साबूदाने से थैले बना रहा है इंडोनेशिया
२९ मार्च २०१९इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से करीब 30 किलोमीटर दूर है तांगरंग लैंडफिल. कचरे का अंबार यहां 35 हेक्टेयर में फैला है. 36 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में इसकी दुर्गंध भयानक होती है. लेकिन इसके बावजूद लोग यहां कचरा बीनने आते हैं. हर दिन यहां 1500 टन कचरा आता है, जिसमें 15 से 20 फीसदी प्लास्टिक होता है.
सुगिआंतो तानदियो ने इस प्लास्टिक के कूड़े के खिलाफ संघर्ष छेड़ा है. वह कचरे के इस ढेर को कम करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने ग्रीनहोप नाम की संस्था बनाई है. वह बताते हैं कि इंडोनेशिया में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग रेट सिर्फ आठ फीसदी है, "दुनिया भर में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग का औसत करीब 15 फीसदी है, इसीलिए हमारे लिए आगे का रास्ता अभी बहुत लंबा है."
इंडोनेशिया में कई छोटी मोटी चीजें, मसलन दवाएं प्लास्टिक में पैक रहती हैं. पैकेजिंग अपने आप में ही कचरे का बहुत बड़ा स्रोत है. इस प्लास्टिक कचरे को प्राकृतिक रूप से विघटित होने में कम से कम 500 साल लगते हैं. पर्यावरण के लिए यह किसी आपदा से कम नहीं. सुगिआंतो प्लास्टिक का ऐसा विकल्प पेश करना चाहते हैं जो आराम से विघटित हो. वह कहते हैं, "उपाय यह हो सकता है कि पैकेजिंग वाले सारे प्लास्टिक को डिग्रेडेबल बनाया जाए."
सुगिआंतो ने विकल्पों की तलाश में लंबी रिसर्च की है. उनकी कंपनी ग्रीनहोप जैविक रूप से विघटित होने वाला पॉलीमर टापियोका यानी साबूदाने से बना रही है. प्रोसेसिंग के बाद इसे प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. साबूदाना कसावा के पौधे से बनता है जो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के ट्रॉपिकल इलाकों में उगाया जाता है. सुगिआंतो बताते हैं, "कसावा का पौधा जमीन के नीचे बढ़ता है. कटाई के दौरान इसे सिर्फ ऊपर खींचना पड़ता है. तने को निकाला जाता है, वही स्टार्च का स्रोत है. ऊपर का तना इसके बाद दो तीन मीटर बढ़ता है." कसावा सस्ता है और भारी मात्रा में पाया जाता है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा पोषक तत्व नहीं होते. इसीलिए प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर इसका इस्तेमाल भी ठीक ही लगता है.
इंडोनेशिया जैसे विकासशील देश में प्लास्टिक के विकल्प की कीमत भी अहम भूमिका निभाती है. ग्रीनहोप के सामने भी यही चुनौती है. सुगिआंतो और उनके पार्टनर टॉमी चाहते हैं कि पर्यावरण संबंधी चिंताओं और आर्थिक हितों के बीच सामंजस्य बैठाया जाए. टॉमी का कहना है कि प्लास्टिक भले ही नजरों से दूर हो जाए लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वह खत्म हो चुका है, "शायद वह कहीं समुद्र की गहराई में है, कहीं तैर रहा है, कहीं लैंडफिल में है. हम अर्थशास्त्र और कार्यकुशलता से तो चिपके हुए हैं लेकिन हम कभी इन चीजों की पर्यावरणीय कीमत नहीं चुकाते."
90 फीसदी प्लास्टिक कच्चे तेल से मिलता है. यह पर्यावरण के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है. अगर प्लास्टिक से निपटा नहीं गया तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी कीमत चुकानी होगी. सिर्फ इंडोनेशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को फौरन कुछ करने की जरूरत है.
मानुएला कास्पर क्लैरिज/आईबी
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