डूबने से पहले ऐसे थे टाइटैनिक के आखिरी पल
14 अप्रैल, 1912 को जब सूरज ढला, तब उस 882 फीट लंबे जहाज पर सवार लोगों में कोई नहीं जानता था कि यह उस जहाज की आखिरी शाम है. उन्हें नाज था कि वे दुनिया के सबसे आलीशान और अत्याधुनिक जहाज 'आरएमएस टाइटैनिक' पर सवार हैं.
गलतियां, लापरवाहियां...
बसंत के महीने में नॉर्थ अटलांटिक के भीतर आइसबर्ग की मौजूदगी आम थी. 14 अप्रैल, 1912 को भी समुद्र जमा हुआ था. कैप्टन एडवर्ड जे स्मिथ जानते थे कि रास्ते में आइसबर्ग मिल सकता है. फिर भी जहाज की रफ्तार धीमी नहीं की गई. तब किसी को आभास नहीं था कि कुछ ही घंटों में टाइटैनिक सागर की ठंडी सतह के नीचे डूब जाएगा. वो मिलेगा, लेकिन 73 साल बाद... 1985 में. करीब 12,500 फुट की गहराई में, समंदर की तलहटी पर.
चेतावनियों की अनदेखी
उस शाम 7:30 बजे तक टाइटैनिक को नजदीकी जहाजों से पांच चेतावनियां भी मिलीं, मगर इनपर सजगता नहीं दिखाई गई. रात के 11 बजने में पांच मिनट थे, जब कुछ दूरी से 'कैलिफॉर्नियन' नाम के एक जहाज ने रेडियो पर संदेश भेजा. ऑपरेटर ने बताया कि इतनी बर्फ है कि जहाज को रुकना पड़ा है.
"आइसबर्ग, राइट अहेड"
उस रात समंदर पर नजर रखने की ड्यूटी फ्रेडरिक फ्लीट और रेजनल्ड ली की थी. रात करीब 11:40 पर फ्लीट को जहाज के सामने कुछ दिखा, समंदर से भी स्याह. जहाज करीब पहुंचा, तो दिखा कि वह एक विशाल आइसबर्ग था. फ्लीट ने झटपट तीन बार वॉर्निंग बेल बजाई और ब्रिज पर फोन किया. वहां फर्स्ट ऑफिसर विलियम मरडॉक ने रिसीवर उठाकर पूछा, "क्या देखा तुमने?" फ्लीट का जवाब था, "आइसबर्ग, बिल्कुल सामने." (तस्वीर में, कैप्टन स्मिथ)
बहुत देर हो चुकी थी
ऑफिसर मरडॉक ने इंजन रूम (टेलिग्राफ मॉडल) के हैंडल को झटके से खींचा और रोकने की कोशिश की. बायें जाने का निर्देश दिया. उस निर्णायक घड़ी में आइसबर्ग से भिड़ंत टालने के लिए जो समझ आया, वो निर्देश दिया. अब बारी थी यह देखने की कि कोशिश कामयाब हुई कि नहीं. करीब 30 सेकेंड तक क्रू दम साधे इंतजार करता रहा. उन्हें लगा, बाल-बाल बचे. लेकिन असल में जो हुआ था, वो उनकी आंखें देख नहीं पाई थीं.
दो घंटे का वक्त बचा था
आइसबर्ग का बड़ा हिस्सा पानी की सतह से नीचे होता है. यही हिस्सा टाइटैनिक के स्टारबोर्ड हल प्लेट्स से लगा. जहाज के 'वेल डेक' पर बर्फ के टुकड़े गिरे. समझ आ गया कि आइसबर्ग से टक्कर हुई है. फॉरवर्ड बॉइलर और मेल रूम्स में क्रू ने देखा कि कंपार्टमेंटों में पानी घुस रहा है. स्पष्ट हो गया कि एक-एक करके कंपार्टमेंट्स में पानी भरता जाएगा. अनुमान लगाया गया कि अब टाइटैनिक के पास तकरीबन दो घंटे का समय बचा है.
सबके लिए नहीं थे लाइफबोट
टाइटैनिक का सफर शुरू होने से पहले ऐसा माना जा रहा था कि अगर इसमें दुर्घटना होती भी है, तो भी यह इतने समय तक पानी पर तैरता रहेगा कि यात्रियों को सुरक्षित बचाने का समय मिल जाएगा. शायद इसीलिए टाइटैनिक पर लाइफबोट का अनुपात यात्रियों के मुकाबले काफी कम था. करीब 2,200 यात्री थे और लाइफबोट और 'कोलैप्सिबल्स' मिलाकर 1,178 की ही जगह थी. तस्वीर में: मारे गए यात्रियों में से एक इजिडोर स्ट्रॉस.
आखिरी पल
आइसबर्ग को जहाज से टकराए करीब दो घंटे, चालीस मिनट बीते थे कि 'अनसिंकेबल' कहलाने वाले टाइटैनिक का पिछला हिस्सा पानी से बाहर ऊपर की ओर उठा और आगे के हिस्से ने समंदर में डुबकी लगाई. जहाज के पिछले हिस्से में बने आफ्टरडेक को कसकर पकड़े लोग अब समंदर में छलांग लगाने लगे. तस्वीर में: चीन में बनाई जा रही टाइटैनिक की एक प्रतिकृति.
केवल 705 लोग जिंदा बचे
14 और 15 अप्रैल, 1912 की दरम्यानी रात करीब 2:20 बजे टाइटैनिक डूब गया. 1,500 से ज्यादा लोग या तो डूबकर मर गए, या अटलांटिक के ठंडे पानी ने उनकी जान ले ली. अपने इस दुखांत के साथ टाइटैनिक का किस्सा, दुनिया की सबसे मशहूर और नाटकीय कहानियों में शुमार हो गया. तस्वीर में: टाइटैनिक हादसे में मारी गईं एक यात्री ईडा स्ट्रॉस.