अयोध्या में क्यों परेशान हैं मुसलमान और गरीब
१९ दिसम्बर २०२३उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होना है. इसको लेकर शहर में काफी हलचल है. राम मंदिर के निर्माण में 1,800 करोड़ रुपये का खर्च होने का अनुमान है.
एक समय ऐसा था जब शहर सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहा था. अब यहां मजदूर दिन और रात लगकर मंदिर के बुनियादी ढांचे को नया स्वरूप देने के काम को अंतिम रूप दे रहे हैं. शहर में एक भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन एक आर्थिक अलख जगा रहा है लेकिन अयोध्या में हो रहे निवेश को लेकर कुछ गरीब और शहर के मुसलमान समुदाय का कहना है वे उससे वंचित हैं.
हर महीने आएंगे लाखों भक्त
शहर के अधिकारियों को हर महीने लगभग 45 लाख पर्यटकों के आने की उम्मीद है. यह संख्या शहर की कुल आबादी तीस लाख से कहीं अधिक है. राम मंदिर के निर्माण के लिए नक्काशीदार गुलाबी पत्थर, मकराना पत्थर और संगमरमर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
साल 1992 में हजारों की संख्या में हिंदू कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. उनका कहना था कि यह मस्जिद मंदिर को ढहा कर बनाई गई थी. अब उसी जगह पर एक भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है.
बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के बाद पूरे भारत में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी और अलग-अलग दंगों में करीब 2,000 लोग मारे गए थे. उसमें से अधिकतर मुसलमान थे. दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में मंदिर निर्माण के लिए हिंदू पक्ष को जगह सौंप दी थी.
अयोध्या का पुनर्निर्माण
राम मंदिर के निर्माण के लिए लोगों से दान लिया जा रहा है, जबकि अयोध्या में विकास परियोजनाओं का काम उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार कर रही है.
बीजेपी, जिसने राम मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया था, अब वही बीजेपी की केंद्र सरकार और राज्य सरकार अयोध्या के पुनर्निर्माण पर कई सौ करोड़ खर्च कर रही है, जिसमें एक नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, पार्क, सड़कें और पुल शामिल हैं.
हिंदू पुजारी राजेंद्र दास कहते हैं कि राम मंदिर के कारण शहर के हॉस्पिटैलिटी और रिएल स्टेट सेक्टर को बहुत बढ़ावा मिला है. 64 साल के पुजारी कहते हैं, "मंदिर से सभी को फायदा होगा."
वे अपने पर्यटक लॉज के पुनर्निर्माण के लिए करीब दस लाख रुपये खर्च कर रहे हैं. दास कहते हैं, "विदेशी पर्यटक और भारत के कोने-कोने से लोग यहां आएंगे."
कुछ लोगों की शिकायतें
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने शहर के दर्जनों निवासियों और कारोबारियों के साथ बातचीत की, जिन्होंने कहा कि मंदिर अयोध्या में नए निवेश और समृद्धि की बाढ़ ला रहा है. हालांकि कुछ लोग पीछे छूट जाने की भी शिकायत करते हैं.
स्थानीय लोग जिनकी संपत्ति शहर के पुनर्विकास में ध्वस्त कर दी गई थी, वे महसूस करते हैं जमीन की बढ़ती कीमतों और कम मुआवजे के कारण वे विस्थापित हो गए हैं. अयोध्या में अनुमानित साढ़े तीन लाख मुसलमानों आबादी है. कुछ मुसलमानों का कहना है कि उन्हें इस उछाल का लाभ नहीं मिल रहा है.
बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने इस बात से इनकार किया कि मुसलमान समुदायों को विकास से अलग किया जा रहा है. उन्होंने कहा, "अगर सड़कें चौड़ी हो रही हैं तो मुसलमान भी उनका इस्तेमाल करेंगे. अगर बिजली की सप्लाई ठीक हो रही है तो मुसलमानों को भी फायदा होगा."
