिस्सा नहीं है. दुनिया में सबसे ज्यादा प्लास्टिक का कचरा अमेरिका एक्सपोर्ट करता है और वह बाजेल संधि में शामिल नहीं है.
ओएसजे/आरपी (एपी)