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चीन के साथ बेल्ट एंड रोड सौदा बना इटली के लिए परेशानी का सबब

एला जॉयनर
१९ मई २०२३

इटली और चीन के बीच एक बुनियादी ढांचा सौदा अधर में लटका हुआ है. यह पश्चिम-चीन संबंधों की स्थिति और जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व वाली इटली की दक्षिणपंथी सरकार के लिए निर्णायक क्षण है.

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प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी
प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनीतस्वीर: Andreas Solaro/AFP

यह जगजाहिर है कि इटली की धुर दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी चीन के प्रति अपने संबंधों को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. चीन ने 2019 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में 2.5 अरब डॉलर के निवेश को लेकर इटली के साथ समझौता किया था. हालांकि, चुनाव से कुछ समय पहले पिछले साल सितंबर महीने में दक्षिणपंथी गठबंधन के प्रमुख के तौर पर मेलोनी ने इस सौदे को "एक बड़ी गलती” के तौर पर बताया था.

अंतरमहाद्वीपीय व्यापार के लिए बुनियादी ढांचे को बेहतर ढंग से जोड़ने और विदेशों में चीनी प्रभाव को बढ़ाने के उद्देश्य से 2013 में चीन का विशाल वैश्विक बुनियादी ढांचा निवेश  अभियान शुरू हुआ. चीन के साथ इटली ने ठीक उसी तरीके से गैर-बाध्यकारी समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया था जैसे अन्य पश्चिमी सहयोगी चीन के प्रति सख्त रूख अपनाए हुए थे.

अब कट्टर रूढ़िवादी मेलोनी की सरकार सत्ता में है और इस समझौते को नवीनीकृत करने के बारे में फैसला लेना है, लेकिन सरकार ने अब तक जाहिर नहीं किया है कि वह इस सौदे को नवीनीकृत करेगी या नहीं. वह बिल्कुल भी जाहिर नहीं होने दे रही है कि उसकी मंशा क्या है. जापान में इस हफ्ते होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले मेलोनी ने संकेत दिया है कि सौदे को रद्द करने या उसे नवीनीकृत करने पर अब तक निर्णय नहीं लिया गया है.

चीन और इटली के बीच हुए इस गैर-बाध्यकारी बुनियादी ढांचा सौदे में दर्जनों समझौते शामिल हैं, लेकिन इस पर अब तक ज्यादा खर्च नहीं किया गया है. अगर मेलोनी इस समझौते को रद्द नहीं करती हैं, तो यह मार्च 2024 में चार साल के लिए अपने-आप नवीनीकृत हो जाएगा.

चीन और ताइवान के नेताओं के बीच बढ़ते तनाव के कारण अमेरिका चाहता है कि उसके करीबी सहयोगी भी चीन के प्रति सख्त रवैया अपनाएं. वहीं, कुछ और भी ऐसे देश हैं जो चाहते हैं कि मेलोनी इस समझौते को रद्द कर दें.

व्यक्तिगत राजनीति बनाम राजनीतिक व्यावहारिकता

पश्चिमी राजनयिक सहयोगियों और एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार के बीच फंसी इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी इस मुद्दे पर काफी सोच-विचार और सावधानी से संतुलित कदम बढ़ा रही हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ नेपल्स में चीनी मामलों के विशेषज्ञ एनरिको फरदेला ने ईमेल के जरिए डीडब्ल्यू को बताया, "मेलोनी हमेशा से चीन के कुछ कदमों को लेकर कड़ा विरोध जताती रही हैं.” 2008 के बीजिंग ओलंपिक के दौरान खेल मंत्री के रूप में भी उन्होंने मानवाधिकार से जुड़े मामलों को लेकर चीन की आलोचना की थी, खासकर तिब्बत को लेकर.

हालांकि, फरदेला ने आगे कहा कि मेलोनी का विरोध भी राजनीति से प्रेरित दिखता है. मेलोनी के गठबंधन में दो पार्टियां शामिल हैं: मातेओ सालविनी के नेतृत्व वाली द लीग और अरबपति सिल्वियो बैर्लुस्कोनी के नेतृत्व वाली फोर्जा इटालिया. इन दोनों पार्टियों पर यूक्रेन युद्ध के दौरान गलत तरीके से रूस के नजदीक जाने का आरोप लगा है.

फरदेला ने बताया, "चीन के प्रति मेलोनी का रूख, रूस को लेकर उनके गठबंधन में शामिल पार्टियों की विवादास्पद स्थिति को संतुलित करने में मदद करती है. साथ ही, चीन के कुछ वैश्विक और घरेलू कदमों पर इटली की सरकार में शामिल पार्टियों का संयुक्त रूख, इटली के मुख्य सहयोगियों के बीच नई सरकार की विश्वसनीयता को बढ़ाती है.” सामान्य शब्दों में कहें, तो इटली की नई गठबंधन सरकार अपने देश के पारंपरिक सहयोगियों को यह संदेश देना चाहती है कि वह उनके साथ है.

धुर दक्षिणपंथी गठबंधन का नेतृत्व करने वाली जॉर्जिया मेलोनी की पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली की जड़ें नव-फासीवाद से जुड़ी हुई हैं. मेलोनी यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि वह अलग तरह की प्रधानमंत्री हैं, जो वैश्विक मंच पर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बेहतर तरीके से काम करने में सक्षम हैं.

