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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

मानव जीनोमः वैश्विक डीएनए डाटा में विविधता का धमाल

फ्रेड श्वालर | जुल्फिकार अबानी
१२ मई २०२३

मानव जीनोम की पहली सीक्वेंसिंग के बीस साल बाद, वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने नये 'पैनजीनोम' डाटा के जरिए, जेनेटिक्स को लेकर हमारी समझ में डीएनए डाइवर्सिटी यानी विविधता को जोड़ा है.

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डीएनए
डीएनएतस्वीर: Zoonar.com/Ake Puttisarn/picture alliance

ह्युमन जीनोम प्रोजेक्ट (एचजीपी) से जुड़े वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने जब 2003 में सबसे पहली बार मानव जीनोम की सिक्वेंस बनाई थी, तो उसमें डीएनए की तीन अरब इकाइयां मौजूद थीं. उसे इंसानी जीवन के ब्लूप्रिंट के तौर पर खूब सराहा गया था.

जीनोम मैपिंग के तौर पर मशहूर ये पद्धति बड़े काम की रही है. इवोल्युश्नरी बायोलजी के क्षेत्र में शायद सबसे उल्लेखनीय काम इसका उस विज्ञान के बारे में बताने का था कि इस धरती पर जीवन का उद्भव कैसे हुआ.

लेकिन बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि होने के बावजूद, उसकी सीमाएं भी थीं. संक्षेप में कहें तो डाटा में डाइवर्सिटी यानी विविधता का अभाव था. मौलिक संदर्भ जीनोम का अधिकांश डाटा सिर्फ एक ही व्यक्ति से आया था, हालांकि उसमें करीब 20 अन्य लोगों का डाटा भी जोड़ा गया था.

हजारों साल पुराने पूर्वजों से मुलाकात

रिफ्रेंस जीनोम यानी संदर्भ जीनोम, इंसानी जीनोम सिक्वेंस का वो एक निर्धारित प्रतिनिधित्व है जिसका इस्तेमाल, शोधकर्ता अपने अध्ययनों से तैयार डीएनए सिक्वेंसो से तुलना में करते हैं. जैसे कि जब वे बीमारियों के उपचार खोज रहे होते हैं.

ज्यादा विविध तरीकाः मानव पैनजीनोम रिफ्रेंस

यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के स्कूल ऑफ मेडिसिन (यूडब्लू मेडिसिन) के वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्होंने एक नया रिफ्रेंस जीनोम तैयार किया है जो ह्युमन जीनोम प्रोजेक्ट की विविधता और साम्यता में सुधार लाएगा.

ह्युमन पैनजीनोम रिफ्रेंस के तौर पर ज्ञात इस पद्धति में उन 47 लोगों का करीब करीब पूरा जीनोमिक डाटा मौजूद है जिनकी वंशावली दुनिया भर की विभिन्न आबादियों में बिखरी हुई है.

सिएटल में यूडब्लू मेडिसिन में जीनोम साइंसेस के प्रोफेसर इवान इशलर कहते हैं, "पेंगेनोम पद्धति मानव की आनुवंशिक विभिन्नता के बारे में गौर करने के एक नये तरीके का प्रतिनिधित्व करती है." इशलर ह्युमन पेंगेनोम रिफ्रेंस कंजोर्टियम में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिकों में से एक हैं. उन्होंने ये बात नेचर पत्रिका में साझा अध्ययन के प्रकाशित होने से पहले कही.

बायोलॉजिकल क्रांति के केंद्र में जीनोमिक चिकित्सा रही है. 2003 से दस लाख लोगों के जीनोमों की सिक्वेंसिग के बाद वैज्ञानकों ने देख लिया है कि कैसे लोगों के बीच आनुवंशिक विभिन्नता, बीमारी के खतरे को प्रभावित करती है.

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूके) में मेडिकल जेनेटिक्स के प्रोफेसर डेविट कर्टिस कहते हैं, "बीमार शिशु के समूचे जीनोम सिक्वेंस को तैयार कर, कुछ ही दिनों में उसकी बीमारी के कारणों का पता कर पाना वाकई उल्लेखनीय काम है."

कर्टिस के मुताबिक चिकित्सा अभ्यास में आनुवंशिक प्रौद्योगिकी का रूटीन उपयोग, एचजीपी से हासिल होने वाला सबसे बड़ा लाभ है.

