सीएए पर जवाब दाखिल करने के लिए सरकार को मिला वक्त
२२ जनवरी २०२०नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है और कहा है कि अब अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद होगी. बुधवार को सीएए से जुड़ी 144 याचिकाओं पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने सुनवाई की. हालांकि ज्यादातर याचिका कानून के खिलाफ हैं लेकिन एक याचिका इसके पक्ष में और एक याचिका केंद्र की तरफ से दायर की गई है.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि तीन जजों की बेंच मामले में अंतरिम राहत नहीं दे सकती, पांच जजों की बेंच ही अंतरिम राहत दे सकती है. साथ ही कोर्ट ने कहा जब तक सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर फैसला नहीं सुना देती है तब तक किसी भी हाईकोर्ट में इस कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बेंच को बताया कि 143 याचिकाओं में से करीब 60 की प्रतियां सरकार को दी गई हैं और उन पर प्रतिक्रिया देने में उसे अभी और वक्त लगेगा.
एक याचिकाकर्ता के वकील अरिंदम दास ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें इस आदेश से आश्चर्य नहीं हुआ. हमें ऐसे ही आदेश की अपेक्षा थी. हम उम्मीद करते हैं कि पांच जजों की संविधान पीठ में जब मामला उठेगा तो हमें जरूर न्याय मिलेगा." वहीं सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से सीएए के ऑपरेशन पर रोक लगाने और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की कवायद फिलहाल टाल देने का आग्रह किया था.
दूसरी ओर कोर्ट ने असम, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश से जुड़ी याचिकाओं को अलग सुनने की बात कही है. दरअसल उत्तर प्रदेश में बिना कोई नियम बनाए ही सीएए से जुड़ी प्रक्रिया शुरू कर चुकी है.
दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले कई हफ्तों से सीएए और एनआरसी के खिलाफ धरने पर बैठीं प्रदर्शनकारी महिलाओं में से एक रिजवा खालिद कहती हैं, "हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं और चार हफ्ते तक सब्र के साथ बड़ी बेंच के फैसले का इंतजार करेंगे. हमें उम्मीद है कि संविधान के तहत हमें न्याय मिलेगा." साथ ही वह कहती हैं तब तक अगले चार हफ्तों तक शाहीन बाग में धरना प्रदर्शन इसी तरह से जारी रहेगा. 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सीएए को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था और केंद्र से जनवरी के दूसरे हफ्ते तक जवाब दाखिल करने को कहा था.
इस बीच नागरिकता कानून के खिलाफ देश के प्रमुख शहरों और विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो वहीं इस कानून के समर्थन केंद्र सरकार के मंत्री और बीजेपी के नेता समर्थन रैली कर रहे हैं. सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. नए कानून के तहत हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी. वहीं विपक्ष का आरोप है कि नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती है और यह संविधान का उल्लंघन है.
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