यहां तक कैसे पहुंचे

सवाल यह है कि इटली ने इस समझौते को लेकर हस्ताक्षर क्यों किया? यह सब प्रधानमंत्री गिजेप कोंटे के कार्यकाल में शुरू हुआ था. उस समय कार्नेगी एंडोमेंट फॉर पीस में फेलो के तौर पर कार्यरत फेडेरिका बिंडी ने लिखा था कि कोंटे की सरकार इस बात से प्रेरित थी कि किसी भी फायदे को छोड़ना नहीं चाहिए. फिलहाल, बिंडी रोम टोर वर्गाटा विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं.

इटली ने उत्तरी-यूरोपीय बुनियादी ढांचे के साथ-साथ ग्रीस स्थित पीरियस बंदरगाह में भारी चीनी निवेश देखा. इस वजह से वह चाहता था कि उसके यहां भी चीनी निवेश हो. इसलिए, चीन के साथ समझौता किया गया. इस समझौते के तहत ट्राएस्टे और जेनोओ के बंदरगाहों में निवेश की बात भी कही गई थी.

हालांकि, उस समय दोनों पक्षों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के राजनीतिक कारण भी थे. बिंडी ने लिखा कि दरअसल चीन और इटली के बीच घनिष्ठ व्यापार संबंध 1980 के दशक में रोमानो प्रोडी की सरकार के समय से बने हुए हैं.

फरदेला के मुताबिक, यूरोपीय संघ और नाटो के साथ इटली के पारंपरिक संबंधों की वजह से 2019 का समझौता थोड़ा जोखिम भरा कदम था और दुर्भाग्य से इस बार स्थिति अपने पक्ष में नहीं रही. अगले ही साल कोरोना महामारी आ गई और संभावित निवेश नहीं किया जा सका.

इटली को अब क्या करना चाहिए?

अमेरिका चीन पर सख्त रूख अपनाए हुए है, लेकिन यूरोपीय संघ इस बात पर बंटा हुआ है कि उसे अमेरिका के इस सख्त रवैये पर कितनी बारीकी से तालमेल बैठाना है. बाल्टिक देश पूरी तरह अमेरिका के साथ हैं, लेकिन फ्रांस और जर्मनी संतुलन बनाकर चलने की कोशिश कर रहे हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने हाल ही में यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि यूरोपीय संघ को चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है.

फरदेला के मुताबिक, इटली के पास दो विकल्प हैं: इस समझौते को नवीनीकृत करे, लेकिन चीन पर दबाव बनाए कि वह यूक्रेन की आर्थिक मदद करे या उसके पक्ष में राजनीतिक बयान दे. दूसरा विकल्प है प्रबंधित तरीके से इस समझौते को समाप्त कर दे. पहला विकल्प चुनने पर अमेरिका नाराज हो सकता है और दूसरा विकल्प चुनने पर चीन.

कई लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस सप्ताह हिरोशिमा में जी-7 की बैठक में मेलोनी अपने सहयोगियों को इस मामले पर अपने रूख की जानकारी दे सकती हैं. ब्लूमबर्ग और फाइनेंशियल टाइम्स दोनों ने हाल के दिनों में बताया कि सरकार इस समझौते को वापस लेने की योजना बना रही थी.

बर्लिन में मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के विश्लेषक फ्रांसेस्का घिरेटी ने एक ईमेल में डीडब्ल्यू को बताया, "अगर यह फैसला पूरी तरह मेलोनी को लेना होता, तो वह शायद नवीनीकृत नहीं करतीं, लेकिन गठबंधन की वजह से उन्हें निर्णय लेने में मुश्किल हो सकती है. ऐसी योजना थी कि इस जी-7 सम्मेलन तक फैसला ले लिया जाएगा, लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है कि आंतरिक मतभेद सुलझे हैं या नहीं.”

चीन के साथ जोखिम भरा अलगाव

अगर यह समझौता नवीनीकृत नहीं होता है, तो चीन के लिए शर्मनाक स्थिति हो सकती है, क्योंकि 2019 में हुआ यह समझौता दोनों देशों के बीच राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था. इटली इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला जी-7 का पहला देश था. घिरेटी ने कहा, "यह एमओयू निवेश से कहीं ज्यादा राजनीतिक और राजनयिक रूप से मायने रखता है.”

अगर इटली खराब शर्तों पर पीछे हटता है, तो चीन जवाबी कार्रवाई कर सकता है. हालांकि, ऐसा तब नहीं हुआ था जब ईयू के सदस्य देशों ने मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों से जुड़े 16+1 फॉर्मेट के एक अन्य समझौते को समाप्त कर दिया था.

इसके बावजूद, फरदेला को ऐसा लगता है कि आने वाले समय में खतरा बना रह सकता है. उन्होंने चेतावनी दी, "अगर इटली के फैसले से चीन की छवि को नुकसान पहुंचता है, तो यह प्रतिशोध में बदल सकता है. इससे इटली में आयात होने वाले उन वस्तुओं पर असर पड़ सकता है जो यहां के उद्योग के लिए जरूरी हैं.”

इसके बाद, यूरोपीय संघ इटली का पक्ष लेते हुए चीन के प्रति अपनी जवाबी कार्रवाई को तेज कर सकता है. ईयू प्रमुख स्थानीय उद्योगों में चीनी निवेश को कम कर सकता है या उसे सख्ती से नियंत्रित कर सकता है. फरदेला ने आगे कहा, "जिस समय और जिस तरीके से यह फैसला लिया जाएगा, वह काफी महत्वपूर्ण होगा. अगर इटली इस एमओयू पर अचानक और अदूरदर्शी तरीके से फैसला लेता है, तो इससे चीन और पश्चिम के बीच चल रहा तनाव काफी ज्यादा बढ़ सकता है.