कर्टिस ने डीडब्लू को बताया, "बड़े सिक्वेंसिंग अध्ययनों के पिछले कुछ वर्षों में हमें शिजोफ्रेनिया का पहला जीन मिल गया. आज हमारे पास 10 हैं. अगर ये जीन क्षतिग्रस्त होते हैं तो शिजोफ्रेनिया के खतरे पर इसका बड़ा असर होता है."

और शिजोफ्रेनिया अकेला रोग नहीं है जिसमें जीनों को बीमारियों से जोड़ा गया है. वैज्ञानकों ने कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज जैसी तमाम बीमारियों का कारण बनने वाले म्युटेटड जीन्स भी पाए हैं. अगला बड़ा लाभ नयी थेरेपियां विकसित करने में सक्षम होने से जुड़ा है. इसके लिए लैब में जेनेटिक म्युटेशनों का अध्ययन किया जाता है.

जीन आधारित थेरेपियो में हम पहले ही कुछ कामयाबी देख चुके हैं- कैंसर से लड़ने के लिए प्रतिरोधी कोशिकाओं की रिट्रेनिंग से लेकर सिकल सेल डिजीज के उपचार में क्रिस्पर-कैस9 जीन एडिटिंग औजारों के इस्तेमाल तक.

कर्टिस कहते हैं, "बीमारियों का अध्ययन करने के लिए आनुवंशिकी बहुत मददगार है और जेनेटिक थेरेपी में बहुत बड़ा स्कोप है."

मेडिकल जेनेटिक्स की सीमाएं

लेकिन नये उछाल ने आनुवंशिक चिकित्सा की सीमाएं भी दिखाई हैं. ये बात सही है कि बीमारियों के मामले में जीन्स सिर्फ एक फैक्टर है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने वाली चुनिंदा बीमारियां एक अकेली जीन में म्युटेशन की वजह से होती हैं.

कितने समान हैं इंसान और चिंपैंजी

कर्टिस कहते हैं कि शिजोफ्रेनिया के मामले में, रोगग्रस्त सिर्फ एक फीसदी लोगों की उन 10 चिन्हित जीनों में से एक में म्युटेशन होता है. कुल मिलाकर, शिजोफ्रेनिया से जुड़े 250 से ज्यादा आनुवंशिक "रिस्क फैक्टर" हैं. इनकी संख्या और ये तथ्य कि वे बीमारियों में क्या योगदान देते हैं, ये हम नही जानते- दोनों बातें चिकित्सा में एक वास्तविक चुनौती पेश करती हैं.

कर्टिस कहते हैं, "कुछ लोगों में म्युटेशन होता है और उनमें शिजोफ्रेनिया नहीं होता या उनमें पूरी तरह से कोई और ही बीमारी होती है. जेनेटिक म्युटेशन और बीमारी के बीच समूचा संबंध (जीनोम सिक्वेंसिंग के बाद से) और कमजोर हुआ है." इवोल्युश्नरी बायोलजी में जीनोम सिक्वेंसिंग ने सच्चे अर्थों में अभूतपूर्व काम किया है.

यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया में इवोल्युश्नरी बायोलजिस्ट एंडर्स बर्गश्ट्रोम ने डीडब्लू को बताया, "ह्युमन जीनोम सिक्वेंस की तुलना हम अपने करीबी परिजनों से कर सकते हैं और अपनी नस्ल को एक व्यापक या वृहद्त्तर इवोल्युश्नरी संदर्भ में रख सकते हैं. इसने हमें दिखाया है कि मानव इतिहास किसी भी अनुमान से कहीं ज्यादा डाइनेमिक यानी गतिशील रहा था."

आदि और आधुनिक मानवों के जीनोम सिक्वेंसों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि हमारे पूर्वजों ने नीएन्दरथल और डेनिसोवान जैसे दूसरे होमिनिन के साथ ब्रीड या संकरित किया था. मध्य यूरोप के निएंदरथल समुदायों की जिंदगियों के बारे में हमारे पास अब जानकारी है, उनकी आबादी के पतन के कारण पता चले हैं,

साथ ही साथ, आधुनिक समय के क्रेटनों में बहुत पहले गुम हो चुके मिनोअन जैसे लोगों की आनुवंशिक विरासत का भी पता लगा.

प्राचीन डीएनए और हमारे भीतर मौजूद पूर्वजों के थोड़े से निशानों का अध्ययन करने से हम समझ पा रहे हैं कि कैसे हमारी नस्ल दुनिया भर में फैली, दूरस्थ स्थानों तक कैसे कृषि जैसी सांस्कृतिक तरक्कियों को पहुंचा पाई, और बीमारियों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर पाई.