हॉस्पैटिलिटी समूह और प्रॉपर्टी डेवलेपर्स को आने वाले सालों में अयोध्या में सुनहरा भविष्य नजर आ रहा है. उन्हें उम्मीद है कि भारत की एक बड़ी आबादी के लिए शहर तीर्थस्थल बनने जा रहा है. अयोध्या में टाटा समूह और अमेरिकी समूह रेडिसन नए-नए होटल बना रहा है. जबकि अभिनंदन लोढ़ा भी शहर में आवासीय प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है.
जमीन की कीमतों में उछाल
बाबरी मस्जिद को लेकर आए 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से शहर की जमीन की कीमत काफी बढ़ चुकी है. रिएल एस्टेट कंसल्टेंसी एनारॉक के मुताबिक कुछ साल पहले जहां प्रति वर्ग फुट जमीन की कीमत लगभग 1,600 रुपये थी, अब शहर के कई हिस्सों में यह लगभग चौगुनी हो गई है.
अधिकांश विकास शहर के केंद्र में ध्वस्त मकानों और दुकानों की जगह पर हुआ है, जहां कुछ दुकानों की चौड़ाई केवल दो फीट तक रह गई है. शहर में करीब 4,000 दुकानें आंशिक या पूरी तरह से ध्वस्त कर दी गईं, लेकिन स्थानीय व्यापार मालिकों के एक संघ के एक नेता नंद लाल गुप्ता ने कहा कि प्रशासन द्वारा दिया गया मुआवजा पर्याप्त नहीं है.
अयोध्या के डीएम नीतिश कुमार ने कहा कि प्रत्येक भूमि मालिक को पर्याप्त मुआवजा दिया गया. उन्होंने आगे कहा, "अयोध्या में कोई भी खुद को वंचित महसूस नहीं कर रहा है... हर कोई खुश है और लाभान्वित हो रहा है."
किराना व्यापारी अरविंद कुमार गुप्ता ने बताया कि इस साल पुनर्विकास में उनका घर आंशिक रूप से ध्वस्त हो गया था. प्रशासन ने उन्हें डेढ़ लाख रुपये दिए. उनका कहना है कि इतना पैसा नई संपत्ति खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं है. अब वह छह लोगों के अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रहते हैं.
शहर के प्रशासन ने उनके उस स्टोर को भी ध्वस्त कर दिया जिसको वह पिछले तीस सालों से चला रहे थे. उन्होंने कहा, "सरकार को हमारे लिए व्यवस्था करनी चाहिए थी. अब हम सोच रहे हैं कि हम लोग क्या करेंगे."
मुसलमान भी निराश
हालांकि, इस सुधार ने शहर के मुसलमान समुदाय के कई लोगों को निराश कर दिया है. अपने 2019 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को मुसलमानों के अधिकारों की वकालत करने वाले उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को एक नई मस्जिद बनाने के लिए "प्रमुख" स्थान पर "उपयुक्त" भूमि आवंटित करनी चाहिए.
राम मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर मस्जिद के निर्माण के लिए जमीन आवंटित की गई. बोर्ड की अयोध्या जिला समिति के अध्यक्ष आजम कादरी ने कहा इसका प्रभावी रूप से मतलब है कि मुसलमानों को शहर के विकास में तेजी से बाहर रखा गया है.
जब रॉयटर्स ने मस्जिद के लिए तय स्थल का दौरा किया, तो आसपास के शांत क्षेत्र में कोई निर्माण या बुनियादी ढांचे के विकास का काम नहीं चलता पाया. एक दीवार पर एक पोस्टर में प्रस्तावित डिजाइन डिस्प्ले किया गया था और लिखा था "एक उत्कृष्ट कृति बन रही है."
कादरी ने कहा, "हर किसी का ध्यान मंदिर पर है. मस्जिद को बढ़ावा देने पर भी ध्यान देना चाहिए था." उन्होंने कहा मुसलमान की अभी भी शहर में व्यापक स्वीकार्यता नहीं है और अगर समुदाय ने होटल बनाने की कोशिश भी की तो हिंदू धार्मिक पर्यटक शायद वहां नहीं जाएंगे.
एए/सीके (रॉयटर्स)