क्या है मानव?

आनुवंशिकी के बारे में सबसे बड़े सवालों के जवाब बाकी हैं. एक तो यही है कि सिर्फ करीब एक फीसदी जीनोम कोड प्रोटीनों के बारे में हमें पता है. शेष 99 फीसदी क्या करते हैं हम वाकई नहीं समझ पाते हैं.

बर्गश्ट्रोम के मुताबिक जो सबसे बड़ा सवाल आनुवंशिकी हल कर सकती है वो ये है कि हमें क्या चीज मानव बनाती है. उन्होंने कहा, "पिछले 20 साल के दौरान जो तमाम प्रगति आनुवंशिकी के क्षेत्र में हुई है वो मानवों के बारे में विभेदों की व्याख्या तक सीमित रही है लेकिन ये हमें, हमारी सार्वभौमिकता के बारे में यानी हम सबमें यूनिवर्सल चीज क्या है, नहीं बताती है."

जीनोम सिक्वेंसिंग ने हमारे खुद को देखने के नजरिए को बदला है, लेकिन ज्यादातर, इंडिविजुअलिज्म यानी व्यक्तिवाद के विचार को वैज्ञानिक आधार देते हुए ही, ऐसा किया है.

माना ये जाता है कि हर किसी का जेनेटिक कोड अलग है (यहां तक कि हमशक्ल जुड़वां का भी ठीक एक जैसा कोड नहीं होता), तो लोगों के बीच तमाम छोटी छोटी आनुवंशिक विभिन्नताओं की शिनाख्त कर हम देख सकते हैं कि हममें से हर एक व्यक्ति को कौनसी चीज अलग बनाती है.

ये अक्सर लाभकारी या उपयोगी होती है. जीनोम सिक्वेंसिंग ने जैसे दिखाया है कि "नस्ल" एक सोशल कंस्ट्रक्ट यानी सामाजिक संरचना है जिसका मूल आनुवंशिकी में नहीं है (उन लोगों के बीच जितनी आनुवंशिक विभिन्न्ता है उससे ज्यादा नस्ली समूहों में है).

लेकिन हमेशा विभेदों या अंतरों की ओर देखते हुए हम ये भूल जाते हैं कि कौन सी चीज हमें, उसी धरती पर वानर जैसे 8 अरब व्यक्तिगत प्राणियों की बजाय सामूहिक रूप से मानव बनाती है.

जंगलों में ट्रैकिंग के लिए डीएनए का इस्तेमाल

जैसे चिंपाजी हैं- हम जानते हैं कि उनके साथ हमारी 96 फीसदी आनुवंशिक समानता है. लेकिन हम वास्तव में ये नहीं समझते हैं कि आखिर 4 प्रतिशत अंतर, कैसे अपने जूं पालने वाले परिजनों की अपेक्षा हमें ज्यादा "मानव" बना देता है. बर्गश्ट्रोम कहते हैं, "ये बुनियादी प्रश्न है. कौनसी चीज हमें प्रजाति के तौर पर मानव और खास बनाती है?"

बढ़ती जीनोम विविधता

पिछले 20 साल में हुई प्रगति में नाकामियां भी कम नहीं थी. अभी तक दस लाख से ज्यादा जीनोमों की सिक्वेंसिग की जा चुकी है लेकिन जेनेटिक अध्ययनों में 95.2 फीसद डाटा यूरोपियाई जीनोमों से आता है.

बर्गश्ट्रोम कहते हैं, "मनुष्यों के बीच विविधता का ये कतई प्रतिनिधित्व नहीं करती थी. अगर हमारा विज्ञान एक खास किस्म की वंशावली वाले लोगों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित है, उस स्थिति में हम अलग अलग लोगों को समान गुणवत्ता या विशेषता वाली व्यक्तिगत चिकित्सा देने में समर्थ नहीं होंगे."

बदलाव आ रहा है यानी चीजें बदल रही हैं. नाइजीरिया के 100के जीनोम प्रोजेक्ट का लक्ष्य, देश में एक लाख जीनोमों की सिक्वेंसिंग का है. इसी तरह की कोशिशें अफ्रीका, और एशिया और दक्षिण अमेरिका में कई जगहों पर जारी हैं. उम्मीद यही है कि दुनिया भर में ज्यादा रूटीन और ज्यादा सस्ती जीनोम सिक्वेंसिंग प्रौद्योगिकियां, तमाम मनुष्यता को लाभ पहुंचाएगी.